''प्रताप भानु मेहता और अरविंद सुब्रमण्यन का अशोका यूनिवर्सिटी छोड़ना दुखद खबर है.’’ यह कहना है, प्रोफेसर और वर्ल्ड बैंक के पूर्व चीफ इकनॉमिस्ट कौशिक बसु का.
हरियाणा के सोनीपत स्थित अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के पद से राजनीतिक विश्लेषक प्रताप भानु मेहता और जाने माने अर्थशास्त्री अरविंद सुब्रमण्यन के इस्तीफे के बाद इस मामले पर लगातार प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं.
कौशिक बसु ने ट्वीट कर कहा है, ''प्रताप भानु मेहता और अरविंद सुब्रमण्यन का अशोका यूनिवर्सिटी छोड़ना दुखद खबर है. सबसे अच्छे दिमाग जुझारू दिमाग, आलोचनात्मक दिमाग होते हैं. अगर हम इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते, तो हम रचनात्मकता को नुकसान पहुंचाते हैं. आखिर में कुछ गंवाने वाला देश है- उसकी अर्थव्यवस्था और विकास है. दुनियाभर में इसके पर्याप्त उदाहरण हैं.''
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा है, ‘’प्रताप भानु मेहता, शैक्षणिक समुदाय के लिए एक संपत्ति, को संस्था द्वारा ‘पॉलिटिकल लायबिलिटी’ के रूप में देखा गया. अरविंद सुब्रमण्यन ने भी मेहता के इस्तीफे को बेहद परेशान करने वाला बताते हुए इस्तीफा दे दिया. प्रतिरोध के आखिरी गढ़ भी ढह रहे हैं.’’
पत्रकार राणा अयूब ने इस मामले पर कटाक्ष करते हुए लिखा है, ''जब हमारे छात्रों को पढ़ाने के लिए हमारे पास प्रमुख उद्योगपतियों के जीवनसाथी मौजूद हैं, तो किसे प्रताप भानु मेहता की जरूरत है. तुच्छ मुद्दों पर नाराजगी जताना बंद करो.''
ब्राउन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और कॉलमिस्ट आशुतोष वार्ष्णेय ने लिखा है, ''अगर अशोका के फाउंडर्स को लगता है कि यह एक कंपनी थी क्योंकि उन्होंने इसमें इतना पैसा लगाया था, तो अब बात करते हैं बिजनेस की. प्रमुख अमेरिकी विश्वविद्यालयों में से कई अशोका के साथ पार्टनरशिप विकसित करने के बारे में सोच रहे थे और एक प्रमुख फाउंडर ब्राउन के साथ पार्टनरशिप के लिए मेरे पास आए थे. अब संभव नहीं.''
अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, संस्कृत स्कॉलर शेल्डन पोलोक ने इस मामले पर कहा, ‘’प्रोफेसर मेहता, यूनिवर्सिटी के अग्रणी स्कॉलर और पब्लिक इंटलेक्चुअल, के इस्तीफे के साथ संस्था के लिए मेरे सम्मान की गंभीरता से परीक्षा हुई है.’’ इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि यूनिवर्सिटी पर अपने प्रशंसकों का समर्थन खोने का खतरा है.
बता दें कि प्रताप भानु मेहता ने अशोका यूनिवर्सिटी से 16 मार्च को इस्तीफा दिया था. अपने फैसले को लेकर मेहता ने बताया था, ''एक राजनीति जो आजादी और सभी नागरिकों के लिए बराबर सम्मान के संवैधानिक मूल्यों का सम्मान करती है, उसके समर्थन में मेरे सार्वजानिक लेखन को यूनिवर्सिटी के लिए खतरा समझा जाने लगा था. यूनिवर्सिटी के हित में मैं इस्तीफा देता हूं.”
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)