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आठ साल की जंग,टूटते समझौते- रूस ने लुहांस्क और डोनेट्स्क को यूक्रेन से कैसे तोड़ा

Russia-Ukraine Crisis: पुतिन ने यूक्रेन के दो अलगाववादी राज्यों Luhansk, Donetsk की स्वतंत्रता को मान्यता दी

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Russia-Ukraine Crisis: यूक्रेन पर रूसी सैन्य हमले की आशंकाओं को अबतक का सबसे बड़ा बल मिला है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन Vladimir Putin) ने सोमवार, 21 फरवरी को पूर्वी यूक्रेन के 2 विद्रोही क्षेत्र- लुहांस्क और डोनेट्स्क (Luhansk & Donetsk)- की स्वतंत्रता को मान्यता देने की घोषणा कर दी.पुतिन के इस फैसले ने रूस समर्थित अलगाववादियों द्वारा नियंत्रित इन क्षेत्रों को वैश्विक चर्चा के बीचो-बीच रख दिया है. ऐसे में हम आपको बताते हैं कि 2014 के बाद दोनों क्षेत्र यूक्रेन से कैसे और क्यों अलग होते गए.

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आठ साल की जंग

डोनेट्स्क पीपल्स रिपब्लिक और लुहांस्क पीपल्स रिपब्लिक के रूप में खुद को यूक्रेन से अलग स्वतंत्र गणराज्य घोषित करने वाले इन क्षेत्रों में यूक्रेन की सेनाएं और रूस समर्थित अलगाववादी पिछले आठ साल से लड़ रहे हैं. इन संघर्षों में 14,000 से अधिक लोग मारे गए हैं.

अब आपको ले चलते हैं ठीक 8 साल पीछे. जब फरवरी 2014 में यूक्रेन में रूस समर्थित राष्ट्रपति को भारी विरोध-प्रदर्शनों के बाद पद से हटा दिया गया था. रूस ने इसके जवाब में यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया.

इसके बाद रूस ने पूर्वी यूक्रेन में मौजूद डोनबास में क्षेत्र में हो रहे अलगाववादी विद्रोह को अपना समर्थन देना शुरू कर दिया. डोनबास में ज्यादातर रूसी भाषी और रूसी जनजाति के लोग रहते हैं और इसी के अंदर लुहांस्क और डोनेट्स्क शहर मौजूद हैं.

रूस के इसी समर्थन के बल पर अप्रैल 2014 में विद्रोहियों ने डोनेट्स्क और लुहांस्क क्षेत्रों में सरकारी भवनों को अपने कब्जे में ले लिया. रूस समर्थित विद्रोहियों ने दोनों क्षेत्रों को पीपल्स रिपब्लिक बनाने की घोषणा की और यूक्रेनी सैनिकों से लड़ते रहे.

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मई 2014 में अलगाववादी क्षेत्रों ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा करने और रूस का हिस्सा बनने के लिए जनमत संग्रह कराया. खास बात है कि मॉस्को ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया और सिर्फ यूक्रेन पर अपना दबाव बनाए रखने और इसे नाटो में शामिल होने से रोकने के लिए एक हथकंडे के रूप में दोनों क्षेत्रों का उपयोग करता रहा है.

यूक्रेन और पश्चिमी शक्तियों ने रूस पर सैनिकों और हथियारों के साथ विद्रोहियों का समर्थन करने का आरोप लगाया लेकिन मॉस्को ने इस बात से इनकार किया.

मलेशिया एयरलाइंस की फ्लाइट पर हमला, 298 मौत और मिंस्क समझौता

यूक्रेन की सेना और रूस समर्थित अलगाववादियों के बीच हिंसक लड़ाई के बीच मलेशिया एयरलाइंस की एक फ्लाइट को 17 जुलाई 2014 को पूर्वी यूक्रेन में मार गिराया गया था. फ्लाइट में सवार सभी 298 लोग मारे गए थे. अंतरराष्ट्रीय जांच में निष्कर्ष निकला कि इस फ्लाइट को यूक्रेन में विद्रोही-नियंत्रित क्षेत्र से रूस द्वारा दी गई मिसाइल से मार गिराया गया था. हालांकि मॉस्को ने आज तक इसमें हाथ होने से इनकार किया है.

अगस्त 2014 में यूक्रेनी सैनिकों की भारी हार के बाद, यूक्रेन की सरकार, विद्रोहियों और यूरोप में सुरक्षा और सहयोग संगठन (Organisation for Security and Cooperation in Europe) ने सितंबर 2014 में बेलारूस की राजधानी मिंस्क में संघर्ष विराम समझौते पर हस्ताक्षर किया.
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एक और लड़ाई, एक और समझौता

हालांकि मिंस्क समझौता जल्द ही टूट गया और पूर्वी यूक्रेन में एक बार फिर बड़े पैमाने पर लड़ाई शुरू हो गई. जनवरी-फरवरी 2015 में डेबाल्टसेव में यूक्रेनी सेना को एक और बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा.

फ्रांस और जर्मनी की मध्यस्थता में एक और शांति समझौता हुआ, जिस पर फरवरी 2015 में यूक्रेन, रूस और विद्रोहियों के प्रतिनिधियों ने बेलारूस की राजधानी मिंस्क में ही हस्ताक्षर किए थे.

इसमें एक नए युद्धविराम, भारी हथियारों को हटाने और राजनीतिक समझौता स्थापित करने पर सहमति जताई गयी.

2015 का यह शांति समझौता रूस के लिए बड़ी कूटनीतिक सफलता थी. इस समझौते ने यूक्रेन को अलगाववादी क्षेत्रों को विशेष दर्जा देने के लिए बाध्य किया. दोनों क्षेत्र अब आधिकारिक तौर पर खुद पुलिस बल बना सकते थे और स्थानीय अभियोजकों-जजों की नियुक्ति में भी उनके अधिकार बढ़ा दिए गए थे.

कई यूक्रेनवासी इसे राष्ट्रीय हितों के साथ सरकार के विश्वासघात के रूप में देखते हैं. मिंस्क समझौता ने बड़े पैमाने पर लड़ाई को तो समाप्त करने में मदद की लेकिन स्थिति अब भी तनावपूर्ण बनी हुई है और समय समय पर हिंसक झड़पें जारी हैं.

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समझौते में दरार और पुतिन का फैसला

यूक्रेन के बॉर्डर के पास बढ़ते रूसी सैनिकों की तैनाती और बढ़ते तनाव के बीच, फ्रांस और जर्मनी ने 2015 के मिंस्क समझौते के अनुपालन को प्रोत्साहित करने के लिए नए सिरे से प्रयास शुरू किए.

मिंस्क समझौते के लिए आलोचना झेल रही यूक्रेन की सरकार ने इस विरोध को और हवा दी. खुद कहने लगी कि इस समझौते से देश ही खत्म हो सकता है. रूस, यूक्रेन, फ्रांस और जर्मनी के बीच पेरिस और बर्लिन में दो दौर की वार्ता के बाद भी कोई प्रगति नहीं हुई है.

रूस-यूक्रेन संकट के बीच रूसी संसद के निचले सदन ने पिछले सप्ताह राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से यूक्रेन के विद्रोही क्षेत्रों की स्वतंत्रता को मान्यता देने को कहा और सोमवार, 21 फरवरी को पुतिन ने ऐसा करके सबको चौका दिया.

पुतिन द्वारा विद्रोहियों के कब्जे वाले लुहांस्क और डोनेट्स्क- की स्वतंत्रता को मान्यता देने के बाद मिंस्क शांति समझौता प्रभावी रूप से समाप्त माना जा रहा है.

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