ADVERTISEMENTREMOVE AD

BSP में पैर छूना बैन, क्यों लिया बहन जी ने यह सख्त फैसला ?

फैसला कार्यक्रमों के दौरान पैर छूने में बर्बाद होने वाले समय को बचाने के लिये लिया गया है, लेकिन असली वजह कुछ और

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

पिछले 6 साल से यूपी की सत्ता से गायब बीएसपी ने अब पैर छू कर आशीर्वाद लेने और देने की परंपरा से तौबा कर ली है. बीएसपी में अब सिर्फ ‘जय भीम’ ही चलेगा. वैसे कहने के लिए तो यह फैसला कार्यक्रमों के दौरान पैर छूने में बर्बाद होने वाले समय को बचाने के लिये लिया गया है, लेकिन असली वजह तो कुछ और ही है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

समय के साथ बीएसपी में भी बदलाव आ रहा है. सामंतवादी सोच खत्म करने आईं बीएसपी सुप्रीमो मायावती पर सामंतवादी होने का आरोप लगता रहा है. बीएसपी देश की इकलौती पार्टी रही है जिसके बारे में बताते है कि पार्टी की बैठकों में कुर्सी सिर्फ मायावती के लिए लगती थी, इसके अलावा सभी जमीन पर बैठते रहे.

लेकिन बाद में 2007 विधानसभा चुनाव के दौरान इसमें बदलाव हुआ और कुर्सियों की संख्या बढ़ी. वैसे ही पार्टी में पैर छूने की परंपरा भी काफी पुरानी है. नेता चाहे जितने बड़े कद का हो मायावती का चरण वंदन किए बगैर पार्टी मेंउसकी एंट्री अधूरी मानी जाती थी.

अब हालात वैसे नहीं रहे. 6 सालों से बीएसपी सरकार से बाहर है. 2014 लोकसभा में बीएसपी का खाता ही नहीं खुला, जबकि 2017 यूपी विधानसभा में सिर्फ 19 विधायक ही सदन में पहुंच पाये हैं. पार्टी का ग्राफ लगातार गिरता ही रहा और इस दौरान एक के बाद एक पार्टी के बड़े नेता मायावाती का साथ छोड़ते चले गये. ऐसे में पार्टी अपने को फिर से खड़ा करने के लिए इस तरह के बड़े बदलाव कर रही है.

पैर छूने को लेकर होते रहे हैं विवाद

  1. 2013 में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान सुरक्षा में तैनात पद्म सिंह ने मायावती की सैंडल साफ की. जिस पर काफी बवाल हुआ.
  2. 2016 में अतरौली प्रत्याशी संगीता चौधरी ने पैर छूते हुए फोटो फेसबुक पर लगाया. जिस पर बवाल शुरू हुआ तो पार्टी से निकाली गयी.
  3. 2016 में दो मुस्लिम प्रत्याशियों ने पार्टी छोड़ दी. आरोप लगाया कि बीएसपी में पैर छूने के लिए दबाव बनाया जा रहा है.

खास लोगों ने धीरे-धीरे किया किनारा

2017 विधानसभा चुनाव में बुरी तरह मात खाने के बाद मायावती ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी को निकाल दिया तो स्वामी प्रसाद मौर्य, आरके चौधरी, इंद्रजीत सरोज, बृजेश पाठक, दद्दू प्रसाद, जुगल किशोर, फतेह बाहादुर सिंह, ठाकुर जयवीर सिंह जैसे बड़े नेताओं ने साथ छोड़ दिया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
 फैसला कार्यक्रमों के दौरान पैर छूने में बर्बाद होने वाले समय को बचाने के लिये लिया गया है, लेकिन असली वजह कुछ और
पैर छूना बीएसपी में घुसने की पहली सीढ़ी थी.

मजबूरी में ही सही लेकिन सकारात्मक बदलाव

जो नहीं जानते हैं उनके लिए ये मामूली बात हो सकती है, लेकिन पार्टी से जुड़े लोग इसे बड़ा बदलाव मानते है. और बेहद खुश हैं. बीएसपी के एक नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि जब पार्टी का बेहतर प्रदर्शन था तब तो लोग पार्टी टिकट के लिए लाइन लगाते थे और बहन जी की सिर्फ झलक पाने के लिए कई बार पैर छूने को तैयार थे. लेकिन अभी पार्टी बुरे दौर से गुजर रही है. तो लोगों को ये बुरा लगता है. ऐसे में जो लोग आना भी चाहते हैं वो सिर्फ पैर छूने के नाम पर कतराते हैं.

1984 में बनी कांशीराम की बहुजन समाजवादी पार्टी को 1991 से मायावती ने दौड़ाना शुरू किया, जो 2007 में बुलंदियों के शिखर पर पहुंची. विधानसभा चुनाव में 206 सीट जीत कर मायावती चौथी बार मुख्यमंत्री बनी थीं. ये वो दौर था जब दलितों की पार्टी बीएसपी की सुप्रीमो मायावती से ज्यादा शान ओ शौकत वाले कम ही थे.

शायद ही ऐसे कोई बड़े कारोबारी और रईस होंगे जिनकी टूटी सैंडल हेलिकॉप्टर से बनने गयी होगी. लेकिन समाज के सबसे निचले और दबे-कुचलों को सम्मान दिलाने के नाम पर शासन करने वाली मायावती के लिये ये कोई बड़ी बात नहीं रही.

बीएसपी ही इकलौती पार्टी थी जिसका टिकट मिलना ही जीत की गारंटी मानी जाती थी. लेकिन यहां के नियम बड़े सख्त रहे. ऐसे में नेताओं को सेट होने में थोड़ी असहजता होती रही. पैर छूना बीएसपी में घुसने की पहली सीढ़ी थी.
 फैसला कार्यक्रमों के दौरान पैर छूने में बर्बाद होने वाले समय को बचाने के लिये लिया गया है, लेकिन असली वजह कुछ और
15 नवंबर, 2009. मायावती का पैर छूते स्वामी प्रसाद मौर्य
(फोटो: PTI /Nand Kumar)

बढ़ता गया पैसों का बोलबाला

बीएसपी को करीब से जानने वाले बताते हैं कि मायावती के जन्मदिन पर पैर छूने वालों की लंबी कतार लगती है. अब तो ये भीड़ कुछ कम हुई है, लेकिन पहले सिर्फ पैर छूने से ही काम नहीं चलता था बल्कि चढ़ावा भी चढ़ाना पड़ता था.

बीएसपी में पैसे वालों की ही पूछ होती है. पार्टी का कोई कार्यक्रम हो या बहन जी का जन्मदिन, जो कोई भी पार्टी को फंड देता था, वही पार्टी सुप्रीमो मायावती से मिल पाता था. पैसों का खेल इतना बढ़ा कि बहुजन समाज पार्टी जनता के बीच अपनी चमक खोती चली गयी. नतीजा यह हुआ कि अपने ही दूर होने लगे.

देखें - वीडियो: 2019 चुनाव का फैसला मायावती और एक पूर्व क्लर्क के हाथ में?

ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्विंट और बिटगिविंग ने मिलकर 8 महीने की रेप पीड़ित बच्ची के लिए एक क्राउडफंडिंग कैंपेन लॉन्च किया है. 28 जनवरी 2018 को बच्ची का रेप किया गया था. उसे हमने छुटकी नाम दिया है. जब घर में कोई नहीं था,तब 28 साल के चचेरे भाई ने ही छुटकी के साथ रेप किया. तीन  सर्जरी के बाद छुटकी को एम्स से छुट्टी मिल गई है लेकिन उसे अभी और इलाज की जरूरत है ताकि वो पूरी तरह ठीक हो सके. छुटकी के माता-पिता की आमदनी काफी कम है, साथ ही उन्होंने काम पर जाना भी फिलहाल छोड़ रखा है ताकि उसकी देखभाल कर सकें. आप छुटकी के इलाज के खर्च और उसका आने वाला कल संवारने में मदद कर सकते हैं. आपकी छोटी मदद भी बड़ी समझिए. डोनेशन के लिए यहां क्लिक करें.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×