कुछ लोग गुनाह करके भी आजादी से घूमते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो उस गुनाह की सजा भुगतते हैं, जो शायद उन्होंने कभी किया ही नहीं था. उत्तर प्रदेश के डॉक्टर कफील खान भी एक ऐसा ही नाम है. ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि पहले हाईकोर्ट और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इसी बात पर मुहर लगाई है. हाईकोर्ट ने कफील खान को नेशनल सिक्योरिटी एक्ट के तहत गिरफ्तार करने और उनकी हिरासत को बढ़ाए जाने को गलत ठहराया था. जिसे सुप्रीम कोर्ट में योगी सरकार ने चुनौती दे दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से किया इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश सही था. अब पहले आपको बताते हैं कि डॉक्टर कफील खान पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान क्या-क्या कहा गया?
सीजेआई एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस याचिका को खारिज किया. इस दौरान सीजेआई ने इस मामले को लेकर टिप्पणी करते हुए कहा,
ये हाईकोर्ट का दिया गया एक अच्छा आदेश है. साथ ही हमें हाईकोर्ट के इस आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नजर नहीं आता है. हालांकि आपराधिक मामलों में हाईकोर्ट के आदेश का पालन अभियोजन को प्रभावित नहीं करेगा. ऐसे मामलों का फैसला उनकी योग्यता के आधार पर ही होगा.
यानी सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि हाईकोर्ट के आदेश में किसी भी तरह की कोई कमी या गलती नहीं थी. अब जानते हैं कि यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में क्या तर्क देते हुए इस याचिका को दायर किया था.
यूपी सरकार ने याचिका में क्या कहा था?
दरअसल यूपी सरकार का मानना था कि हाईकोर्ट ने सही फैसला नहीं लिया. यानी हाईकोर्ट को डॉक्टर कफील खान की रिहाई के आदेश नहीं जारी करने चाहिए थे. लाइव लॉ के मुताबिक, यूपी सरकार ने याचिका में कहा था कि हाईकोर्ट ने अधिकारियों के नजरिए की जगह अपनी व्यक्तिपरक संतुष्टि को रखा. सरकार ने कहा था कि कफील खान का गंभीर अपराध करने का इतिहास रहा है और इसी वजह से उन्हें निलंबित किया गया, FIR दर्ज हुईं और उन पर NSA लगा.
इस याचिका में केंद्र सरकार ने भी अपना तर्क रखा और कहा कि खान ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के आस-पास लागू की धारा 144 का उल्लंघन किया और यूनिवर्सिटी के बाब-ए-सैयद गेट पर जमा छात्रों को संबोधित करते हुए एक भड़काऊ भाषण दिया था.
हाईकोर्ट के आदेश में क्या कहा गया था?
अब हाईकोर्ट के उस फैसले के बारे में बात करते हैं, जिसे अब सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराते हुए योगी सरकार की याचिका को खारिज किया है. डॉक्टर कफील खान को एनएसए के तहत गिरफ्तार किए जाने और लगातार उनकी हिरासत को बढ़ाए जाने पर हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था,
“हमें ये निष्कर्ष निकालने में कोई संकोच नहीं है कि नेशनल सिक्योरिटी एक्ट, 1980 के तहत डॉक्टर कफील खान को हिरासत में लेना और हिरासत को बढ़ाना कानून की नजर में सही नहीं है.”
एएमयू के जिस भाषण को लेकर खान की गिरफ्तारी हुई थी और कठोर कानून एनएसए लगाया गया था, उसे लेकर भी हाईकोर्ट ने यूपी के अधिकारियों और सरकार को बताया कि इसमें ऐसा कुछ नहीं था, बल्कि इसमें राष्ट्रीय एकता का संदेश दिया गया था. हाईकोर्ट ने कहा था, "कफील खान का भाषण सरकार की नीतियों का विरोध था. उनका बयान नफरत या हिंसा को बढ़ावा देने वाला नहीं बल्कि राष्ट्रीय एकता और अखंडता का संदेश देने वाला था."
कफील खान की गिरफ्तारी और NSA
अब आपको अगर याद नहीं तो हम आपको बताते हैं कि डॉक्टर कफील खान को कब और कैसे गिरफ्तार किया गया था. डॉक्टर कफील खान पर नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में 13 दिसंबर 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कथित रूप से भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगाया गया था. इसके बाद यूपी पुलिस की एक टीम ने उन्हें 29 जनवरी को मुंबई से गिरफ्तार किया था.
गिरफ्तारी तक उन पर नेशनल सिक्योरिटी एक्ट नहीं लगाया गया. तब उनके खिलाफ अलीगढ़ के सिविल लाइंस पुलिस थाने में IPC की धारा 153-ए (धर्म, भाषा, नस्ल के आधार पर लोगों में नफरत फैलाना) के तहत मामला दर्ज किया गया था. इसके बाद कफील खान ने जमानत याचिका दायर की और कोर्ट ने उन्हें जमानत भी दे दी. लेकिन कफील खान जेल से बाहर निकल पाते, इससे पहले ही यूपी सरकार ने उनके खिलाफ एनएसए लगा दिया. जिसके बाद एनएसए के तहत उनकी हिरासत को बढ़ा दिया गया.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)