हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता, वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) का 8 जुलाई को निधन हो गया. लंबे समय से बीमार चल रहे 87 साल के सिंह ने शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज एंड अस्पताल में आखिरी सांस ली. वीरभद्र सिंह का जाना कांग्रेस के एक बड़े युग का जाना है. सिंह हिमाचल प्रदेश में 'राजा साब' के रूप में लोकप्रिय थे. 60 साल से ज्यादा का समय राजनीति में बिताने वाले वीरभद्र सिंह मौजूदा विधानसभा में सोलन जिले के अर्की से विधायक थे.
9 बार के विधायक और पांच बार सांसद रहे वीरभद्र सिंह छह बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. वो मार्च 1998 से मार्च 2003 तक विपक्ष के नेता भी रहे.
लोकसभा से हुई राजनीति की शुरुआत
जहां अक्सर राजनीतिक करियर की शुरुआत राज्य से होती है, तो वहीं वीरभद्र सिंह ने सीधा नेशनल पॉलिटिक्स में डेब्यू किया. 1962 में 27 साल की उम्र में वो लोकसभा सांसद चुने गए. उन्होंने 1967, 1971, 1980 और 2009 में चार और कार्यकाल में सांसद के रूप में सेवा दी. 2009 की यूपीए-2 सरकार में उन्हें सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्री का कार्यभार सौंपा गया.
1983 में पहली बार बने मुख्यमंत्री
1980 तक चार बार लोकसभा सांसद बनने वाले वीरभद्र सिंह को पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश की कमान 1983 में सबसे पहले मिली. 1985 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत के साथ, वो 1983 से 1990 तक लगातार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे.
वीरभद्र सिंह की लोकप्रियता राज्य में इतनी थी कि 1993, 1998, 2003 और 2012 में वो फिर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.
हालांकि, 1998 में सीएम के रूप में उनका कार्यकाल केवल 18 दिनों तक चला, क्योंकि वो विश्वास मत हासिल करने में विफल रहे थे.
2012 चुनावों से पहले वीरभद्र सिंह ने यूपीए-2 में केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद उन्हें प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. कांग्रेस ने 2012 में हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव फिर से वीरभद्र सिंह की अगुवाई में लड़ा और जीत हासिल की. 2017 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था.
लगे भ्रष्टाचार के आरोप
अगस्त 2009 में, हिमाचल प्रदेश के एंटी-करप्शन ब्यूरो ने वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी के खिलाफ कानूनी मामला दर्ज किया गया था. आरोप था कि उन्होंने 1989 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम का उल्लंघन किया था, जब सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे. ब्यूरो ने आरोप लगाया कि उसके पास संदिग्ध वित्तीय लेनदेन के संबंध में दंपति और अन्य लोगों के बीच रिकॉर्ड की गई बातचीत के सबूत हैं.
दिसंबर 2010 में दोनों को इस मामले में जमानत दे दी गई. जून 2012 को, सिंह ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को देखते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. दिसंबर 2012 में मुख्यमंत्री बनने से ठीक पहले दोनों को इन आरोपों में बरी कर दिया गया.
बेहिसाब संपत्ति का आरोप
साल 2015 में वीरभद्र सिंह पर आय से अधिक संपत्ति का आरोप लगा. सीबीआई ने शिमला में उनके घर समेत 11 जगहों पर छापा मारा था. आरोप था कि साल 2009 से 2011 के बीच जब वो केंद्रीय मंत्री थे, तब उन्होंने 6 करोड़ से ज्यादा की आय अर्जित की.
शिमला-दिल्ली में पढ़ाई, दो शादियां की
वीरभद्र सिंह बुशहर की तत्कालीन रियासत में पैदा हुए थे. 23 जून 1934 को जन्मे वीरभद्र सिंह ने देहरादून और शिमला से स्कूली शिक्षा ली, और फिर दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से इंग्लिश ऑनर्स में ग्रेजुएशन किया.
उन्होंने 1954 में रतना कुमारी से शादी की, जिनसे उनकी चार बेटियां हैं. 1985 में उन्होंने प्रतिभा सिंह से दूसरी शादी की. प्रतिभा सिंह और पुत्र विक्रमादित्य सिंह भी नेता हैं. प्रतिभा मंडी से पूर्व सांसद हैं, जबकि विक्रमादित्य शिमला ग्रामीण से मौजूदा विधायक हैं. उनकी बेटी अपराजिता की शादी, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के पोते, अंगद सिंह से हुई है.
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