टाटा संस का अगला चेयरमैन कौन होगा? कोई इनसाइडर या ग्रुप के बाहर का? इसे लेकर पिछले सोमवार से ही बहस छिड़ी है. बॉम्बे हाउस के भीतर से विवादास्पद जानकारियां बाहर आते ही सबसे बड़े कॉरपोरेट ग्रुप का झगड़ा खुलकर सामने आ गया. हालांकि, इस सवाल में और भी उलझन है. यहां मामला सिर्फ बाहरी और भीतरी का ही नहीं है, बल्कि सवाल पारसी और नॉन पारसी को लेकर भी सामने आने लगे हैं.
टाटा को समझने वाले कहते हैं कि रतन टाटा के सामने इस मसले को सुलझाना बहुत जरूरी है और वो भी ऐसे समय में जब उनकी खुद की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं. यह भी एक अवधारणा है कि रतन टाटा इन सब बातों को नहीं मानते, और वह इस तरह से सोचते भी नहीं हैं. लेकिन, यह पूरी तरह सच नहीं है. जिन लोगों ने रतन टाटा के साथ काम किया है या ग्रुप से किसी न किसी तरह जुड़े रहे हैं, कहते हैं कि टाटा ग्रुप का डीएनए है तो पारसी ही और यह सिर्फ टाटा फैमिली कंपनी नहीं है.
जो भी फैसला रतन टाटा (या तकनीकी रूप से कहें तो सेलेक्शन कमिटी) लें, उन्हें इस सवाल से भी दो-दो हाथ करने होंगे.
नोएल टाटा बेहतर ऑप्शन?
समस्या यह है कि टॉप लेवल पर बहुत कम ऐसे सीनियर एग्जिक्यूटिव हैं जो पारसी हैं, और जिन्हें इतना बड़ा समझा जा सकता है कि उन्हें इस पॉजिशन के लिए योग्य समझा जाए. नोएल टाटा पर फिर से विचार करना भी काफी पेचीदा होगा. इससे यह भी समझा जाएगा कि पहले उनके नाम को इग्नोर करना एक बड़ी गलती थी. लेकिन उनके साथ टाटा सरनेम है, वह पारसी हैं और उनका संबंध मिस्त्री परिवार से भी है. नोएल टाटा को इस पद के लिए सलेक्ट करने से टाटा और मिस्त्री के बीच के संग्राम को भी रोका जा सकता है.
टाटा ग्रुप टाटा के मूल्यों और आदर्शों को लेकर फूला नहीं समाता, जो उनके संस्थापक पूर्वजों की चैरिटी के प्रति प्रतिबद्धता और पारसी मूल्यों पर आधारित ट्रस्टीशिप से आती है. यदि यही मर्म है तो बहस करना स्वाभाविक है कि रतन टाटा पारसी को लेकर पक्षपात जरूर करेंगे. यह थोड़ी संकीर्ण (और कहीं न कहीं तर्कहीन भी) सोच हो सकती है, लेकिन यही सच्चाई है.
कुर्सी पर नॉन पारसी भी बैठ सकता है?
अब नामों के बारे में. यह संभव है कि रतन टाटा ने पहले ही अगले चेयरमैन का चुनाव कर लिया हो, और सेलेक्शन कमिटी के चार महीने का वक्त सिर्फ एक प्रक्रिया भर हो. यदि ऐसा नहीं है तो, इसकी भी संभावनाएं हैं कि रतन टाटा का अंतरिम चेयरमैन का कार्यकाल तय वक्त से थोड़ा ज्यादा हो. एन चंद्रशेखरन और राल्फ स्पेल्थ को टाटा संस बोर्ड में शामिल करने के साथ ही ऐसी भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि एन चंद्रशेखरन चुन लिए गए लोगों में से एक हों. फिलहाल ये सारी अटकलें हैं. लेकिन अगर नॉन पारसी को इसके लिए चुना गया है तो यह लीक से हटके होगा.
रतन टाटा इसके लिए तैयार हैं?
अब कैसे भी, रतन टाटा के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द यह होने वाला है कि दो सबसे महत्वपूर्ण ट्रस्ट - सर रतन टाटा ट्रस्ट और सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट को कैसे संभाला जाए? उन्हें टाटा संस और टाटा ट्रस्ट के बीच के संबंधों की स्थिति साफ करनी होगी. अभी की परेशानी अनिश्चितता और डबल पावर सेंटर का भी नतीजा है. अपने एक्शन से रतन टाटा ने साफ संकेत दिया है कि टाटा संस पर कोई भी अंतिम फैसला टाटा ट्रस्ट का होगा. इन दोनों ट्रस्टों का पुनर्निमाण करना होगा, क्योंकि इसके ज्यादातर मेंबर काफी बुजुर्ग हो चुके हैं.
इसलिए, किसी वजह से रतन टाटा अगर टाटा संस के चेयरमैन के तौर पर नॉन पारसी को चुनते हैं तो दोनों ट्रस्टों का पुनर्निमाण जल्दी करना होगा. क्योंकि रतन टाटा को वह सब डिलीवर करना होगा, जिस 'टाटा परंपरा और नीति' पर वह उपदेश देते हैं और फिर ट्रस्ट के मोटो का क्या, जो देश में पॉजिटिव बदलाव लाने की बात करता है. सारे फैसले उस समय लेने होंगे जब पारसी समुदाय इस घटनाक्रम से आहत है.
रतन टाटा को याद रखना होगा कि उनकी विश्वसनियता दांव पर है और उनके हर फैसले की माइक्रोस्कोप से जांच होगी.
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