केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने 11 अक्टूबर को कहा कि अगर देश के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में प्रधानमंत्री की अहम भूमिका होती है, तो फिर जजों की नियुक्ति में प्रधानमंत्री की भूमिका क्यों नहीं हो सकती. प्रसाद ने दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में बोलते हुए जजों की नियुक्ति वाली मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल उठाए.
न्यूज एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक, उन्होंने कहा,
“जब देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के चुनाव में सबसे अहम भूमिका प्रधानमंत्री की होती है. मुख्य चुनाव आयुक्त, सीएजी, सीवीसी जैसे संवैधानिक पदों के लिए नियुक्तियों में प्रधानमंत्री की भूमिका होती है, सभी मंत्री उनके अधीन काम करते हैं तो क्या वह एक ईमानदार जज नहीं नियुक्त कर सकते.”रविशंकर प्रसाद, केंद्रीय कानून मंत्री
रविशंकर ने कहा, "प्रधानमंत्री देश की सुरक्षा, संप्रभुता का इंचार्ज होता है. परमाणु बम तब तक नहीं चलेगा, जब तक वह बटन नहीं दबाएगा, क्या इतनी अहम जिम्मेदारियां निभाने वाले प्रधानमंत्री से एक ईमानदार जज नियुक्त करने की अपेक्षा नहीं होनी चाहिए? मुझे सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आपत्ति है."
दरअसल रविशंकर सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का जिक्र कर रहे थे, जिसमें सरकार की ओर से जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की जगह सुझाए गए 6 सदस्यीय आयोग के गठन के फैसले को नकार दिया गया था.
कानून मंत्री ने कहा कि जिसे जनता चुनती है, उसे ही सरकार चलाने और कानून बनाने का हक होना चाहिए. उन्होंने कहा कि देश के संविधान में कॉलेजियम प्रणाली का जिक्र नहीं है, मगर 1991 से यह व्यवस्था अमल में आई.
उन्होंने सवाल उठाया, "1991 से पहले जब जजों को चुनने में भारत सरकार की भूमिका होती थी, तब क्या एक से बढ़कर एक, कृष्ण अय्यर, वेंकटरमण, जगमोहनलाल सिन्हा जैसे ईमानदार जज देश को नहीं मिले?"
पूर्व राज्यसभा सदस्य डॉ. महेश चंद्र शर्मा और राम बहादुर राय की लिखी बुक 'भारतीय संविधान-एक पुनरावलोकन' का विमोचन करते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा, "इस देश में अब तक सिर्फ चार प्रधानमंत्रियों को ही जनता ने चुना है. इनमें नेहरू, इंदिरा, अटल बिहारी और नरेंद्र मोदी हैं, बाकी सब कैसे चुने गए, कुछ कहने की जरूरत नहीं है." इसके अलावा उन्होंने कहा कि देश के लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका, प्रेस और स्वतंत्र सोच का होना बेहद जरूरी है.
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