कैमरा- सुमित बडोला
वीडियो एडिटर- मोहम्मद इरशाद आलम
इन दिनों ट्विटर के सीईओ जैक डॉर्सी और हमारे देश की एक पार्लियामेंट्री कमेटी की तनातनी सुर्खियों में हैं. कमेटी ने 11 फरवरी, 2019 को जैक डोर्सी को समन किया था. लेकिन डॉर्सी ने पेश होने से मना कर दिया.
अब ये एक रूटीन मैटर की तरह खबरों में आता और निकल जाता. लेकिन इस मसले पर जमकर बहस हो रही है. कुछ लोग डॉर्सी पर दादागीरी का आरोप लगा रहे हैं, तो कुछ लोग कमेटी के रवैये को शक की नजर से देख रहे हैं.
बहस की वजह जानने के लिए हम थोड़ा फ्लैशबैक में चलते हैं.
सीन-1
नवंबर 2018 में जैक डॉर्सी का ये फोटो सामने आया. फोटो में डॉर्सी कुछ महिलाओं के साथ 'स्मैश ब्राह्मणिकल पैट्रियार्की' यानी 'ब्राहमणवादी पितृसत्ता को खत्म करो' का पोस्टर लिए खड़े थे. बस फिर क्या था राइट विंग ग्रुप्स ने उनपर जुबानी हमले की तोप खोल दी.
सीन-2
3 फरवरी, 2019 को यूथ फॉर सोशल मीडिया डेमोक्रेसी नाम के ग्रुप मेंबर्स ने ट्विटर इंडिया के दफ्तर के सामने विरोध प्रदर्शन किया. आरोप ये कि ट्विटर राइट विंग यानी दक्षिणपंथ का विरोधी है और उनके ट्विटर खातों को बंद कर रहा है.
इसी ग्रुप से दिल्ली BJP के प्रवक्ता तेजेंदर पाल सिंह बग्गा भी जुड़े हैं जो अपनी राइट विंग आइडियोलॉजी को देशभक्ती की चाशनी में लपेटकर जब-तब सोशल मीडिया की कड़हाई में तलते रहते है.
ग्रुप के कुछ लोगों ने इस बारे में अगुराग ठाकुर को एक चिट्ठी लिख डाली. अनुराग ठाकुर बीजेपी के नेता हैं और इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी से जुड़े मुद्दों की पड़ताल करने वाली संसद की एक समिति के अध्यक्ष हैं.
बस आनन-फानन में कमेटी ने ट्विटर के सीईओ जैक डॉर्सी को समन कर लिया. 5 फरवरी को अनुराग ठाकुर ने ट्वीट कर बाकायदा इसकी तस्दीक की.
इसके बाद सोशल मीडिया पर सवालों की झड़ी लग गई.
सवाल ये कि कमेटी अपने समन में भले ही नागरिक अधिकारों के संरक्षण की बात कर रही हो लेकिन उसका असल मकसद ट्विटर पर लगाम कसना है. वही ट्विटर जिस पर राइट विंग विरोधी होने का आरोप लगाया जा रहा है.
हमारे देश में फेसबुक और गूगल का यूट्यूब यूज करने वालों की तादाद ट्विटर से कहीं ज्यादा है. लेकिन संसदीय समिति ने सबसे पहले ट्विटर सीईओ को समन किया. चलिए माना कि समन करना सही है. लेकिन कमेटी का कहना है कि जवाब CEO से ही लेंगे. यानी ट्विटर अगर किसी दूसरे सीनियर ऑफिसर को भेजना चाहे को कमेटी उसे नहीं मानेगी.
अब कमेटी का यही रवैया मामले को तूल दे रहा है.
अगर कोई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म किसी स्पेशल ग्रुप को लेकर बायस्ड है तो उसकी जांच होनी चाहिए. लेकिन लोगों के साथ कोई कंपनी भेदभाव कर रही है इसके पीछे क्या डाटा है? किसी ने भी इस मामले में पर कोई डाटा नहीं दिया कि किस तरीके से किसके साथ और कितना भेदभाव हो रहा है.प्रतीक सिन्हा, ऑल्ट न्यूज
ये भी पढ़ें- नरेंद्र मोदी के लिए परेशानी के सबब बने ट्विटर पोल्स
दिलचस्प बात है कि हाल में ट्विटर पर हुए अलग-अलग सर्वे ये इशारा करते नजर आए कि बीजेपी की लोकप्रियता कम हो रही है. अब चुनावों से ठीक पहले ये भला बीजेपी समर्थकों को कैसे सुहाता. गुस्साए समर्थकों ने अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए #ProtestAgainstTwitter हैशटैग भी चलाया.
तो कहीं सत्ताधारी पार्टी को ये तो नही लग रहा कि ट्विटर नाम का ये बेलगाम घोड़ा उनके काबू से बाहर हो चुका है और 2019 के आमचुनाव में पार्टी का खेल बनाने के बजाए खेल बिगाड़ने का काम कर सकता है.
जैक डॉर्सी को लेकर पार्लियामेंट्री कमेटी का सख्त रवैया कहीं उसी बेलगाम घोड़े पर लगाम कसने की कोशिश तो नहीं?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)