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कॉफी किंग सिद्धार्थ ने बैंकरप्सी के बजाय मौत का रास्ता क्यों चुना?

कर्नाटक की नेत्रवती नदी में मिला था वीजी सिद्धार्थ का शव

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जो इंसान 20,000 करोड़ की संपत्ति का मालिक हो, वो 10,000 करोड़ के कर्ज में डूबने के बाद सुसाइड कर ले, ये बात देश के कारोबारी जगत को पच नहीं रही. हम बात कर रहे हैं, कैफे कॉफी डे के संस्थापक वीजी सिद्धार्थ की, जिनका शव कर्नाटक की नेत्रवती नदी में पाया गया.

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ब्लूमबर्ग क्विंट ने अपने आकलन में पाया कि स्टॉक एक्सचेंज और कॉरपोरेट अफेयर्स मंत्रालय के मुताबिक सिद्धार्थ पर लगभग 10,000 करोड़ रुपयों का कर्ज है. कर्ज का एक तिहाई हिस्सा सिद्धार्थ की निजी कंपनी पर, जबकि दो तिहाई भाग कॉफी डे एन्टरप्राइजेज लिमिटेड पर है.

लेकिन उनकी संपत्ति की कीमत उनपर कर्ज से कहीं ज्यादा है. कॉफी डे कारोबार को मार्च 2019 में 2,200 करोड़ रुपये हासिल हुए और ब्रांड की ही कीमत 8,000 करोड़ रुपये लगाई गई है. इसके अलावा चिकमगलूर में एक फैक्ट्री है और परिवार का प्लांटेंशन और हॉस्पिटैलिटी के क्षेत्रों में भी कारोबार है. कुल संपत्ति लगभग 20,000 करोड़ रुपयों के आसपास है.

दलील दी जाती है कि हाल में कम अवधि के कर्ज में भारी बढ़ोत्तरी और भविष्य में कर्ज लेने पर रोक के साथ संपत्ति बेचने में असमर्थता ने उनके हाथ पूरी तरह बांध दिये थे. लेकिन कई लोगों को आश्चर्य होता है कि इन वजहों से उन्होंने अपनी जिंदगीक्यों खत्म कर ली, जबकि वो खुद को दिवालिया घोषित कर वित्तीय परेशानियों से बच सकते थे.

‘उन्हें दिवालिया होने के विकल्प पर सोचने की जरूरत नहीं थी. उनके पास पर्याप्त संपत्ति थी.’

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एक पूर्व उप प्रबंध निदेशक ने बताया कि कई कारोबारियों ने दिवालिया होने का विकल्प चुना और सालों तक केस लड़ते रहे. उनके मुताबिक सिद्धार्थ अपनी संपत्ति के जरिये अपने कर्ज चुकता कर सकते थे और उन्हें दिवालिया होने के विकल्प पर विचार करने की जरूरत नहीं थी. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि अक्सर उद्योगपति लिक्विडिटी क्रंच बर्दाश्त नहीं कर पाते.

“वैसे मोटी चमड़ी वालों की भी कमी नहीं. या तो वो देश छोड़कर भाग जाते हैं या फिर 700 से ज्यादा दिनों तक मुकदमे लड़ते रहते हैं. सिद्धार्थ को अपनी खामियों का अहसास था और वो विनम्र थे. उनकी बात में वजन होता था. यही वजह थी कि उन्हें कई कर्जदाताओं और वित्तीय संस्थानों से मदद मिली थी.

“जब आपके शब्दों की अहमियत हो और आप डिफॉल्ट हो जाते हैं, तो आपके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है. इस झटके से उबरने के लिए आपकी चमड़ी मोटी होनी चाहिए, लेकिन अगर आप संजीदा हैं तो ऐसा नहीं कर सकते.”
पूर्व उपप्रबंध निदेशक, SBI
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‘बात संपत्ति और कर्ज की नहीं, कुछ और है’

सिद्धार्थ का मामला संपत्ति और कर्ज के आकलन से कहीं ज्यादा था. ये कहना है एक प्रमुख मल्टीनेशनल कॉरपोरेशन के पूर्व निदेशक का,

“मेरे दिमाग में सवाल उठ रहा है कि क्या उनपर फौरन कुछ कर्ज अदायगी का दबाव था, जिसमें किसी प्रकार की धमकी या अपमानित करना शामिल था? क्या किसी वजह से उनके हाथ बंधे हुए थे? क्योंकि उनके जैसा व्यक्ति इन बातों को आसानी से नहीं पचा सकता. वो एक धनी और रसूखदार इंसान थे. कुछ ऐसा हुआ होगा, जिससे वो टूट गए.”
उनके मुताबिक खुद को दिवालिया घोषित करने का विकल्प सिद्धार्थ के पास नहीं था. उन्होंने कहा, “आप इसका मतलब समझ सकते हैं. इसका उनके सामाजिक ओहदे, रसूख और ऐसी तमाम बातों पर बुरा असर पड़ता.”
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आयकर की दिक्कतें...

एक दूसरे सूत्र के मुताबिक, सिद्धार्थ ने बोर्ड और कर्मचारियों को लिखे अपने खत में आयकर से जुड़ी परेशानियों का जिक्र किया था, जिसका गंभीर असर हुआ होगा.

उन्होंने सवाल किया, “मुझे बताया गया कि आयकर विभाग जल्द ही डीके शिवकुमार के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने वाला था. उसमें मनी लॉन्डरिंग के आरोप में सिद्धार्थ का नाम भी शामिल होने की आशंका थी. अगर किसी को एक के बाद एक अपमान का सामना करना पड़े, तो क्या वो टूटेगा नहीं?”

कारोबारी जगत में काफी चर्चा है कि डीके शिवकुमार के साथ सिद्धार्थ की नजदीकियों से आय कर की परेशानी बढ़ी. उनके ससुर एस एम कृष्णा के साए में तरक्की करने वाले शिवकुमार की नजदीकियां सिद्धार्थ और एसएम कृष्णा के परिवार के साथ बनी रही हैं. ये सिलसिला उनके बीजेपी में शामिल होने के बाद भी बना रहा.

फिलहाल कई वित्तीय घोटाले के आरोपों में आय कर विभाग शिवकुमार पर शिकंजा कस रहा है. उनका कहना है कि ये जांच राजनीतिक बदले की भावना से की जा रही है.

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निजी जिंदगी की परेशानियां

सिद्धार्थ के खुदकुशी करने के बाद ज्यादातर लोगों का ध्यान उनकी वित्तीय परेशानियों पर चला गया, लेकिन कई लोगों का मानना है कि निजी जीवन में भी उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था. उनके पिता गन्हईया हेगड़े मैसूर के शांतावेरी गोपाल गौड़ा अस्पताल में 15 दिन से भर्ती थे. परिवार के सदस्यों के मुताबिक कुछ दिन पहले हेगड़े कोमा में चले गए थे. उन्हें अब तक अपने बेटे की मौत के बारे में मालूम नहीं है.

चटनाहल्ली एस्टेट के एक ड्राइवर महेश ने क्विंट हिंदी को बताया कि खुदकुशी करने के तीन दिन पहले सिद्धार्थ ने एस्टेट का दौरा किया था. उस समय उन्होंने महेश को संक्षेप में अपने पिता की बिगड़ती हालत के बारे में बताया था.

वित्तीय परेशानियां हों या व्यक्तिगत, लेकिन एक उद्योगपति को खुदकुशी जैसा कदम उठाने पर क्यों विवश होना पड़ता है, ये सोच का विषय है.

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