तमिलनाडु की सियासत के स्तंभ रहे पूर्व मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख एम. करुणानिधि के पार्थिव शरीर को बुधवार को दफनाया जाएगा. डीएमके और उसके समर्थकों ने मांग की थी कि उन्हें दफनाने के लिए मरीना बीच पर जगह दी जाए और वहां एक समाधि स्थल बनाया जाए. राज्य सरकार की आपत्ति से हुए विवाद के बाद आखिरकार मद्रास हाई कोर्ट ने करुणानिधि का अंतिम संस्कार मरीना बीच पर ही करने की इजाजत दे दी.
इन सबके बीच कई लोगों के मन में एक सवाल है कि हिंदू होने के बावजूद करुणानिधि के शव को दाह संस्कार की बजाय आखिर दफनाया क्यों जाएगा? साथ ही तमिलनाडु राजनीति के दिग्गजों को मरीना बीच पर ही क्यों दफनाया जाता है?
हिंदू रीति-रिवाजों को नहीं मानते द्रविड़ नेता
दरअसल, एम करुणानिधि द्रविड़ आंदोलन का चेहरा थे. द्रविड़ आंदोलन हिंदू धर्म की ब्राह्मणवादी परंपराओं का खुलकर विरोध करता है. साथ ही ये हिंदू धर्म के रीति-रिवाज को नहीं मानता. करुणानिधि के राजनीतिक सिद्धांत हिंदू जाति व्यवस्था, धार्मिक आडंबरों और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ थे.
वे खुद को नास्तिक कहते थे, और हिंदू रीति-रिवाजों और समाज में फैले अंधविश्वासों की खुलकर आलोचना करते थे. यही वजह है कि द्रविड़ आंदोलन से जुड़े नेताओं के निधन के बाद उनका दाह संस्कार नहीं किया जाता, बल्कि उन्हें दफनाया जाता है.
सामान्य हिंदू परंपरा के उलट द्रविड़ आंदोलन से जुड़े नेता अपने नाम के साथ जातिसूचक उपनाम, यानी टाइटल का भी इस्तेमाल नहीं करते हैं.
इन नेताओं को भी मरीना बीच पर ही दफनाया गया
मरीना बीच चेन्नई का एक मशहूर बीच है. द्रविड़ राजनीति के नजरिए से देखें तो मरीना बीच महज एक समुद्र तट नहीं है. करुणानिधि से पहले भी तमिलनाडु में राजनीति के ज्यादातर दिग्गजों को निधन के बाद मरीना बीच पर ही दफनाकर उनका अंतिम संस्कार किया गया है. साथ ही उनकी कब्र पर एक स्मारक बना दिया गया, ताकि आने वाली पीढ़ी अपने दिग्गज नेताओं को याद कर सके.
मरीना बीच पर एमजीआर, उनके राजनीतिक उत्त्तराधिकारी जयललिता, करुणानिधि के राजनीतिक मेंटर सीएन अन्नादुरई की समाधि है.
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