जब भी कभी यौन हिंसा की कोई घटना लोगों की नजर में आती है, तो सबसे कम पूछा जाने वाला सवाल है कि ये दोबारा कैसे हुआ? क्यों महिला, पुरुष और नॉन-बाइनरी कहलाने वाले लोगों के साथ रेप और यौन हिंसा की घटनाएं इतनी ज्यादा होती हैं कि अब ये नॉर्मल लगता है? ऐसा इसलिए है क्योंकि हम ऐसे माहौल में रहते हैं जो इसे नॉर्मल होने देता है. महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को नॉर्मल मान लेने से रेप कल्चर को किस तरह बढ़ावा मिलता है, हम यहां यौन उत्पीड़न और हिंसा के पिरामिड से समझा रहे हैं.
रेप कल्चर क्या है?
रेप कल्चर एक माहौल है जिसमें जेंडर और सेक्सुएलिटी की तरफ मौजूदा सामाजिक रवैये की वजह से रेप ज्यादा होते हैं और महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा को नॉर्मल मान लिया जाता है.
रेप कल्चर को नॉर्मल समझा जाना
रेप कल्चर को बढ़ावा देने वाले कुछ व्यवहारों में विक्टिम ब्लेमिंग, स्लट-शेमिंग, सेक्सुअल ऑब्जेक्टिफिकेशन, यौन हमले को कमतर आंकना, यौन हिंसा को आकर्षक बनाना और ऐसा समाज बनाना जहां महिलाओं के अधिकारों और उनकी सुरक्षा की उपेक्षा होती हो. हालांकि ये व्यवहार इतने तक ही सीमित नहीं हैं. अधिकतर रेप कल्चर की वजह से ही महिलाएं रेप रिपोर्ट नहीं करती हैं. महिला की सुरक्षा की जिम्मेदारी इसमें महिला पर ही डाल दी जाती है और आरोपी को अपराध से मुक्त कर दिया जाता है.
रेप कल्चर पिरामिड
नीचे दिया गया रेप पिरामिड दिखाता है कि किस तरह व्यवहार, विश्वास और सिस्टम एक दूसरे से मिलकर बनते हैं. हर लेवल पर दिए गए व्यवहारों को बर्दाश्त करने से अगले लेवल को समर्थन मिलता है. सेक्सिस्ट एटीट्यूड, लॉकर रूम की मजाक, रेप जोक, स्टॉकिंग को अनदेखा कर देने से अनचाहे न्यूड फोटो को बढ़ावा मिलता है. इसके बाद विक्टिम के अधिकारों का हनन होता है. बिना इजाजत छूने, जबरदस्ती करना जैसी हरकतों को बर्दाश्त करने से आखिरकार रेप, छेड़छाड़ और मर्डर जैसी घटनाएं होती हैं.
ये पिरामिड समझना जरूरी इसलिए है क्योंकि जब हम यौन हिंसा खत्म करने के उपाय सोचते हैं, तो हम पिरामिड के सबसे ऊपर देख रहे होते हैं. जबकि सबसे ऊपर की घटनाओं को समर्थन नीचे दिए गए व्यवहारों से मिलता है. ये बहुत जरूरी है कि पिरामिड के नीचे वाले भाग पर भी ध्यान दिया जाए और असल में व्यवहार में बदलाव लाया जाए.
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