नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन पर अरविंद केजरीवाल खामोश क्यों हैं? यह सवाल काफी लोगों के मन में है और कम से कम कांग्रेस तो इसे दिल्ली में पूछ ही रही है. संसद में तो आम आदमी पार्टी ने नागरिकता कानून का खुल कर विरोध किया लेकिन दिल्ली इलेक्शन में यह इसे मुद्दा नहीं बनाना चाहती. आप की तरफ से सिर्फ ओखला के विधायक अमानतुल्लाह खां ने नागरिकता कानून के विरोध का खुल कर समर्थन किया और कई लोगों को पुलिस हिरासत से निकालने की भी कोशिश की.
अमानतुल्लाह खां आप के पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी के मेंबर हैं. जाहिर है जो भी वो कर रहे हैं केजरीवाल कि मर्जी के बिना तो नहीं ही कर रहे होंगे. तो फिर सवाल यह उठता है कि केजरीवाल ने खुद प्रदर्शकारियों का समर्थन क्यों नहीं किया.
जवाब आंकड़ों में छिपा हुआ है
2019 लोक सभा चुनाव में बीजेपी को दिल्ली में 56 फीसदी से भी ज्यादा वोट मिले. मोदी की लहर में कांग्रेस 22 फीसदी और आप 18 फीसदी पर सिमट कर रह गई. सीधी बात है कि अगर आप को दिल्ली में जीतना है तो इन बीजेपी के इन वोटरों को लुभाना ही पड़ेगा. और यह करने का सिर्फ एक ही तरीका है - दिल्ली के चुनाव को लोकल मुद्दों तक सीमित रखना और CAA जैसे राष्ट्रीय मुद्दों को दूर रखना.
इसका एक और पहलू है. दिल्ली के काफी वोटर केंद्र में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का शासन चाहते हैं. ऐसा पहले भी हुआ है. 1998 में दिल्ली ने केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी और बीजेपी को वोट दिया मगर कुछ महीनों बाद राज्य में शीला दीक्षित की कांग्रेस सरकार बनाई. उसके अगले साल ही फिर से वाजपेयी का हाथ थाम लिया.
यही 2014 में हुआ जब दिल्ली ने सभी सातों सीटें मोदी की झोली में डाल दी लेकिन फिर 2015 में केजरीवाल को 70 में से 67 सीटें देकर शानदार जीत दिलाई. यह बात सर्वे डेटा से भी जाहिर होती है.
सी-वोटर ट्रैकर के मुताबिक इस हफ्ते दिल्ली में 69 फीसदी लोगों ने कहा कि प्रधान मंत्री पद के लिए उनकी पसंद हैं मोदी और 67 फीसदी लोगों ने कहा कि मुख्यमंत्री की कुर्सी में वह केजरीवाल को देखना चाहते हैं. अब सवाल यह उठता है कि कितने मोदी समर्थक केजरीवाल को वोट देंगे ?
इस सर्वे में छिपे हैं संकेत
2019 लोक सभा चुनाव के बाद CSDS ने एक सर्वे किया, जिसमें यह बात सामने आई कि तब एक चौथाई बीजेपी और कांग्रेस वोटर विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को वोट देना चाहते थे. जो केंद्र में मोदी और दिल्ली में केजरीवाल की सरकार चाहते हैं उन वोटरों के बारे में हम और क्या जानते हैं? इनका किसी पार्टी या विचारधारा की तरफ कोई खास झुकाव नहीं है. शायद कांग्रेस से थोड़ा परहेज हो सकता है. चुनाव में चेहरा इनके लिया काफी मायने रखता है. शायद CAA के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन को लेकर इन्हें कोई खास सहानुभूति नहीं है
केजरीवाल का सोचा-समझा जोखिम
आप इस तबके से ज्यादा से ज्यादा वोट बटोरना चाहती है.CAA प्रोटेस्ट को लेकर केजरीवाल की खामोशी की शायद यही सबसे बड़ी वजह है. लेकिन मोदी के समर्थकों को जीतने के चक्कर में क्या केजरीवाल एंटी-मोदी या प्रो-कांग्रेस वोटों को गंवा बैठेंगे. कांग्रेस कम से कम मुस्लिम वोटरों के बीच CAA के मुद्दे पर केजरीवाल के खिलाफ जोर-शोर से कैंपेन कर रही है.
यहां आप ने एक कैलकुलेटेड रिस्क लिया है. तीन सीटें ऐसी हैं जहां आम आदमी पार्टी ने ऐसे उम्मीदवारों को उतरा है जिन्होंने प्रोटेस्ट का समर्थन किया था : ओखला में अमानतुल्लाह खां, सीलमपुर में अब्दुल रहमान और मटियामहल में शोएब इकबाल, जो हाल में कांग्रेस छोड़ कर आप में शामिल हुए हैं.
आप का मानना है कि केजरीवाल सरकार के काम और बीजेपी के खिलाफ सबसे मजबूत पार्टी होने के नाते उन्हें मुस्लिम समाज का पूरा समर्थन मिल जाएगा. फिलहाल तो यह लग रहा है कि आप मोदी वोटर और CAA की मुखालफत करने वाले वोटर दोनों को अपनी तरफ खींचने में कामयाब हो सकती है, अगर कोई बड़ा गेम-चेंजर सामने नहीं आया तो.
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