सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के लोगों की ओर से नागरिकता कानून (CAA) की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर शुक्रवार को केंद्र से जवाब मांगा.
चीफ जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने केंद्रीय गृह मंत्रालय, न्याय मंत्रालय और विदेश मंत्रालय को नोटिस जारी करते हुए 20 लोगों की ओर से दायर याचिका को इस मामले में लंबित अन्य याचिकाओं से संबद्ध कर दिया. इस पर 22 जनवरी को सुनवाई होनी है.
नई याचिका में गृह मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना को चुनौती देते हुए कहा गया है, "सीएए की धाराएं 2,3,5,6 संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद-19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंघन करती हैं." जबकि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 18 दिसंबर को सीएए की संवैधानिकता की समीक्षा करने का फैसला किया और इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था.
नागरिकता संशोधित कानून में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 तक आए हिंदू, सिख, पारसी, बौद्ध, जैन और ईसाई समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है.
याचिकाकर्ताओं ने क्या आरोप लगाया
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि गृह मंत्रालय की अधिसूचना और सीएए संवैधानिक नैतिकता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है और धर्मनिरपेक्षता, समानता, जीवन की गरिमा और बहुलवाद को कमतर कर संविधान के मूल ढांचे पर चोट करता है. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया, "सीएए और नियमों से लाखों भारतीय नागरिकों (मुस्लिमों) को संदिग्ध नागरिक घोषित किए जाने का खतरा है."
याचिका में आरोप लगाया है कि सीएए और एनआरसी का उल्लेख नागरिकता कानून 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय परिचय पत्र का वितरण)-2003 की धारा का संबंध है. हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी,जैन और ईसाई समुदाय के लोगों को 'धार्मिक उत्पीड़न की कल्पना' के आधार पर नागरिकता मिल रही है.
बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने सीएए के खिलाफ अखिल भारतीय मुस्लिम लीग और कांग्रेस नेता जयराम रमेश समेत 60 याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था.
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