ADVERTISEMENTREMOVE AD

IIT से यूनिवर्सिटी तक भेदभाव ले रहा दलित-आदिवासी की जान-पिछले 9 साल का हाल

दलित-आदिवासी छात्रों की सुसाइड की बढ़ती घटनाओं को लेकर चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कई अहम सवाल उठाए हैं.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

बात है 17 जनवरी 2016 की. जगह थी यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद. खबर आती है कि एक पीएचडी छात्र की आत्महत्या से मौत हो गई है. वो छात्र था रोहित वेमुला. जाति से दलित. आरोप लगा कि रोहित की जान यूनिवर्सिटी एडिमिनिस्ट्रेशन के जातिगत भेदभाव और प्रताड़ना की वजह से गई. उस वक्त देशभर में दलित और पिछड़ी जाति से जुड़े छात्रों के साथ हुए भेदभाव को लेकर आवाज उठी थी. अब करीब 7 साल बाद देश के बड़े यूनिवर्सिटी और कॉलेज में दलित-आदिवासी छात्रों की सुसाइड की बढ़ती घटनाओं को लेकर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ ने भी कई अहम सवाल उठाए हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अभी हाल ही में आईआईटी बॉम्बे में बीटेक फर्स्ट ईयर में पढ़ रहे एक दलित स्टूडेंट दर्शन सोलंकी की कथित आत्महत्या की घटना का जिक्र करते हुए भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हाशिए पर रहने वाले वर्गों के छात्रों के बीच आत्महत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं और शोध से पता चला है कि ऐसे ज्यादातर छात्र दलित और आदिवासी समुदायों से हैं.

उन्होंने आगे कहा,

"देश के वरिष्ठ शिक्षाविदों में से एक सुखदेव थोराट ने कहा है कि आत्महत्या से मरने वाले अधिकांश छात्र दलित और आदिवासी हैं और यह एक पैटर्न दिखाता है जिस पर हमें सवाल उठाना चाहिए. 75 वर्षों में हमने प्रतिष्ठित संस्थान बनाने पर ध्यान केंद्रित किया है, लेकिन इससे भी अधिक हमें समानुभूति के संस्थान बनाने की जरूरत है. मैं इस पर इसलिए बोल रहा हूं क्योंकि भेदभाव का मुद्दा सीधे तौर पर हमदर्दी की कमी से जुड़ा है."

बता दें कि जब CJI द नेशनल एकेडमी ऑफ लीगल स्टडीज एंड रिसर्च (एनएएलएसएआर) में दीक्षांत समारोह में बोल रहे थे उस वक्त तेलंगाना के हैदराबाद में आदिवासी समाज से आने वाली मेडिकल स्टूडेंट प्रीति (26) अपनी जिंदगी और मौत से जंग लड़ रही थी और अगले ही दिन उसकी मौत हो गई. दरअसल, रैगिंग से तंग आकर कथित तौर पर अपनी जान लेने की कोशिश की थी.

7 साल में सेंट्रल यूनिवर्सिटी, IIT, IIM में 122 छात्रों की मौत, 24 SC छात्र

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने साल 2021 में लोकसभा में बताया था कि साल 2014 से लेकर 2021 के बीच IIT, IIM, NIT और देश भर के सेंट्रल यूनिवर्सिटी समेत देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में करीब 122 से अधिक छात्रों की मौत आत्महत्या से हुई है.

साल 2014 से 2021 के बीच 122 खुदकुशी करने वालों में से 68 छात्र रिजर्व कैटेगरी से आते थे. जिसमें 24 छात्र दलित यानी अनुसूचित जाति और 41 छात्र ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग से थे, और तीन छात्र एसटी यानी अनुसूचित जनजाति थे.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

जातिगत भेदभाव का शिकार हुई थी पायल तडवी

दर्शन सोलंकी, प्रीति, अनिकेत अम्बोरे के अलावा पायल तडवी की आत्महत्या का मामला भी सामने आ चुका है. पायल 22 मई 2022 को कथित तौर पर अपनी सीनियर्स की रैगिंग से परेशान थीं. मुंबई के टीएन टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल में खुदकुशी से उनकी मौत हो गई थी. पायल इस कॉलेज में मेडिकल पोस्ट ग्रेजुएट स्टूडेंट थीं.

पायल की मां ने तब क्विंट हिंदी को बताया था कि पायल की 3 सीनियर लगातार उनकी रैगिंग कर रही थीं और जातिसूचक बातें भी कही जा रही थीं. पायल के परिवार का कहना था कि कॉलेज प्रशासन ने अगर उनकी शिकायतों को गंभीरता से लिया होता, तो शायद आज पायल इस दुनिया में होतीं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

IIT बॉम्बे में पहले भी दलित छात्र की आत्महत्या का मामला आ चुका है सामने

करीब 9 साल पहले यानी 2014 में IIT बॉम्बे में एक दलित छात्र अनिकेत अम्बोरे की आत्महत्या का मामला भी सामने आया था. आईआईटी बॉम्बे में इलेक्ट्रिकल इंजीनरियंग के छात्र अनिकेत अम्बोरे की मौत आत्महत्या से हुई थी, वह अनुसूचित जाति से आते थे. अम्बोरे के परिजनों ने भी जातिगत भेदभाव का आरोप लगाया था.

AIIMS में भेदभाव- रिपोर्ट

साल 2022 में एक रिपोर्ट सामने आई थी. बीजेपी नेता किरीट प्रेमभाई सोलंकी की अध्यक्षता में बनी संसदीय पैनल की रिपोर्ट में पाया गया था कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी कि दिल्ली के AIIMS में जातिगत पूर्वाग्रह कई अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति MBBS छात्रों को उनकी परीक्षाओं में बार-बार असफल होने का कारण बनता है.

राज्यसभा में पेश रिपोर्ट में लिखा है, "अक्सर यह देखा गया है कि इन छात्रों ने थ्योरी परीक्षाओं में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन प्रैक्टिकल परीक्षाओं में असफल घोषित कर दिया गया. यह स्पष्ट रूप से अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के छात्रों के प्रति पूर्वाग्रह को रेखांकित करता है.

रिपोर्ट में कहा गया था कि पक्षपातपूर्ण रवैये और भेदभाव के कारण एम्स से एमबीबीएस करने वाले एससी, एसटी छात्रों को बार-बार परीक्षा में फेल किया जाता है. एससी-एसटी वेलफेयर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि दलित और आदिवासी समुदाय से आने वाले लोगों को फैकेल्टी में नौकरी पाने के दौरान भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×