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दो टुकड़े होने से कैसे चलेगा जम्मू-कश्मीर का प्रशासन? यहां समझिए

आर्टिकल 370 हटाने के फैसले को राष्ट्रपति से मंजूरी भी मिल गई है और जम्मू-कश्मीर राज्य दो भागों में बंट गया है

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भारत
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केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने का फैसला किया, जिसे राष्ट्रपति से मंजूरी भी मिल गई है. इसी के साथ जम्मू-कश्मीर राज्य दो भागों में बंट गया है.

  • जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश
  • लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश

केंद्र सरकार ने जो ब्योरा दिया है उसमें जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनाए जाने के अलग-अलग कारण दिए गए हैं. लद्दाख के लिए ये तर्क दिया गया कि "ये लद्दाख के लोगों की बहुत लंबे समय से मांग थी कि उसे केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिले, जिससे लोगों को अपनी महत्वाकांक्षाओं का एहसास हो."

हालांकि, जम्मू-कश्मीर के लिए अमित शाह ने "राज्य में सीमा पार से आतंकवाद की वजह से बिगड़ी आंतरिक सुरक्षा" का हवाला दिया.

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लद्दाख की अपनी विधानसभा नहीं होगी

लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश में कारगिल और लेह जिले आएंगे जबकि बाकी का हिस्सा जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में आएगा.
  • लद्दाख की अपनी विधानसभा नहीं होगी, लेकिन जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभा होगी.
  • जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक दोनों ही केंद्र शासित प्रदेशों के लेफ्टिनेंट गवर्नर होंगे.
  • जम्मू-कश्मीर से राज्यसभा में 4 प्रतिनिधि होंगे वहीं लद्दाख से उच्च सदन में कोई प्रतिनिधि नहीं होगा.
  • लोकसभा की बात करें तो जम्मू-कश्मीर में 5 सीट होगी वहीं लद्दाख के पास एक.

पुदुचेरी की तरह काम करेगा जम्मू-कश्मीर

  • दिल्ली नहीं, पुदुचेरी की तर्ज पर काम करेगा केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर. जम्मू-कश्मीर में कोई विधान परिषद नहीं होगा. मतलब यहां कोई उच्च सदन नहीं होगा.
  • जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभा में कुल 107 सीटें होंगी, जो पिछली विधानसभा से 4 कम हैं. इनमें से 24 सीटें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के इलाकों से संबंधित हैं और ये इस इलाके में कब्जा खत्म होने तक खाली रहेंगी. इससे पहले भी इन सीटों की यही स्थिति थी. इसीलिए, असल में नई विधानसभा में चुनाव के लिए 83 सीटें ही होंगी.
  • एक महत्वपूर्ण बात ये है कि इस नई विधानसभा में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण होगा. पूरे देश की तरह अब जम्मू-कश्मीर में भी आरक्षण लागू होगा. इसी सिलसिले में इलाके के आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए 10% आरक्षण का एक अलग बिल भी संसद में पास हो गया. ये जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे पर एक और वार था.
  • जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश की नई विधानसभा में सदस्य 5 साल के लिए चुने जाएंगे. पिछली विधानसभा में विधायक 6 साल के लिए चुने जाते थे.
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नए केंद्र शासित राज्यों पर कौन से कानून होंगे लागू?

  • संसद के पास दोनों केंद्र शासित राज्यों के लिए कानून बनाने का पूरा अधिकार होगा.
  • केंद्र शासित राज्य जम्मू-कश्मीर की विधानसभा सभी विषयों पर कानूनी मसौदे बना सकती है. हालांकि, ट्रेड और कॉमर्स के मामलों में केंद्र शासित राज्य सीमित फैसले ले सकते हैं, और ऐसा ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के साथ भी होगा.
  • आर्टिकल 370 के तहत संसद द्वारा तैयार जो कानून पूरे देश में लागू होते थे, वे जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा.
  • बड़े बदलावों में भारतीय दंड संहिता है, जो कश्मीर के रणबीर दंड संहिता की जगह लेगी. साथ ही संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम 1882 भी स्थानीय कानून की जगह लेगा. हिंदू विवाह अधिनियम और मुस्लिम विवाह अधिनियम के विघटन सहित संहिताबद्ध केंद्रीय व्यक्तिगत कानून भी अब लागू होंगे, जो विवाद का कारण बन सकते हैं.
  • जम्मू-कश्मीर में संविधान के जो प्रावधान अब तक लागू नहीं होते थे, वो भी अब लागू होंगे. जैसे आर्टिकल 360 यानी आर्थिक आपातकाल. अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दोनों ही केंद्र शासित राज्यों में सीधे राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है. जबकि अब तक जम्मू-कश्मीर में पहले एक निश्चित समय तक के लिए राज्यपाल शासन लागू होता था और उसके बाद राष्ट्रपति शासन का प्रावधान था.
  • जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के लिए अलग से पासपोर्ट अब वैध नहीं होगा.
  • जम्मू - कश्मीर के नागरिकों के अलग पासपोर्ट अब मान्य नहीं होंगे. साथ ही जम्मू-कश्मीर के संविधान को प्रभावी ढंग से निष्क्रिय भी किया गया है.

मंत्रिपरिषद और लेफ्टिनेंट गवर्नर

  • जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में लेफ्टिनेंट गवर्नर की सहायता करने और उन्हें सलाह देने के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाला एक मंत्रिपरिषद होगा.,
  • 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसी कैबिनेट की 'सहायता और सलाह' लेफ्टिनेंट गवर्नर को माननी पड़ेगी. यहां भी ऐसा ही होगा. हालांकि, केंद्र ने लेफ्टिनेंट गवर्नर के लिए काम की आजादी की काफी गुंजाइश रखी है.
  • बिल में वो मुद्दे भी हैं जिन पर लेफ्टिनेंट गवर्नर विधानसभा के फैसले को बदल सकते हैं. बता दें कि ऑल इंडिया सर्विस और एंटी-करप्शन ब्यूरो जैसे मुद्दों पर दिल्ली सरकार और लेफ्टिनेंट गवर्नर के बीच खींचतान रही थी.

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