देश की राजनीति में इस वक्त तीन ऐसी महिलाएं हैं, जो आगामी लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती हैं. ये महिलाएं हैं- प्रियंका गांधी वाड्रा, मायावती और ममता बनर्जी. खास बात यह है कि ये तीनों महिलाएं भारतीय समाज के अलग-अलग वर्ग से आती हैं.
प्रियंका गांधी वाड्रा को हाल ही में कांग्रेस महासचिव बनाकर पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी गई है. जबकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) चीफ ममता बनर्जी और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) चीफ मायावती के पास राजनीति में लंबा अनुभव है.
पूर्व वित्त मंत्री और पिछले साल तक बीजेपी का हिस्सा रहे यशवंत सिन्हा कहते हैं, “विपक्ष के पास एनडीए से ज्यादा ताकतवर महिलाएं हैं. ऐसे में उनको (एनडीए) इस बात की चिंता होनी चाहिए, खासकर तीन अहम हिंदी-भाषी राज्यों में हार के बाद.’’
प्रियंका की एंट्री से कांग्रेस में दिख रहा है उत्साह
प्रियंका गांधी की राजनीति में एंट्री के बाद कांग्रेस के कार्यकर्ता काफी उत्साहित दिख रहे हैं. प्रियंका के बहुत से समर्थक उनमें उनकी दादी और भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की झलक देखते हैं.
गांधी परिवार के करीबी एक कांग्रेस नेता का मानना है कि प्रियंका महिलाओं, युवा लोगों और फ्लोटिंग वोटों को कांग्रेस के पाले में खींचने में कामयाब होंगी. प्रियंका की राजनीति में औपचारिक एंट्री को भले ही कुछ दिन हुए हों, लेकिन वो पहले से ही अपने भाई राहुल गांधी और मां सोनिया गांधी के लिए चुनावी अभियान में हिस्सा लेती रही हैं.
इस तरह पीएम मोदी के लिए चुनौती बन सकती हैं मायावती
कभी टीचर रहीं 63 साल की मायावती ने पिछले महीने समाजवादी पार्टी (एसपी) के साथ गठबंधन किया है. जहां मायावती की पार्टी बीएसपी की दलितों के बीच मजबूत पकड़ है, वहीं एसपी को अन्य पिछड़ी जातियों और मुस्लिमों से अच्छा समर्थन मिल सकता है. 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में यह गठबंधन एनडीए की मुश्किलें बढ़ा सकता है.
बता दें कि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद तक पहुंचाने में उत्तर प्रदेश की अहम भूमिका रही. इस राज्य में 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने 73 सीटों पर जीत दर्ज की थी. पीएम मोदी की मौजूदा लोकसभा सीट बनारस भी इसी राज्य से है.
एनडीए के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने में लगीं ममता बनर्जी
दो बार रेल मंत्री रह चुकीं 64 साल की ममता बनर्जी भी इन दिनों एनडीए के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने में जुटी हैं. उन्होंने पिछले महीने ही कोलकाता में विपक्षी दलों की एक रैली आयोजित की थी. इस रैली में 20 से ज्यादा विपक्षी दल जुटे थे.
ममता बनर्जी के राजनीतिक कद को इस बात से समझा जा सकता है कि उन्होंने पश्चिम बंगाल में लगातार 34 साल तक राज करने वाली कम्युनिस्ट सरकार को सत्ता से बाहर किया था. एनडीए को चुनौती देते हुए ममता खुद को एक धर्मनिरपेक्ष नेता के तौर पर पेश करती हैं.
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