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संडे व्यू: क्यों बिगड़ी बांग्लादेश में स्थिति? सिसोदिया को जमानत जीने के अधिकार की जीत

पढ़ें इस रविवार शंकर अय्यर, मेनका गुरुस्वामी, सुहेल सेठ, करन थापर और रामचंद्र गुहा के विचारों का सार.

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भारत
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क्यों बिगड़ी बांग्लादेश में स्थिति?

शंकर अय्यर ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि ज्यादा समय नहीं हुए हैं जब बांग्लादेश के उदय के 50 साल पूरे होने का जश्न मनाया गया था. प्रति व्यक्ति आय भारत से ज्यादा होने का दावा किया गया था. मगर, अब सभी गलत कारणों से बांग्लादेश सुर्खियों में है. भ्रष्टाचार, कोटा पॉलिटिक्स, महंगाई, बेरोजगारी और असमानता का प्रतीक बना दिख रहा है बांग्लादेश. असहमति पर अंकुश और विपक्ष को निष्किय करने की कोशिशों ने स्थिति खराब की. 45 दिनों के भीतर ही बांग्लादेश की तस्वीर बदल गयी. सत्ता बदल गयी. शेख हसीना देश से बाहर हैं.

शंकर अय्यर ने इंग्लैंड में अस्थिरता के दौर की भी तुलना की है जो उन्नत अर्थव्यवस्था है. कीर स्टारमर के नेतृत्व वाली लेबर पार्टी की सरकार को गृहयुद्ध का सामना करना पड़ा. 1970 के दशक में आर्थर ओकुन ने माइजरी इंडेक्स की अवधारणा पेश की थी जो वार्षिक बेरोजगारी दर और वार्षिक महंगाई दर को जोड़कर तैयार होती है. आंदोलन और अराजकता को इस माइजरी इंडेक्स के आईने में भी देखा जा रहा है.

ग्लोबल प्रोटेस्ट ट्रैकर से पता चलता है कि 2017 से आर्थिक मुद्दों पर दुनिया भर के 258 देशों में प्रदर्शन हुए हैं. लेखक का मानना है कि जलवायु, प्रौद्योगिकी और जनसांख्यिकी में व्यवधान आने से अनिश्चितता को बढ़ावा मिलता है. संरक्षणवाद का बढ़ना और निवेश की व्यवस्था में दोष आने से स्थितियां प्रतिकूल होंगी. बांग्लादेश के लिए यह जरूरी है कि तात्कालिक विक्षोभ से उबर कर वह सामने आए. विकास के झूठे दावों के युग से बाहर आए.

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सिसोदिया को जमानत जीने के अधिकार की जीत

मेनका गुरुस्वामी ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के पूर्व डिप्टी चीफ मिनिस्टर को जमानत दे दी. मनीष को 26 फरवरी 2023 को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था. उसके तुरंत बाद 9 मार्च 2023 को प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने उन्हें गिरफ्तार किया था. करीब डेढ़ साल बिना मुजरिम ठहराए वे जेल में रहे. अब भी उन्हें ट्रायल का इंतज़ार था. दिल्ली हाईकोर्ट ने मई 2024 को मनीष सिसोदिया की उम्मीदों पर पानी फेर दिया था जब उन्हें जमानत देने से मना कर दिया था. इसी आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रही थी.

मेनका गुरुस्वामी लिखती हैं कि जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन ने जो आदेश दिया है वह तीन कारणों से याद किया जाएगा.

  • पहला, यह फैसला सभी अदालतों को यह याद दिलाती है कि इस देश में स्थापित और मान्य परंपरा रही है कि बेल सामान्य प्रचलन है और जेल अपवाद.

  • दूसरी बात है कि स्पीडी ट्रायल के अधिकार का सम्मान होना चाहिए. एक अभियुक्त को अनिश्चित काल तक सलाखों के पीछे बगैर ट्रायल के रखना उसके जीवन के अधिकार का उल्लंघन है. अनुच्छेद 21 के तहत यह हर नागरिक को प्रदत्त अधिकार है.

  • तीसरी बात यह है कि बेल पाने के अधिकार को वैसी परिस्थिति में नये सिरे से देखने की जरूरत है जब कई अन्य कारणों से देरी हो रही हो. इसे कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर 1972 (सीआरपीसी) और पीएमएलए 2002 के आलोक देखा जाना चाहिए.

मनीष सिसोदिया के केस ने जीवन के अधिकार को नये सिरे से स्थापित किया है और इसका असर बाकी विलंबित मामलों पर भी पड़ेगा.

पप्पू से गांधी ब्रांड तक सफर में हैं राहुल

हिन्दुस्तान टाइम्स में सुहेल सेठ ने ब्रांड राहुल की चर्चा की है. राहुल गांधी को शानदार विरासत मिली जिन्होंने आसपास के लोगों की कल्पना को जगाया. बातचीत करते समय कुत्तों पर ध्यान देने के रूप में बदनाम हुए. ‘नेतृत्व करने के लिए ही पैदा हुआ’ जैसी बातें कभी उन पर चस्पां रहीं. यह धारणा बनी कि राहुल की राजनीति में कोई दिलचस्पी ही नहीं और वे सिर्फ मां के कहने पर राजनीति में हैं. जल्दी ही पप्पू बन गये. बीजेपी कांग्रेस को खत्म करना चाहती थी और इसके लिए उन्हें गांधी की विरासत को नष्ट करना था क्योंकि गांधी और कांग्रेस एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं.

2014 से 2022 तक सवाल पूछे जाते रहे कि राहुल गांधी राजनीति में क्यों खड़े हैं? क्या वे एंग्री यंग मैन हैं? वगैरह-वगैरह. 2022 में राहुल गांधी ने वो किया जो केवल वही कर सकते थे- भारत जोड़ो यात्रा.

2024 के चुनावों में निर्णायक जीत हासिल नहीं करना महत्वपूर्ण नहीं. महत्वपूर्ण है कि बीजेपी के ‘अबकी बार 400 पार’ का अहंकार सबने महसूस किया. इंडिया शाइनिंग का यह नया रूप था जिसके एकसमान रूप से विनाशकारी नतीजे सामने आए. नरेंद्र मोदी उन लोगों की आवाज़ के रूप में देखे जाने लगे जो अमीर और प्रभावशाली हैं. दूसरी तरफ राहुल गांधी एक नए ब्रांड के रूप में खामोश लोगों की आवाज़ बनते नजर आ रहे हैं. पप्पू की जगह गांधी ब्रांड ने ले ली है. और, यह ब्रांड लगातार प्रगति पर है.

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सावधान करने वाले वाट्स एप मैसेज

करन थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में वाट्स एप पर आते रहने वाले खास किस्म के संदेशों की याद दिलाते हुए बेहद गंभीर समस्या की ओर ध्यान दिलाया है. ये संदेश कुछ इस किस्म से होते हैं- सेल्समैन से सावधान रहें, रातों रात घटिया कंपनियों के लुभावने ऑफर के झांसे में ना आएं, अपने क्रिडेट कार्ड का पिन कोड कभी भी ऐसे लोगों के साथ शेयर ना करें जो आपके बैंक से होने का दावा करते हैं.

लेखक ने बीते दिनों अपनी बहन किरण के साथ हुई घटना का जिक्र किया. शनिवार दोपहर को फ्रंट बेल बजी और उसने देखा कि तीन लोग दरवाजे पर इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड के इंजीनियर होने का दावा कर रहे थे. गैस कनेक्शन चेक करने आए थे. किरन ने आईकार्ड मांगा. उसकी फोटो खींची और फोन नंबर हासिल करने की कोशिश की. फिर भी उनका आत्मविश्वास नहीं डगमगाया.

किरण ने तीनों लोगों को रसोई में पाइपों का ‘निरीक्षण’ कराया. वारंटी खत्म होने और पाइप बदलने की बात उन्होंने बताई. अगर ऐसा होता तो बिल्डिंग के बाकी फ्लैट में समस्या होती. उन्होंने विश्वास दिला दिया कि बाकी फ्लैट में भी उन्होंने चेक किया है. कुछ के पाइप खराब थे, बदला है. अब किरन ने सोचा कि आईजीएल वालों ने पाइप बदलने को लेकर कोई चेतावनी क्यों नहीं दी. उपलब्ध नंबर्स पर मैसेज किए. एक आईजीएल के पूर्व सीईओ का था. माजरा समझने पर उन्होंने तुरंत आगाह किया. अपने इंजीनियर्स भेजे. इस बीच पाइप बदलने के दौरान किरन ने घरेलू सहायकों को सतर्क रखा था. जब ‘नकली’ आईजीएल वाले चले गये तो असली पहुंचे. उन्होंने पाया कि ठीक करने के नाम पर खराब पाइप लगाकर चले गये हैं. पुलिस को इत्तिला की गई. पुलिस ने भरोसा दिलाया कि नंबर्स के आधार पर वे उन लोगों का पता लगा लेगी. किरन की अति सतर्कता के कारण अप्रिय घटना नहीं हुई.

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एकाधिकारवादी शासन को आईना दिखाना आसान नहीं

रामचंद्र गुहा ने टेलीग्राफ में जॉर्ज ओरवेल के 1984 में लिखे उपन्यास से दो महत्वपूर्ण पंक्तियां पेश की हैं. “जो अतीत को नियंत्रित करता है वह भविष्य को भी नियंत्रित करता है. और, “जो वर्तमान को नियंत्रित करता है वह अतीत को भी नियंत्रित करता है.“ हालांकि ऐसा लिखते समय ओरवेल के दिमाग में रूस और स्टालिन रहे थे मगर ये बात सभी एकाधिकारवादी शासन और शासकों के लिए सही है. अपेक्षाकृत खुले समाज में इतिहास का कोई भी एक संस्करण पूरे नागरिक पर नहीं थोपा जा सकता. उदाहरण के लिए अमेरिका में रिपब्लिकन के सत्ता में रहने पर नस्ल को लेकर अलग दृष्टिकोण हावी हो जाता है जिसका विरोध करने वाले भी होते हैं.

रामचंद्र गुहा लिखते हैं कि भारत में नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने गिर्द मौजूद सभी संसाधनों के साथ हिन्दू-मुस्लिम संबंधों की खास तस्वीर पेश करने की कोशिश की है. फिर भी ऐसी वेबसाइटें, प्रकाशन गृह, यूट्यूब चैनल और यहां तक कि कुछ अखबार भी हैं जहां शासन का शासन नहीं चलता. इन्हें नियंत्रित करने के लिए अब नया प्रसारण बिल प्रस्तावित है. लोगों के सोचने और न सोचने के तरीके को नियंत्रित करने की जितनी कोशिश चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने की है, उतनी किसी ने नहीं की.

चार बातों पर गौर करें-

  • पार्टी हमेशा सही और अचूक होती है. और, नेता (पहले माओ-त्से-तुंग और अब शी जिनपिंग) भी हमेशा सही और अचूक होते हैं.

  • पार्टी के कार्यकर्ता और अधिकारी और इससे बढ़कर महान नेता दिन रात लोगों की खुशियों और उनकी समृद्धि के लिए समर्पित हैं.

  • सार्वजनिक या निजी तौर पर पार्टी, इसकी नीतियों या इसके व्यवहारों की आलोचना करने वाले देश के दुश्मन हैं जो विदेशी शक्तियों के इशारे पर काम करते हैं.

  • अगर पार्टी ऐसे आलोचकों को दबा नहीं पाती है तो चीन 1949 से पहले वाले दौर में चला जाएगा जब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने सत्ता संभाली थी.

लेखक बताते हैं कि इतिहास के बारे में पार्टी के दृष्टिकोण से असहमत होना भारत की तुलना में चीन में कहीं ज्यादा मुश्किल है. “स्पार्क्स : चाइनीज अंडरग्राउंड हिस्टोरियंस एंड देयर बैटल फॉर द फ्यूचर” के लेखक इयान जॉनसन ने चीन से निष्कासित होने से पहले इतना भ्रमण और अध्ययन कर चुके थे कि उनकी कहानी हमें साम्यवाद से परे एक चीन से परिचित कराती है जो साम्यवादी चीन को भी प्रेरित कर सकता है.

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