कोरोना जैसी महामारी के बीच नेपाल ने कई मुद्दों को लेकर भारत से बहस छेड़ दी थी. मामला लिपुलेख सड़क निर्माण को लेकर शुरू हुआ था, जब नेपाल ने इस सड़क का विरोध किया और इसके बाद संसद से एक नक्शा पास करवाकर इसे अपना क्षेत्र बता दिया. लेकिन अब पहली बार नेपाल ने अपना रुख थोड़ा बदलने की कोशिश की है. नेपाल ने इस नक्शे को लेकर होने वाले संविधान में संशोधन को फिलहाल टाल दिया है.
बताया गया है कि नेपाल की संसद में 27 मई को इस नक्शे पर संविधान संशोधन का प्रस्ताव रखा जाना था. लेकन ऐन मौके पर इसे वापस ले लिया गया. इस पूरे प्रस्ताव को ही संसद की कार्यसूची से हटा दिया गया.
नेपाल ने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए एक सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, जिसके बाद आपसी सहमति से इस प्रस्ताव पर रोक लगाने का फैसला किया गया. बैठक में भारत के साथ बातीचीत कर मुद्दों को सुलझाने पर जोर दिया गया.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल नेपाल ने अपना एक आधिकारिक नक्शा जारी किया था. जिसमें भारतीय क्षेत्र लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को उसने अपने क्षेत्र में दिखाया था. जिसके बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा था कि ऐसा कोई भी दावा मंजूर नहीं किया जा सकता है. विदेश मंत्रालय ने कहा,
"नेपाल ने अपने संशोधित आधिकारिक नक्शे में भारतीय क्षेत्र के कुछ हिस्से शामिल किए हैं. ये एकतरफा कदम है और ऐतिहासिक तथ्य के आधार पर नहीं है. साथ ही ये द्विपक्षीय समझ के भी उलट है. ऐसे कृत्रिम विस्तार को भारत मंजूर नहीं कर सकता."
इसके बाद भारतीय सेना प्रमुख एमएम नरवणे ने भी नेपाल पर किसी और के इशारे पर ये काम करने का आरोप लगाया था. नरवणे का इशारा चीन की तरफ था, लोग यही कयास लगा रहे थे कि चीन के दबाव में आकर नेपाल अपने सुर बदलने की कोशिश कर रहा है.
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