देशभर में कोरोना से मचे हाहाकर के बीच प्रधानमंत्री मोदी की अप्रुवल रेटिंग में तगड़ी गिरावट आई है. रॉयटर्स ने अपनी रिपोर्ट में दो सर्वे के हवाले से ये निष्कर्ष निकाला है कि पीएम मोदी की रेटिंग इतनी कभी नहीं गिरी जितनी हाल-फिलहाल के वक्त में गिर गई है.
वो पीएम मोदी जिनके नेतृत्व में बीजेपी 2014 में जीतकर सत्ता में आई. 2019 के लोकसभा चुनाव में पिछले चुनाव से भी बड़ी जीत हासिल करने में कामयाब रही. इस दौरान पीएम मोदी की छवि सबसे बड़े राष्ट्रवादी नेता के तौर पर देशभर में स्थापित हुई जो बेहद लोकप्रिय बताए जाते रहे हैं.
अब रिपोर्ट में पहला जिक्र US डेटा इंटेलीजेंस कंपनी मॉर्निंग कंसल्ट का है. मॉर्निंग कंसल्ट वैश्विक नेताओं की लोकप्रियता पर नजर रखती है. अगस्त 2019 से प्रधानमंत्री मोदी को भी ट्रैक कर रही है. इस कंपनी के ट्रैकर के मुताबिक, कोरोना वायरस के आंकड़ों में इस हफ्ते हुए इजाफे और केस के 2.5 करोड़ के पार पहुंच जाने और तमाम खामियों के रिपोर्ट होने के बाद मोदी के समर्थन में गिरावट देखने को मिली है.
मोदी की ओवरऑल रेटिंग इस हफ्ते 63% रही है, ये कंपनी जब से उन्हें ट्रैक कर रही है तब से अबतक इतनी कम रेटिंग कभी भी नहीं रही. अप्रुवल रेटिंग में 22 प्वाइंट की बड़ी गिरावट अप्रैल के महीने में देखने को मिली.
रॉयटर्स की रिपोर्ट में जिस दूसरे सर्वे का जिक्र है वो है- CVOTER. इस सर्वे के मुताबिक, मोदी की परफॉर्मेंस कैसी है? सवाल के जवाब में 'बहुत ज्यादा संतुष्ट' कैटेगरी को चुनने वाले गिरकर 37% हो गए हैं, करीब एक साल पहले इनका आंकड़ा 65% का था.
सीवोटर का डेटा ये बताता है कि सात साल में पहली बार, मोदी सरकार के प्रदर्शन पर असंतोष जताने वाले संतुष्ट लोगों से ज्यादा हैं. रॉयटर्स से बातचीत में CVOTER फाउंडर यशवंत देशमुख का कहना है कि अपने करियर की सबसे बड़ी राजनीतिक चुनौती का प्रधानमंत्री मोदी सामना कर रहे हैं.
हालांकि, सीवोटर का डेटा ये भी बताता है कि इस गिरावट के बावजूद भी मोदी देश के सबसे लोकप्रिय नेता बने हुए हैं. महामारी को रोकने के लिए सरकार ने जिस तरह का रवैया दिखाया है उसे भुनाने में विपक्ष नाकाम दिखा है.
अब ऐसी स्थिति क्यों आई?
देश की राजधानी दिल्ली, आर्थिक राजधानी मुंबई समेत अलग-अलग राज्यों में जो हलात देखे गए, उसे लेकर लोगों ने सोशल मीडिया पर जमकर गुस्सा दिखाया है. मीडिया से बातचीत में भी लोगों का वो गुस्सा साफ दिखता है.
राजधानी दिल्ली में ऑक्सीजन, बेड, अस्पताल के लिए मारामारी देखने को मिली है. श्मशानों में सैकड़ों जलते शव, नदियों में उतराते शव इन सबको देखकर लोग यही कह रहे हैं कि सरकारें जो कर रही हैं वो नाकाफी है और बेहतर तरीके से इस महामारी का सामना किया जा सकता था. हेल्थ सिस्टम को और मजबूत बनाया जा सकता था.
विपक्ष भी लगातार सरकार पर हमलावर है. राहुल गांधी, ममता बनर्जी समेत देश के तमाम विपक्षी पार्टियों के नेता इस कोरोना संकट को सरकार की नाकामियों का नतीजा करार दे रहे हैं. ट्विटर, फेसबुक समेत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भी बहसें चल रही हैं और सरकार के बारे में लोग जमकर लिख और बोल रहे हैं.
अभी लोगों में ये भी आशंका है कि दूसरी लहर कब तक रहेगी और कोरोना की तीसरी लहर के लिए हम कितने तैयार हैं? इसका कुछ पता नहीं है. पहली लहर के बाद दूसरी लहर में जिस तरीके से हेल्थ सिस्टम नाकाफी दिखा लोगों में तीसरी लहर के लिए भी डर और आशंका है, जिसका असर मोदी समेत सरकार पर पड़ रहा होगा.
(इनपुट: रॉयटर्स)
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