जम्मू-कश्मीर में लगी पाबंदियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इंटरनेट तक पहुंच का अधिकार मौलिक अधिकार है. कोर्ट ने 10 जनवरी को कहा, ''इसमें कोई संदेह नहीं है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में अभिव्यक्ति की आजादी एक जरूरी टूल है. इंटरनेट तक पहुंच की आजादी भी आर्टिकल 19(1)(a) के तहत मौलिक अधिकार है.''
एडवोकेट शादान फरासत के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हमारा संविधान स्टेट को अनिश्चितकालीन इंटरनेट बैन की अनुमति नहीं देता और यह सत्ता का दुरुपयोग है.
सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को जरूरी सेवाएं मुहैया कराने वाले सभी इंस्टिट्यूशन्स (जैसे हॉस्पिटल, शैक्षणिक केंद्र आदि) में इंटरनेट सेवाओं को बहाल करने के लिए कहा है.
इसके साथ ही कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को एक हफ्ते के अंदर प्रतिबंधों वाले सभी आदेशों की समीक्षा करने और उनको सार्वजनिक करने का निर्देश दिया है.
कोर्ट ने कहा
- CrPC की धारा 144 का इस्तेमाल विचारों की भिन्नता को दबाने के लिए नहीं किया जा सकता
- पाबंदियों वाले आदेश जारी करते वक्त मजिस्ट्रेट अपना दिमाग लगाएं और समानुपात के सिद्धांत का पालन करें
- इंटरनेट पर पाबंदी वाले सभी आदेशों की समीक्षा रिव्यू कमेटी करेंगी
- अनिश्चितकाल के लिए इंटरनेट पर रोक का आदेश टेलिकॉम (टेंपररी सस्पेंशन) रूल्स का उल्लंघन है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ''कश्मीर ने काफी हिंसा देखी है. हम सुरक्षा के मुद्दे, मानवाधिकारों और आजादी के मुद्दों के बीच संतुलन बनाने की सर्वश्रेष्ठ कोशिश करेंगे.''
जम्मू-कश्मीर में कम्युनिकेशन, मीडिया और टेलिफोन सेवाओं पर पाबंदियों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने 27 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था.
कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद और कश्मीर टाइम्स एडिटर अनुराधा भसीन सहित कई याचिकाकर्ताओं की तरफ से दाखिल इन याचिकाओं पर जस्टिस एनवी रमन, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने सुनवाई की थी.
बता दें कि जम्मू-कश्मीर में जिन पाबंदियों के खिलाफ ये याचिकाएं दायर हुई थीं, उनको अगस्त 2019 से लागू किया गया था.
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