Russia-Ukraine Crisis: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सोमवार, 21 फरवरी को पूर्वी यूक्रेन में रूस समर्थित दो अलगाववादी क्षेत्रों की स्वतंत्रता को मान्यता दे दी. पुतिन के इस विवादास्पद फैसले के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की आपात बैठक बुलाई गई. भारत ने इस बैठक में रूस की आलोचना किए बिना कहा कि यूक्रेन और रूस के बीच बॉर्डर पर तनाव का बढ़ना "गहरी चिंता का विषय" है.
एक तरफ जहां भारत अपने बॉर्डर पर चीन और पाकिस्तान के घुसपैठ की जोरदार वकालत संयुक्त राष्ट्र और UNSC में आये दिन करता है वहीं दूसरी तरफ रूस के इस चिंताजनक फैसले पर उसके “न्यूट्रल स्टैंड” का क्या मतलब निकलता है?
रूस पर चुप्पी पश्चिम को रास आएगी?
रूस के द्वारा लुहांस्क और डोनेट्स्क की स्वतंत्रता को मान्यता देने की घोषणा के बाद अमेरिका ने यहां नये निवेश, व्यापार और वित्तपोषण पर प्रतिबंध लगा दिया तो जर्मनी के चांसलर ने रूस से जर्मनी तक फैली नेचुरल गैस पाइपलाइन प्रोजेक्ट नॉर्ड स्ट्रीम 2 को सर्टिफाई करने से इनकार कर दिया.
लेकिन इसके विपरीत भारत ने UNSC पुतिन के इस कदम की निंदा नहीं की. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि, टी एस तिरुमूर्ति ने कहा कि
“रूस के साथ यूक्रेन की सीमा पर तनाव का बढ़ना गहरी चिंता का विषय है. इन घटनाओं में क्षेत्र की शांति और सुरक्षा को कमजोर करने की क्षमता है”
जाहिर तौर पर भारत अपने इस बयान को तटस्था (न्यूट्रल स्टैंड) के रूप में चित्रित करे, लेकिन अमेरिका के नेतृत्व वाला पश्चिमी गुट इसे उस रूप में देखेगा, इसपर विशेषज्ञों को संदेह है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रूस के इस निर्णय को व्यापक तौर पर एक संप्रभु देशकी क्षेत्रीय अखंडता के उल्लंघन, अंतरराष्ट्रीय कानून और समझौतों के उल्लंघन के रूप में देखा जा रहा है.
भारत के स्टैंड में डिप्लोमेसी पर जोर
भारत ने "सभी पक्षों" से जल्द से जल्द समाधान तक पहुंचने के लिए राजनयिक प्रयास तेज करने को कहा है. यह भी अंतरराष्ट्रीय डिप्लोमेसी में भारत का एक पुराना स्टैंड रहा है, जहां वह संकट की स्थिति में उकसावे के लिए किसी एक पक्ष को दोष देने से परहेज करता है.
"... हम सभी पक्षों से संयम बरतते हुए अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए और पारस्परिक रूप से समाधान पर जल्द से जल्द पहुंचने के लिए राजनयिक प्रयास तेज करने की आवश्यकता पर जोर देते हैं”.UNSC में भारत
खास बात है कि भारतीय बयान में कहीं भी "क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता" जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया गया था, जैसा कि वह हमेशा चीन के आक्रामक व्यवहार के बारे में जिक्र करता है. पश्चिम में कई देश इसे रूसी कार्रवाई की निंदा न करने और दोहरे मानदंडों को लागू करने के रूप में देख सकते हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)