सुप्रीम कोर्ट ने देश की जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी रखे जाने पर कड़ी आपत्ति जताई है. उन्होंने कहा कि कैदियों के भी मानवाधिकार हैं, उन्हें जानवरों की तरह जेल में नहीं रखा जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जेल में ऐसे कई कैदी हैं, जिन्हें जमानत मिल गई है, लेकिन जमानत राशि नहीं भरने की वजह से उन्हें रिहा नहीं किया गया है. वहीं कुछ लोग मामूली अपराधों के लिए जेल में हैं, जिन्हें काफी समय पहले जमानत मिल जानी चाहिए थी.
कैदियों को ठीक से नहीं रख सकते, तो रिहा कर दें
जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा, ‘‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जेलों में काफी भीड़ है. कैदियों के भी मानवाधिकार हैं और उन्हें जानवरों की तरह जेल में नहीं रखा जा सकता.''
पीठ ने कहा, ‘‘जेल सुधारों के बारे में बात करने का क्या मतलब है, जब हम उन्हें जेल में नहीं रख सकते. अगर आप उन्हें ठीक से नहीं रख सकते हैं, तो हमें उन्हें रिहा कर देना चाहिए.''
कोर्ट ने ये टिप्पणी उस वक्त की, जब उसे बताया गया कि देश के कई जेलों में निर्धारित संख्या से छह गुना अधिक लोग रखे गए हैं.
पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट 30-40 साल पहले कह चुकी है कि कैदियों के भी मानवाधिकार हैं. कोर्ट ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकार (NALSA) से 21 फरवरी को कहा था कि वह जेलों में काफी भीड़ के मुद्दे की पड़ताल करे और उसके सामने जेलों में आबादी के बारे में संख्या रखे, जहां पिछले साल 31 दिसंबर तक 150 फीसदी से अधिक लोगों को रखा गया था.
सुप्रीम कोर्ट देशभर के 1382 जेलों की अमानवीय स्थिति के बारे में याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
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