‘सबका मालिक एक’- मानवीय परिस्थिति में एकता का उपदेश देता एक विचार, जिसके लिए शाहपुर जाट के पुराने शिव मंदिर में कोई जगह नहीं है जहां से साईं बाबा की मूर्ति कथित रूप से पिछले हफ्ते हथौड़े मार-मारकर गिरा दी गयी थी.
शिव मंदिर के भीतर मुस्लिम कहे जा रहे साईं बाबा का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. एक मीडिया हाऊस ने यह खोज निकाला कि गणेश मूर्ति को हटाए जाने के बाद इस मूर्ति को स्थापित किया गया था. वहीं, श्रद्धालु निराश हैं कि बगैर उन्हें विश्वास में लिए यह मुहिम चलायी गयी.
स्क्रॉल.इन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण दिल्ली के शाहपुर जाट मंदिर में मूर्ति तोड़ता दिख रहा आदमी पद्म पंवार है. एक अन्य वीडियो में पंवार हिन्दू पुजारी यति नरसिंहानन्द सरस्वती के साथ देखा जा सकता है जो पंवार को बधाई और आशीर्वाद दे रहे हैं कि उसने मूर्ति तोड़ी.
सरस्वती विवादास्पद व्यक्ति हैं जो ‘मुसलमानों के विरुद्ध अंतिम लड़ाई’ का आह्वान करते रहे हैं और जिनका विश्वास है कि ‘मानवता को बचाने के लिए इस्लाम को खत्म करना जरूरी है’. वे एक हिन्दू संगठन ‘हिन्दू स्वाभिमान’ के नेता हैं.
साईं बाबा कौन थे?
साईं बाबा के शुरुआती जीवन के बारे में साफ तौर पर बहुत कम बातें स्पष्ट हैं. बताया जाता है कि उनका जन्म 1838 में हुआ था, लेकिन कहां और किनके यहां- इसका प्रमाण नहीं मिलता. परभणी जिले के पथरी शहर में स्थानीय लोगों का दावा है कि पथरी को ही साईं का जन्मस्थान कहा जाता रहा है.
साईं बाबा का धार्मिक उत्थान या फिर उनका वास्तविक नाम भी किसी को नहीं पता. ‘साईं बाबा’ अपने आपमें महज एक संबोधन है. ‘साईं’ पारसी शब्द है जिसका मतलब पवित्र होता है और हिन्दी में ‘बाबा’ का मतलब होता है पिता.
ज्यादातर लोगों का मानना है कि साईं बाबा ने एक ब्राह्मण के तौर पर जन्म लिया और फिर किसी सूफी फकीर या भिखारी ने उन्हें गोद ले लिया. इसी आधार पर ब्रिटेनिका के मुताबिक 1858 में साईं बाबा महाराष्ट्र के शिरडी शहर में पहुंचे, जहां वे 1918 तक अंतिम समय तक रहे.
साईं बाबा ने अपना समूचा जीवन एक निर्जन मस्जिद में गुजारा जिसे उन्होंने नाम दिया- द्वारका माई. ऐसी मान्यता है कि सूफी परंपराओं के अनुसार उन्होंने मस्जिद में हमेशा अग्नि प्रज्ज्वलित रखी. पुराण, भगवत गीता और कुरान के इर्द-गिर्द घूमती हैं उनकी शिक्षा.
भारत में साईं बाबा के विकास का श्रेय विश्वास, सहिष्णुता, धैर्य, प्यार, सेवा, एकता और सद्गुणों को दिया जा सकता है. उनके चमत्कार की कहानियां हिन्दुओँ के साथ-साथ मुसलमान, सिख, ईसाई और दूसरे लोगों पर भी असर डालती हैं जिनके लिए उनकी शिक्षा और सम्मान उनके ‘धर्म’ से भी अधिक महत्व रखती हैं.
साईं सत्चरित्र
साईं बाबा के जीवन पर आधारित जीवनी है साईं सत्चरित्र जिसे गोविंद रघुनाथ दाभोलकर उर्फ हेमादपंत ने लिखा है.
1910 में जब हेमादपंत साईं बाबा का आशीर्वाद लेने शिरडी पहुंचे तो उन्होंने पाया कि बाबा गेहूं पीस रहे थे जिसे उन्होंने बाद में शिरडी गांव की सीमाओं पर चारों ओर बिखेर दिया.
जब हेमादपंत ने गांववालों से पूछा कि ऐसा क्यों किया गया, तो उन्होंने उन्हें बताया कि हैजा की महामारी को गांव में प्रवेश नहीं करने देने के लिए जमीन पर आटा बिखेरा गया था. यह सब देखकर साईं बाबा के जीवन और उनकी लीला (दैवी लीला) के बारे में लिखने को हेमादपंत प्रेरित हुए.
उनके भक्त एक विश्वास को व्यक्त करते हैं जो विभिन्न धर्मों की औपचारिकताओं से परे है. साईं बाबा ने अपनी सुलभ आध्यात्मिक मौजूदगी से उन्हें धार्मिक संकीर्णताओं के विरुद्ध सहारा दिया. उन्होंने अपने अनुयायियों को विविधता में एकता के दैवीय दर्शन का मार्ग दिखाया जो बहुत कुछ भारत के विचार की आधारशिला है.
दिल्ली मंदिर में क्या हुआ था?
हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक पिछले हफ्ते घटी घटना के बारे में भक्तों की शिकायतों के बाद पुलिस ने कहा है कि रविवार 4 अप्रैल को उसने हमले वाले वीडियों की जांच शुरू की है जिसमें एक व्यक्ति को शाहपुर जाट मंदिर में साईं बाबा की मूर्ति तोड़ते हुए देखा जा सकता है.
मंदिर समिति के एक सदस्य ने कहा कि मूर्ति टूट गयी थी इसलिए उसे वहां से हटा दिया गया. हौजखास थाने की पुलिस का कहना है कि मंदिर के पदाधिकारियों ने मूर्ति इसलिए हटा दी क्योंकि मंदिर की मरम्मत की जा रही थी.
हालांकि वीडियो में दिख रहे पंवार ने शुरू में दावा किया था कि वीडियो से छेड़छाड़ की गयी थी और उसने मूर्ति पर हमले नहीं किए. बाद में उसने साफ किया कि भारी होने की वजह से उसे यह मूर्ति गिरानी थी ताकि मजदूर इसे आसानी से उठाकर हटा सकें.
इलाके के स्थानीय लोगों को हालांकि विश्वास नहीं है कि यह घटना मरम्मत के कार्य का हिस्सा है और वे दुखी हैं. वे अपनी पहचान उजागर करने को तैयार नहीं हैं क्योंकि वीडियो में दिख रहे लोग ‘गुंडे’ हैं और कोई उनके खिलाफ नहीं जा सकता.
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