सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में अवैध इमारतों की सीलिंग पर निर्देशों का कथित रूप से उल्लंघन करने के मामले में बीजेपी की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष और पार्टी सांसद मनोज तिवारी से नाराजगी जताई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सांसद होने से उन्हें कानून अपने हाथ में लेने की आजादी नहीं मिल जाती.
दिल्ली के मास्टर प्लान का उल्लंघन करते हुए चल रहे एक परिसर की सील कथित तौर पर हटाने के मामले में मनोज तिवारी को अवमानना नोटिस जारी किया गया था. इसके बाद वे मंगलवार को अदालत में पेश हुए.
‘1000 प्रॉपर्टी की लिस्ट दो, आपको बना देंगे सीलिंग अधिकारी’
सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी सांसद मनोज तिवारी के उस बयान पर नाराजगी जताई, जिसमें उन्होंने कहा था कि निगरानी समिति एक हजार अवैध भवनों को सील नहीं कर रही है. जस्टिस मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने मनोज तिवारी को दिल्ली में सीलिंग के मामले में एक न्यूज चैनल से बातचीत में किये गये इस दावे पर स्पष्टीकरण देने को कहा. साथ ही मामले में एक सप्ताह के अंदर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया.
पीठ में न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता भी शामिल हैं. पीठ ने कहा:
‘‘मिस्टर तिवारी, आप अपनी सीडी में कह रहे हैं कि एक हजार जगह ऐसी हैं, जिन्हें सील किये जाने की जरूरत है. हमें इन जगहों की लिस्ट दें. हम आपको सीलिंग अधिकारी बनाएंगे.’’
उत्तर-पूर्व दिल्ली से लोकसभा सदस्य मनोज तिवारी के खिलाफ पूर्वी दिल्ली नगर निगम ने गोकुलपुरी इलाके में एक परिसर की कथित तौर पर सील हटाने के मामले में प्राथमिकी दर्ज कराई थी.
‘सांसद होने से नहीं मिल जाती कानून हाथ में लेने की आजादी’
मनोज तिवारी की ओर से वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि बीजेपी नेता ने कोई सील नहीं हटाई और सांसद होते हुए उन्होंने कभी सीलिंग प्रक्रिया को बाधित भी नहीं किया. वकील ने कहा कि उन्हें विस्तृत जवाब देने के लिए समय चाहिए होगा. इस पर कोर्ट ने कहा:
‘हम आपसे पूछ रहे हैं, क्या आपने सीडी देखी है? सीडी में वह कह रहे हैं कि एक हजार जगहें ऐसी हैं, जहां सीलिंग की जरूरत है. वह संसद सदस्य हैं. इससे उन्हें कानून हाथ में लेने की आजादी नहीं मिल जाती.’
कोर्ट ने मनोज तिवारी को 3 अक्टूबर को पेश होने का निर्देश दिया, जब मामले में अगली सुनवाई होगी. इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बनी निगरानी समिति की दाखिल रिपोर्ट को गंभीरता से लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पहले कहा था कि ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोई जनप्रतिनिधि शीर्ष अदालत के आदेशों की अवमानना करता है.
अदालत ने समिति की रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए कहा कि यह चिंताजनक स्थिति को दर्शाती है. निगरानी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘‘इस अदालत के बार-बार दिये गये निर्देशों के बावजूद राजनीतिक दलों के सदस्य और ऐसे अन्य लोग जानबूझकर अदालत के निर्देशों की अवहेलना कर रहे हैं और राजनीतिक फायदों के लिए उनके प्रति असम्मान प्रकट कर रहे हैं.''
तिवारी पर सीलिंग प्रॉपर्टी की सील तोड़ने का आरोप
दिल्ली सीलिंग मामले में न्यायमित्र के रूप में अदालत को सहयोग दे रहे वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने समिति की रिपोर्ट पीठ के सामने रखी थी और कहा कि डेयरी के रूप में इस्तेमाल की जा रही जगह की सीलिंग कथित तौर पर हटाने के मामले में तिवारी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी है. रंजीत कुमार ने बताया था कि परिसर को दोबारा सील कर दिया गया है और घटना का वीडियो समिति की रिपोर्ट के साथ लगा दिया गया है.
समिति ने मामले में कड़ी कार्रवाई की सिफारिश की है. निगरानी समिति में चुनाव आयोग के पूर्व सलाहकार केजे राव, पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण के अध्यक्ष भूरेलाल और मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) सोम झींगन हैं. कोर्ट ने 24 मार्च, 2006 को समिति का गठन किया था. सुप्रीम कोर्ट अनधिकृत निर्माण कार्यों को सीलिंग से बचाने वाले ‘दिल्ली कानून (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2006' और उसके बाद के अन्य कानूनों की वैधता से जुड़े मुद्दों पर भी विचार कर रहा है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)