जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को जन सुरक्षा कानून (PSA) के तहत नजरबंद करने के खिलाफ उनकी बहन सारा अब्दुल्ला पायलट सुप्रीम कोर्ट में अपील की है. सारा ने सोमवार 10 फरवरी को उमर अब्दुल्ला की नजरबंदी को चुनौती देते हुए अपनी अपील में कहा कि वो पहले ही पिछले 6 महीने से नजरबंद हैं और उनको इस कानून के तहत नजरबंद करने का कोई सही आधार नहीं है.
सारा की तरफ से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने मामले की तुरंत सुनवाई की मांग की है.
क्या कहा गया पिटीशन में?
सारा अब्दुल्ला पायलट की इस पिटीशन में कहा गया है कि उमर अब्दुल्ला को इस तरह नजरबंद रखने का कोई उचित आधार नहीं है.
पिटीशन में कहा गया है,
“उमर अब्दुल्ला को पहली बार नजरबंद किए जाने से पहले तक उनके सारे बयान और संदेश बताते हैं कि वो सिर्फ शांति और सहयोग की अपील करते रहे, ऐसे संदेश जो गांधी के भारत में कानून व्यवस्था को जरा भी प्रभावित नहीं कर सकते.”
इसके आगे पिटीशन में कहा गया,
“PSA का आदेश ये इशारा करता है कि ‘सरकारी नीति’ का किसी भी तरह का विरोध ‘भारतीय राज्य’ को खतरा पहुंचाएगा. ये पूरी तरह से लोकतांत्रिक राजनीति के विपरीत है और भारतीय संविधान को खोखला करता है.”
उमर और महबूबा पर लगा PSA
जम्मू-कश्मीर के दो पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती पर जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने 6 फरवरी को PSA लगाया था. दोनों नेता पिछले साल 5 अगस्त से ही ऐहतियातन हिरासत में चल रहे हैं.
इनके अलावा नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और पूर्व मंत्री अली मोहम्मद सागर, नेशनल कॉन्फ्रेंस के पूर्व विधायक बशीर अहमद वीरी और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती के मामा सरताज मदनी के खिलाफ भी कड़े जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत मामला दर्ज किया गया है.
क्या है PSA है?
अगर सरकार को शक है कि आप पब्लिक सेफ्टी के लिए खतरा हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं तो आपने भले ही कोई गलत काम नहीं किया हो, लेकिन सरकार को अगर शक होता है तो आपको हिरासत में ले सकती है.
शेख अब्दुल्ला सरकार में लाए गए PSA को 8 अप्रैल, 1978 को जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल की मंजूरी मिली थी. PSA को लकड़ी तस्करों पर लगाम कसने के लिए लाया गया था. इस कानून के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति का मामला सरकार को एडवाइजरी बोर्ड के सामने भेजना होता है. बोर्ड को अपना सुझाव आठ हफ्तों में देना होता है.
अगर बोर्ड हिरासत को सही ठहराता है, तो सरकार शख्स को बिना ट्रायल के 2 साल तक हिरासत में रख सकती है. शुरुआत में इस कानून के तहत 16 साल से ज्यादा के नाबालिगों को भी हिरासत में लिया जा सकता था.
हालांकि बाद में इसमें संशोधन कर दिया गया, जिसके तहत 18 साल से कम के व्यक्ति को हिरासत में नहीं लिया जा सकता. ‘किसी व्यक्ति की गतिविधि से राज्य को खतरा’ होने की सूरत में या किसी व्यक्ति की गतिविधि से ‘कानून व्यवस्था को बरकरार रहने में खतरा’ होने की स्थिति में भी उसे PSA के तहत हिरासत में लिया जा सकता है. PSA के तहत किसी की हिरासत का आदेश डिविजनल कमिश्नर या डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की तरफ से जारी होता है.
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