पिछले साल 11 अगस्त का दिन, कोरोना महामारी चरम पर, ऐसे में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ऐलान करते हैं कि दुनिया की सबसे पहली कोविड वैक्सीन रजिस्टर हो गई है. खबर खुशी देने वाली थी लेकिन पुतिन और रूस को प्रतिक्रिया में शक और निंदा मिली. रूस ने इस वैक्सीन को Sputnik V नाम दिया था. सवाल उठ रहे थे कि रूस ने ठीक से ट्रायल नहीं किए हैं, रेगुलेटरी प्रक्रिया में खामी है और वैक्सीन प्रभावी है भी या नहीं. इस बात को 7 महीने बीत चुके हैं और अब इस वैक्सीन को भारत समेत 60 देशों में मंजूरी मिल चुकी है. पुतिन वैक्सीन डिप्लोमेसी के 'विजेता' बन कर उभरे हैं.
अगस्त, सितंबर के महीनों में WHO से लेकर अमेरिका और यूरोपियन यूनियन तक व्लादिमीर पुतिन और रूस को शक की नजरों से देख रहे थे. Sputnik V को एक तरह से ‘अछूत’ बना दिया गया था. उस समय 25 कोरोना वैक्सीन कैंडिडेट ट्रायल स्टेज में थे.
रूस ने उस समय कोई जवाब नहीं दिया. फिर फरवरी 2021 आया और Sputnik V ने सभी आलोचकों के मुंह बंद कर दिए. 20,000 से ज्यादा लोगों की एक स्टडी में वैक्सीन 91.6 फीसदी प्रभावी पाई गई थी.
सात महीनों में रूस ने कैसे बदला नजरिया?
अगस्त 2020 में जब पुतिन ने Sputnik V का ऐलान किया था, उस समय अमेरिका और यूरोप पर महामारी का कोई इलाज या वैक्सीन देने का दबाव था. ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन फेज 3 ट्रायल में थी. वहीं, जॉनसन एंड जॉनसन का फेज 1 और 2 का ट्रायल चल रहा था.
Sputnik V का ऐलान उसके फेज 3 ट्रायल्स से पहले ही कर दिया गया था. वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने इसे एक बड़ी सुरक्षा चूक बताया था. WHO ने भी रूस से वैक्सीन बनाने के लिए इंटरनेशनल गाइडलाइन का पालन करने के लिए कहा था.
व्लादिमीर पुतिन ने इस वैक्सीन को विश्वसनीय दिखाने के लिए कहा था कि उनकी बेटी को भी इसकी डोज दी गई है और वो ठीक है. पुतिन ने बेटी को वैक्सीन से एक बड़ा दांव खेला था.
Sputnik V के प्रोडक्शन के लिए रूस के सॉवरेन फंड रशियन डेवलपमेंट इंवेस्टमेंट फंड (RDIF) ने पैसा दिया था. ऐलान के कुछ समय बाद ही RDIF ने लैटिन अमेरिका से लेकर पूर्वी यूरोप के बेलारूस, सर्बिया जैसे देशों में भेजना शुरू कर दिया.
इस बीच रूस में वैक्सीन के तीसरे फेज का ट्रायल चल रहा था. फरवरी 2021 में प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल द लांसेट में इसके नतीजे छपे. वैक्सीन की प्रभावकारिता 91.6 फीसदी पाई गई थी. लांसेट ने लिखा था कि Sputnik V गंभीर बीमारी से बचाती है. ये इस वैक्सीन के लिए टर्निंग पॉइंट था.
यूरोप में भी Sputnik V का बोलबाला
यूनाइटेड किंगडम में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और Astrazeneca ने मिलकर कॉमन कोल्ड वायरस वेक्टर-आधारित वैक्सीन बनाई थी. हालांकि, इस वैक्सीन के 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में गंभीर साइड इफेक्ट और सभी उम्र के लोगों में ब्लड क्लॉटिंग की शिकायत आ रही हैं.
ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन से अलग हो चुका है और उस पर यूनियन के देशों में वैक्सीन सप्लाई करने की कोई अनिवार्यता नहीं है. इन देशों में वैक्सीनेशन प्रोग्राम हद से ज्यादा धीमे चल रहा है क्योंकि कोविड वैक्सीनों की कमी है.
इसकी वजह से कई देश अब रूस की तरफ देख रहे हैं. यूरोपियन यूनियन के मेडिकल रेगुलेटर यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी (EMA) ने मार्च 2021 में Sputnik V की समीक्षा शुरू की थी.
वहीं, मार्च के अंत में जर्मनी और फ्रांस ने रूस से इस वैक्सीन को खरीदने की बातचीत की थी. जर्मनी इस बात के लिए भी तैयार है कि अगर EU इस वैक्सीन को नहीं खरीदता है तो वो द्विपक्षीय समझौते में इसे हासिल करेगा.
EU यूरोपियन देशों में वैक्सीन पहुंचाने में नाकाम रहा है. वो अपने समूह के बाहर से वैक्सीन खरीदने में कतरा रहा है, लेकिन महामारी का प्रकोप देखते हुए पश्चिमी यूरोप के देश भी अब उसकी खिलाफत कर सकते हैं.
इस बीच रूस ने सक्रियता दिखाते हुए मार्च की शुरुआत में यूरोप में पहली प्रोडक्शन डील कर डाली थी. RDIF ने इटली के मिलान में Sputnik V मैन्युफेक्चर करने का करार किया था.
वैक्सीन डिप्लोमेसी में ली सोशल मीडिया की मदद
रूस ने वैक्सीन डिप्लोमेसी में बादशाहत हासिल करने में सोशल मीडिया का बखूबी इस्तेमाल किया है. Sputnik V को शक और सवालों के दायरे से विश्वसनीयता का नया नाम बनाने में पुतिन ने कोई कसर नहीं छोड़ी.
Sputnik V अकेली ऐसी वैक्सीन है, जिसका ट्विटर, फेसबुक और YouTube अकाउंट है. ट्विटर पर इसके 2.9 लाख से ज्यादा फॉलोवर हैं.
फॉर्च्यून वेबसाइट की मार्च की एक रिपोर्ट कहती है कि ट्विटर पर ग्रैमी विजेताओं या नई NFL डील के बारे में सर्च करने पर Sputnik V के अकाउंट को फॉलो करने के पेड सुझाव मिलते थे.
रूस ने अपनी वैक्सीन की एक ऑनलाइन शख्सियत तैयार कर दी थी. ट्विटर पर इसका अकाउंट अगस्त 2020 से है. मतलब कि फरवरी 2021 में द लांसेट में Sputnik V पर स्टडी छपने से पहले ही इसकी छवि सुधारने का काम शुरू हो चुका था.
RDIF के सीईओ ने कहा था, "हमारा सोशल मीडिया कैंपेन ग्लोबल ऑडियंस को हमारी वैक्सीन पर कोशिशों को लेकर नई जानकारी देता रहेगा." हालांकि, इसका काम यहीं तक सीमित नहीं रहा. ट्विटर अकाउंट पर विरोधी वैक्सीन को लेकर छपी प्रतिकूल न्यूज रिपोर्ट भी शेयर की गई हैं.
20 मार्च को Sputnik V के ट्विटर अकाउंट पर वॉल स्ट्रीट जर्नल का वो आर्टिकल शेयर किया गया, जिसमें AstraZeneca वैक्सीन से ब्लड क्लॉट के खतरे का जिक्र था.
साफ है कि रूस ने अपनी वैक्सीन का एक पीआर कैंपेन चलाया, जिसके जरिए इससे जुड़े शक-शुबहे दूर किए गए, अपने पक्ष में माहौल बनाया गया और सबसे बड़ी बात कि अपने विरोधियों से इनोवेशन और सूचना प्रसारण के मामले में आगे निकला गया.
कैसे काम करती है वैक्सीन?
Oxford-AstraZeneca वैक्सीन की तरह ही Sputnik V भी कॉमन कोल्ड वायरस एडिनोवायरस-वेक्टर आधारित वैक्सीन है. इसमें कोरोना वायरस का स्पाइक प्रोटीन बनाने का जेनेटिक निर्देश है, जिससे ये शरीर में जाकर इम्यून प्रतिक्रिया शुरू करती है.
Sputnik V की भी दो डोज लगाई जाती हैं, जिनके बीच 21 दिन का अंतर रखा जाता है.
खास बात ये है कि दोनों डोज में एडिनोवायरस के अलग-अलग स्ट्रेन का इस्तेमाल होता है. आसान भाषा में कहा जा सकता है कि Sputnik V की दोनों डोज अलग होती हैं.
वैक्सीन डेवलपर्स का कहना है कि ऐसा करने से ताकतवर इम्युन प्रतिक्रिया पैदा होती है. उनका तर्क है कि दूसरी डोज में अलग स्ट्रेन के इस्तेमाल से सुनिश्चित होता है कि शरीर पहले वेक्टर के लिए प्रतिरोध न पैदा कर पाए.
Sputnik V वैक्सीन को दो से आठ डिग्री सेल्सियस (35.6 से 46.4 डिग्री फारेनहाइट) तापमान पर स्टोर किया जा सकता है.
रूस का पीआर और पुतिन की वैक्सीन डिप्लोमेसी एक तरफ, Sputnik V की प्रभावकारिता और सुगमता इसे एक अच्छा विकल्प बनाती है. साथ ही RDIF प्रोडक्शन बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है. भारत में 5 मैन्युफेक्चरर इसका प्रोडक्शन करेंगे, जिससे सालाना 852 मिलियन डोज उपलब्ध होंगी. खबरें ये भी हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन मैन्युफेक्चरर सीरम इंस्टीट्यूट भी RDIF से समझौता कर सकता है. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि Sputnik V का आने वाले समय में क्या बोलबाला होने वाला है.
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