पिछले सप्ताह नैनीताल में टूरिस्टों की इतनी अधिक गाड़ियां आ गईं कि इस शहर को उन्हें कहना पड़ा कि इस यहां अब उनके लिए कोई जगह नहीं बची है. शहर से काफी दूर पहले ही हाउसफुल के बड़े-बड़े बैनर लगा दिए गए. इस टूरिस्ट सीजन के शुरुआती वीकेंड पर ही दिल्ली, यूपी से इतने अधिक टूरिस्ट यहां पहुंच गए शहर का इन्फ्रास्ट्रक्चर पूरी तरह चरमरा गया. शहर को टूरिस्टों को हाथ जोड़ना पड़ा.
छोटी होती जा रही है नैनीताल की लाइफलाइन
नैनीताल इस बार गाड़ियों की भरमार से ही परेशान नहीं है. इस शहर की प्यास बुझाने के लिए अब पानी भी कम पड़ने लगा है. 24 घंटे पानी की सप्लाई वाले इस शहर को अब महज सुबह-शाम तीन-चार घंटे पानी की सप्लाई से काम चलाना पड़ रहा है. और इसकी वजह सबसे बड़ी वजह है सिर्फ साढ़े 11 वर्ग किलोमीटर में बसे इस शहर की लाइफलाइन नैनी झील का धीरे-धीरे मौत की ओर बढ़ना.
अतिक्रमण, कंस्ट्रक्शन का मलबा, गाद, ठोस कचरे और नदी को गंदा करने वाली दूसरी चीजों की डंपिंग नैनी का गला घोंट रही है. इस वजह से इस खूबसूरत टूरिस्ट डेस्टिशन का बुरा हाल हो गया है.
एक तरफ नैनीताल में दिनोंदिन भीड़ बढ़ती जा रही है और दूसरी ओर इसका प्रमुख जल स्त्रोत नैनी झील सूखती जा रही है.लगभग साढ़े 11 वर्ग किलोमीटर में बसे शहर की आबादी 45 हजार के पास है. उस पर दस से पंद्रह हजार टूरिस्ट रोज चले आते हैं. नैनीताल में ज्यादातर मकान पहाड़ियों की ढलान पर बने हुए हैं. 2011 की जनगणना में यहां मकानों की संख्या 42,000 थी. इसके अलावा 150 से ज्यादा होटल और रेसॉर्ट्स भी हैं. यह तादाद अब भी बढ़ रही है.
सूखाताल है नैनी झील की जान
नैनी ताल या झील की जान यहां से महज एक किलोमीटर दूर सूखाताल में बसी है. यह सीजनल लेक मॉनसून में भर जाती है, नैनी झील के ऊपरी पानी का 50 फीसदी यहीं से आता है. लेकिन जैसे ही यहां पानी भरने लगता है इसके आसपास बसे लोग पंप के जरिये इसे निकालने लगते हैं ताकि इसके आसपास बनाए गए उनके घर, होटल या दूसरे कंस्ट्रक्शन डूब न जाएं. कचरे और कंस्ट्रक्शन का मलबा भी सूखाताल को सूखा रहा है.
अगर नैनी झील को सूखने से बचाना है तो सूखाताल को जिंदा रखना होगा. नैनी झील के चारों ओर ढलानों पर मौजूद रीज और गड्ढे इसके लिए रीचार्ज जोन का काम करते हैं. लेकिन ढलानों में कंस्ट्रक्शन बढ़ने से नैनी झील में वाटर रीचार्ज में रोड़ा अटकने लगा है. सूखाताल लगातार सूखता जा रहा है. इसके किनारे कंस्ट्रक्शन बढ़ने से 46 हजार वर्ग मीटर का यह ताल अब सिकुड़ कर 22 हजार वर्ग मीटर का रह गया है.
तेजी से घट रही है नैनी झील की गहराई
ब्रिटिश शासन के दौरान नैनी झील की गहराई 90 फीट थी. सत्तर के दशक में यह घट कर 78 फीट रह गई थी और अब गाद बढ़ने और ठोस कचरा बढ़ने से इसकी गहराई और कम होने की आशंका है. नैनीताल दिनोंदिन लोगों के बोझ से चरमरा रहा है. अब यहां और आसपास के लोग भीमताल और आसपास के दूसरी झीलों के किनारे घर बनाने लगे हैं. इनसे इन झीलों पर भी खतरे मंडराने लगे हैं.
पानी के बीच प्यासे रहने की नौबत
नैनी झील के सूखने की वजह से शहर में पानी की सप्लाई घटने लगी है. पिछले साल से पहले यहां एक करोड़ अस्सी लाख लीटर पानी हर दिन सप्लाई होता था. पिछले साल इसे घटा कर एक करोड़ चालीस लाख टन लीटर कर दिया गया और अब इस पीक टूरिस्ट सीजन में हर दिन सिर्फ 80 लाख लीटर पानी सप्लाई होगा. जबकि मांग एक करोड़ 20-30 लाख लीटर पानी की है.
इंसानी लालच ने नैनीताल के आसपास कई झीलों को पूरी तरह सूखा दिया है. कभी इसके आसपास 60 से अधिक झीलें थीं. लेकिन अब पांच-सात ही बची हैं. टूरिज्म के नाम पर नैनीताल के संसाधनों को तेजी से निचोड़ा जा रहा है. यह सिलसिला जारी रहा तो खूबसूरत नैनीताल इतिहास में दफन हो जाएगा.
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