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सेंट्रल विस्टा क्या है? नई संसद इमारत कैसी होगी? क्या विरोध है-FAQ

इसकी लागत कितनी आएगी?

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मोदी सरकार की महत्वकांक्षी परियोजना ‘सेंट्रल विस्टा’ को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी है. जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने एक याचिका पर फैसले सुनाते हुए कहा, “सरकार परियोजना के साथ आगे बढ़ सकती है, सरकार के पास सभी उचित पर्मीशन हैं. बेंच सरकार को इस योजना के लिए मंजूरी दे रही है.”

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क्या है सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट? नई संसद का निर्माण कब शुरू होगा? पर्यावरण एक्टिविस्ट इसके खिलाफ क्यों हैं? यहां जानिए सब कुछ.

नई संसद कैसी दिखेगी?

नई इमारत 65,400 स्क्वायर मीटर में फैली होगी और ये इमारत इसे बनाने वाले देशभर के कारीगरों और मूर्तिकारों के संग भारत की सांस्कृतिक विविधता का जश्न मनाएगी.

इमारत एक तिकोना ढांचा होगा और इसकी ऊंचाई पुरानी इमारत जितनी ही होगी. इसमें एक बड़ा संविधान हॉल, सांसदों के लिए एक लाउन्ज, एक लाइब्रेरी, कई कमेटियों के कमरे, डाइनिंग एरिया जैसे कई कम्पार्टमेंट होंगे.

लोकसभा और राज्यसभा का क्या?

लोकसभा चैम्बर में 888 सदस्यों के बैठने की क्षमता होगी. जबकि राज्यसभा में 384 सीट होंगी.

ये इस बात को ध्यान में रखकर बनाई जाएगी कि भविष्य में दोनों सदनों के सदस्यों की संख्या बढ़ सकती है और परिसीमन का काम भी होना है, जो कि 2026 के लिए शेड्यूल्ड है. अभी लोकसभा की अनुमानित क्षमता 543 सदस्य और राज्यसभा की 245 सदस्य है.

इसकी लागत कितनी आएगी? इसका निर्माण कौन कर रहा है?

सितंबर 2020 में टाटा प्रोजेक्ट्स ने नई इमारत के निर्माण की बोली जीती थी. इसकी लागत 861 करोड़ थी. इसका निर्माण सेंट्रल विस्टा रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट के तहत किया जाएगा.

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट है क्या?

सेंट्रल विस्टा राजपथ के दोनों तरफ के इलाके को कहते हैं. राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट के करीब प्रिंसेस पार्क का इलाका इसके अंतर्गत आता है.

सेंट्रल विस्टा के तहत राष्ट्रपति भवन, संसद, नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, उपराष्ट्रपति का घर आता है. इसके अलावा नेशनल म्यूजियम, नेशनल आर्काइव्ज, इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स (IGNCA), उद्योग भवन, बीकानेर हाउस, हैदराबाद हाउस, निर्माण भवन और जवाहर भवन भी सेंट्रल विस्टा का ही हिस्सा हैं.

सेंट्रल विस्टा रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट केंद्र सरकार के इस पूरे इलाके को रेनोवेट करने की योजना को कहा जाता है.

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पर्यावरणविद और इतिहासकार इस प्रोजेक्ट से और नई संसद इमारत के निर्माण से नाखुश क्यों हैं?

  • सुप्रीम कोर्ट में कम से कम सात याचिकाएं इस प्रोजेक्ट के लिए अथॉरिटीज की तरफ से दी गई विभिन्न इजाजतों के खिलाफ दायर की गई हैं. इसमें जमीन के इस्तेमाल में बदलाव के लिए दी गई मंजूरी भी शामिल है.
  • करीब 80 एकड़ जमीन 'प्रतिबंधित' हो जाएगी और सिर्फ सरकारी अधिकारी उसे एक्सेस कर सकेंगे. अभी ये जमीन पब्लिक के लिए भी खुली है. आर्किटेक्ट्स का तर्क है कि जमीन के इस्तेमाल में बदलाव 'कानूनी रूप से मान्य' नहीं है और जो जगहें पब्लिक के लिए खुली नहीं रहेंगी, उनकी भरपाई करने का कोई प्रावधान नहीं है.
  • इस प्रोजेक्ट का कोई पर्यावरण ऑडिट नहीं कराया गया. कम से कम 1000 पेड़ काटे जाएंगे. 80 एकड़ जमीन के ग्रीन कवर की भरपाई करने की कोई योजना नहीं है. जलवायु एक्टिविस्ट्स चेतावनी दे रहे हैं कि निर्माण शुरू होने के बाद दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण में और बढ़ोतरी हो जाएगी.
  • इसी तरह प्रोजेक्ट का कोई ऐतिहासिक या हेरिटेज ऑडिट भी नहीं हुआ है. यहां तक कि नेशनल म्यूजियम जैसी ग्रेड 1 हेरिटेज इमारत को भी तोड़ा या उसमें बदलाव किया जाएगा. ये इमारतें आर्किटेक्चरल एक्सीलेंस और नेशनल इम्पोर्टेंस की हैं.
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नई संसद का निर्माण कब तक पूरा होगा?

लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने 5 नवंबर को कहा कि नई इमारत 2022 के बजट सत्र से पहले पूरी होने की उम्मीद है.

सुप्रीम कोर्ट असल में नई संसद के निर्माण पर क्या कह रहा है?

सुप्रीम कोर्ट ने 7 नवंबर को केंद्र सरकार को शिलान्यास कार्यक्रम करने की इजाजत दे दी और कहा कि सेंट्रल विस्टा साइट पर कोई निर्माण, तोड़फोड़ या पेड़ों को नहीं गिराया जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, "आप शिलान्यास कर सकते हैं, आप कागजी करवाई कर सकते हैं लेकिन निर्माण, तोड़फोड़ या पेड़ काटना नहीं होगा."

मेहता ने केंद्र सरकार की तरफ से आश्वासन दिया कि जब तक सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आ जाता, तब तक ऐसा कुछ नहीं होगा.

संसद की मौजूदा इमारत का क्या होगा?

मौजूदा इमारत को देश की पुरातत्व धरोहर में बदल दिया जाएगा. कथित रूप से इसका इस्तेमाल संसदीय कार्यक्रमों में भी किया जाएगा.

मौजूदा ढांचा 2021 में 100 साल पूरे कर लेगा. इसका निर्माण एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने किया था. इन दोनों को नई दिल्ली शहर की योजना और निर्माण का जिम्मा दिया गया था. उस समय इसे बनाने में छह साल और 83 लाख रुपये लगे थे.

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