राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है. पद छोड़ने का ऐलान तो उन्होंने पहले ही कर दिया था. कई फेरों में कांग्रेस के दिग्गज नेता उनसे मिले और मान मुनव्वल की. लेकिन राहुल नहीं माने. कांग्रेस में मास रेजिगनेशन भी हुए, लेकिन राहुल नहीं माने और अब आखिर में अपने इस्तीफे की चिट्ठी सार्वजनिक कर दी. अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर वो करेंगे क्या? इशारा इस्तीफे की चिट्ठी में है। भविष्य का इशारा भूत भी दे रहा है.
राहुल क्या करेंगे? चिट्ठी से संकेत नंबर 1
अपने इस्तीफे की चिट्ठी में राहुल गांधी ने अपनी आगे की रणनीति को लेकर बड़ा संकेत दिया है. राहुल गांधी ने लिखा है -
प्यार और अपनेपन का भारत बनाने के लिए हम संघर्ष करेंगे. राष्ट्र के तानेबाने को बिगाड़ने के लिए हमारे देश और संविधान पर हमले किए जा रहे हैं. मैं इस संघर्ष से किसी भी सूरत में पीछे हटने नहीं जा रहा हूं. मैं पार्टी का एक वफादार सिपाही हूं, देश का समर्पित बेटा हूं और अंतिम सांस तक उसकी सेवा करता रहूंगा.राहुल गांधी की चिट्ठी का हिस्सा
चिट्ठी से संकेत नंबर 2
हमने चुनाव पूरी ताकत और सम्मान से लड़ा. हमारी मुहिम देश के सभी लोगों के लिए भाईचारे, समरसता और सम्मान के लिए थी. मैंने निजी तौर पर पीएम, आरएसएस और उन्होंने जिन संस्थाओं को हथिया लिया, उनके खिलाफ लड़ाई लड़ी. मैं लड़ा क्योंकि मुझे भारत से प्यार है. और मैं इसलिए लड़ा ताकि उन आदर्शों को बचाया जा सके, जिनसे भारत बना है. कई बार मैं बिल्कुल अकेला खड़ा रहा, और मुझे इसपर गर्व हैराहुल गांधी की चिट्ठी का हिस्सा
अब जरा पिछले महीने चलिए
खबरें आई थीं कि लोकसभा चुनाव 2019 में हार के दो दिन बाद यानी 25 मई को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में राहुल गांधी इस बात पर नाराज हुए थे कि पार्टी में कुछ नेता अपने रिश्तेदारों, खासकर बेटों को टिकट दिलाने और जीताने में लगे रहे. राहुल ने किसी का नाम तो नहीं लिया था लेकिन माना जा रहा था कि उनका इशारा राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत और मध्य प्रदेश के सीएम कमलनाथ की ओर था.
सवाल ये उठता है कि आखिर राहुल ने ये क्यों कहा कि कई बार वो अकेले लड़ रहे थे. और क्यों 25 मई की बैठक में राहुल ने कहा कि कुछ नेता अपने रिश्तेदारों के लिए बैटिंग करते रहे. क्या बीजेपी और एनडीए से जंग में राहुल गांधी का खुद उनकी ही पार्टी के कुछ नेताओं ने पूरा साथ नहीं दिया? राहुल की बातों से तो ऐसा ही लगता है.
अब जरा और पीछे चलिए
मार्च, 2018. कांग्रेस का महाधिवेशन था. पहली बार कोई नेता स्टेज पर नजर नहीं आ रहा था. सारे नेता स्टेज की नीचे की कुर्सियों पर बैठे थे। तब राहुल ने कहा था - नए लोगों के लिए कांग्रेस का स्टेज खाली है. इस बैठक के बाद गोवा के प्रदेश अध्यक्ष शांता राम नाइक ने इस्तीफा दे दिया था.तब 71 साल शांता राम ने कहा था कि वो राहुल गांधी से काफी प्रभावित हैं इसलिए नए लोगों को मौका देने के लिए कुर्सी छोड़ रहे हैं. लेकिन क्या 2019 का लोकसभा चुनाव की कमान कांग्रेस के नए नेताओं के हाथ में थी? नहीं।
अब बहुत पीछे चलिए
बात 1963 की है. तमिलनाडु के दिग्गज नेता कुमारास्वामी कामराज राज्य के सीएम थे. उन्होंने फार्मूला दिया था कि अगर पार्टी को जनता से जुड़ना है तो बड़े नेताओं को सत्ता से दूर जाकर पार्टी के लिए काम करना चाहिए. नतीजे ये हुआ कि कांग्रेस के 6 मुख्यमंत्रियों और 6 केंद्रीय मंत्रियों ने इस्तीफा दिया. इनमें जगजीवन राम, मोरारजी देसाई, बीजू पाटनायक, लाल बहादुर शास्त्री जैसे बड़े नेता थे.
आगे ये कर सकते हैं राहुल गांधी
कुल मिलाकर पिछले साल से अब तक हुई घटनाओं के बाद लग ये रहा है कि पार्टी नेताओं के रवैये से खफा राहुल गांधी पद तो छोड़ रहे हैं लेकिन पार्टी नहीं और पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिए वो कामराज प्लान पर काम कर सकते हैं.
चिट्ठी के आखिरी हिस्से में राहुल ने साफ लिखा है कि वो अब भी पार्टी के साथ रहेंगे. हो सकता है वो बिना किसी बड़े पद पर रहे पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिए ग्रासरूट लेवल पर काम करेंगे.
अगर वो बड़े पैमाने पर जनसंपर्क अभियान चलाएं या कार्यकर्ताओं को मोबिलाइज करें तो कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिए. बहुत समय नहीं हुआ जब राहुल गांधी ने समृद्ध भारत फाउंडेशन नाम से एक संस्था शुरू की है, ऐसे में ये भी हो सकता है कि वो इसके बैनर तले ही पार्टी को मजबूत करने का काम करें.
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