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संडे व्यू: दोबारा कैसे खड़ी होगी लड़खड़ाती कांग्रेस, भारत-चीन वार्ता पर अभी कुछ बोलना जल्दबाजी

पढ़ें इस इतवार आसिम अमला, कांति बाजपेयी, पीएस राघवन, पी चिदंबरम और करन थापर के विचारों का सार.

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फिर से खड़ा होने के दौर में कांग्रेस

आसिम अमला ने टेलीग्राफ में लिखा है कि लोकसभा चुनाव में थोड़े समय की बढ़त के बाद कांग्रेस फिर से लड़खड़ाती हुई नजर आ रही है. हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की जीत चौंकाने वाली रही और यह पिछले साल मध्यप्रदेश चुनाव के बिल्कुल समान है. दोनों ही मामलों में सत्ताधारी दल बीजेपी ने व्यापक सत्ता विरोधी भावना के बावजूद कांग्रेस पर जीत हासिल की. कांग्रेस नेता के हवाले से लेखक ने बताया है कि कांग्रेस ‘आकांक्षी शहरी मतदाता’ को साधने की क्षमता चुकी है. बीजेपी ने शहर की 25 में से 18 सीटें जीतीं. इसके उलट कांग्रेस ने हरियाणा में 65 ग्रामीण सीटों में से 33 पर जीत हासिल की. लेखक के अनुसार कांग्रेस की गलती सामाजिक न्याय के संदेश पर ज्यादा जोर देने में थी जबकि बाजार केंद्रित उद्यमशीलता के संदेश को नजरअंदाज कर दिया गया.

आसिम अमला लिखते हैं कि कांग्रेस के बीजेपी से पिछड़ने का चलन तीन दशक पुराना है. 2004 का लोकसभा चुनाव बड़ा अपवाद था जब कांग्रेस गठबंधन ने अधिकांश शहरी सीटों पर बीजेपी गठबंधन को हराया था. इंडिया शाइनिंग के सामने कांग्रेस ने आम लोगों के असंतोष को भुनाया था. दक्षिण अमेरिका की राजनीति के हवाले से लेखक बताते हैं कि मैक्सिको में राष्ट्रपति चुनाव हुए हैं. वामपंथी मोरेन पार्टी की क्लाउडिया शिनबाम ने भारी जीत हासिल की है. यहां एक दशक से संगठन पर मेहनत किया गया. लेखक का मानना है कि कांग्रेस को भी अपने संगठन को मजबूत करने पर ध्यान देना होगा. खासकर शहरी मतदाताओं को जोड़ने के लिए पहल करनी होगी.

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पश्चिम विरोध का प्रदर्शन है ब्रिक्स

कांति बाजपेयी ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि राजनीति मोटे तौर पर सार्वजनिक प्रदर्शन है. रूस के कजान में संपन्न ब्रिक्स शिखर सम्मेलन एक अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन था. इसका मतलब यह भी नहीं है कि यह निंदनीय है. राजनीति करना महत्वपूर्ण है. अमेरिकी मानव विज्ञानी क्लिफोर्ड गीर्ट्ज़ के इंडोनेशियाई समाज पर लिखी किताब के हवाले से लेखक ने इसे समझाया है. अपनी शक्ति और वैधता का प्रदर्शन मूल मकसद बनकर सामने आता है. ब्रिक्स शिखर सम्मेलन और दुनिया भर के शिखर सम्मेलन इसी अर्थ में रंगमंच हैं.

कांति बाजपेयी लिखते हैं कि ब्रिक्स का पूरा उद्देश्य यह इंगित करना रहा कि समूह कुछ महत्वपूर्ण प्रतिनिधित्व करता है और यह किसी गोल्डमैन सैक्स का कोई क्षणभंगुर आविष्कार नहीं है. यही कारण है कि संयुक्त विज्ञप्ति दर्जनों पृष्ठों में फैली हुई लगभग हर अंतरराष्ट्रीय समस्या से निपटती है, जिसके बारे में आप सोच सकते हैं. विज्ञप्ति का महत्व यह नहीं है कि इसमें क्या है बल्कि यह है कि सभी ने एक संयुक्त दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए हैं. यह एकजुटता और गंभीरता का संदेश है जो मायने रखता है. ब्रिक्स शिखर सम्मेलन क्षमता का प्रदर्शन भी है. एक नेता और अधिकारी अन्य नेताओं और अधिकारियों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकते हैं. ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का तीसरा प्रदर्शन पश्चिम विरोध और विशेष रूप से अमेरिकी विरोध का मंचन करना है.

मोदी-जिनपिंग की मुलाकात मजबूत पहल

पीएस राघवन ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि रूस में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई मुलाकात द्विपीक्षीय संबंधों के लिए समय पर हुई. यह मुलाकात वैश्विक भू राजनीतिक परिदृश्य की अनिश्चितताओं के प्रति संवेदनशील भी थी. महीनों तक चली कड़ी आधिकारिक बातचीत के परिणामस्वरूप लद्दाख में 2020 के सैन्य संघर्षों से संबंधित लंबित मुद्दों पर सहमति बनी, जिसने दोनों नेताओं की मुलाकात के लिए आधार तैयार किया. राजनीतिक नेतृत्व ने अपने इस विश्वास को सही साबित किया कि यदि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर समझ के बड़े उल्लंघन को ठीक नहीं किया जाता है तो यह एक रणनीतिक गलती होगी, भले ही इसमें कुछ आर्थिक बलिदान शामिल हो.

राघवन ने लिखा है कि हमें इस बात की पहचान होनी चाहिए कि यह मेल-मिलाप भारत और चीन के बीच मुख्य मुद्दों को हल नहीं करता है. चीन हमारे पड़ोस में हमारे हितों के प्रतिकूल तरीके से सक्रिय रहेगा. हिन्द महासागर और हमारे महाद्वीपीय यूरेशियन क्षेत्र में इसकी गतिविधियां भारत के आर्थिक और सुरक्षा हितों पर असर डालती रहेंगी. रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता कम नहीं होगी. इसे टकराव में बदलने से रोकने के लिए केवल सुरक्षा व्यवस्था बनाने का प्रयास किया जा सकता है. अतीत में भी ऐसे सफल प्रयास हुए हैं.

लेखक का यह भी सुझाव है कि चीन के साथ व्यापार खोलने से अधिक महत्वपूर्ण औद्योगिक उत्पादों के लिए चीन पर हमारी निर्भरता को कम करना है. इसके लिए हमारे घरेलू प्रयासों को धीमा नहीं करना चाहिए. कम लागत वाले चीनी निर्यात पर एंटी डंपिंग शुल्क के खिलाफ आंदोलन करने वाले व्यापारी वास्तव में हमारे आयात प्रतिस्थापन प्रयासों को धीमा कर रहे हैं. अल्पकालिक लाभ और दीर्घकालिक प्राथमिकताओं के बीच संतुलन जरूरी है.

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भारत-चीन वार्ता पर अभी कुछ बोलना जल्दबाजी

पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि भारत-चीन के बीच बातचीत को लेकर अभी कुछ बताना जल्दबाजी होगी. चीन को धैर्यवान बताते हुए लेखक का कहना है कि वह कभी अर्थव्यवस्था को लेकर कोई दावे नहीं करता. पेरिस ओलंपिक में पदक के आंकड़ों के साथ लेखक का दावा है कि बगैर गोल्ड के रहने के बावजूद भारत में जश्न अधिक मनाया गया. कई सैन्य अधिकारियों और विशेषज्ञों के अनुसार 1000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र भारत के नियंत्रण में नहीं है जहां हमारे सैनिक पहले गश्त करते थे. कड़वा तथ्य यह है कि चीन पूरी गलवान घाटी पर अपना दावा करता है. उसका दावा है कि एलएसी फिंगर 4 से होकर गुजरती है न कि फिंगर 8 से.

चिदंबरम लिखते हैं कि भारत डेमचोक और देपसांग पर बातचीत करना चाहता था लेकिन चीन ने इनकार कर दिया. चीन अक्साइ चिन और भारत के साथ सटी 3488 किलोमीटर की सीमा पर सैन्य बुनियादी ढांचा तैयार कर रहा है. उसने एलएसी तक 5 जी नेटवर्क स्थापित कर लिया है. चीन ने पैंगोंग त्सो पर पुल भी बनाया है. उसने सीमा पर सैन्य मशीनें या हार्ड वेयर और हजारों सैनिकों को ला खड़ा किया है. भारतीय विदेश मंत्रालय की घोषित आधिकारिक स्थिति यह रही है कि यथास्थिति की बहाली हो. सरकार ने लगातार ‘पीछे हटने’, ‘तनाव कम करने’, ‘डी-इंडक्शन’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है. ऐसा लगता है कि दोनों देश गश्त व्यवस्था पर सहमत हो गये हैं लेकिन इससे ज्यादा नहीं. लेखक का सवाल है कि भारत-चीन संघर्ष पर पिछले चार साल में एक बार भी संसद में चर्चा क्यों नहीं होने दी गई?

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बीबीसी पर बंद हो जाएगा हार्ड टॉक

करना थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में इस बात पर निराशा जाहिर की है कि बीबीसी पर हार्ड टॉक कार्यक्रम मार्च में बंद हो रहा है. इसे मूर्खतापूर्ण निर्णय बताते हुए वे लिखते हैं कि 700 मिलियन पाउंड बचाने के लिए यह लागत में कटौती की कवायद का हिस्सा लगता है. व्यापक तस्वीर, पूरी समझ और भावनात्मक गहराई वाला कार्यक्रम कहीं नहीं मिलेगा. हार्ड टॉक बीबीसी का लंबा चौड़ा वन टु वन साक्षात्कार है. इसमें एक व्यक्ति और एक ही मुद्दे को संबोधित किया जाता है. बातचीत कठोर होती है लेकिन आक्रामक नहीं होती. आधे घंटे के अंत में जो उभर कर आता है वह है समझ और अंतर्दृष्टि.

हार्ड टॉक के होस्ट स्टीफन सैकर हैं. उनसे पहले टिम सेबेस्टियन थे. दोनों एक से बढ़कर एक रहे. जहां टिम हमलावर दिखे वहीं स्टीफन एक जिज्ञासु दिमाग का वजन लिए दिखते हैं. अतिथि को असुविधा भी होती है मगर वह सत्य को प्रकट करती दिखती है इसलिए वह बुरा नहीं लगता. बीबीसी ने कुछ समय पहले अपने एक और शानदार कार्यकर्म न्यूजनाइट को बंद कर दिया था. बीबीसी के सबसे प्रसिद्ध एंकर जेरमी पैक्समैन अंग्रेजी के लोकप्रिय पत्रकारों में एक हैं. विडंबना यह है कि बीबीसी के महानिदेशक टिम डेवी वर्ल्ड सर्विस के लिए अतिरिक्त धन के लिए ब्रिटिश सरकार से लड़ रहे हैं. वे यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि बीबीसी वर्ल्ड सर्विस की पत्रकारिता लोकतांत्रिक सॉफ्ट पावर की इतनी महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति है कि करदाताओं को इसे फंड करना चाहिए.

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