कहते हैं राजनीति में कोई परमानेंट दोस्त या दुश्मन नहीं होता है. या यूं कहे जितनी जल्दी गिरगिट रंग नहीं बदलता उससे कहीं जल्दी राजनीतिक पार्टी और नेता दल, दिल और दोस्त बदल लेते हैं. अब तेलगु देशम पार्टी और बीजेपी को ही देख लीजिये.
साल 2014 में जब देश मोदी रथ पर सवार हो रहा था, तब उस रथ की एक डोर टीडीपी के हाथ में भी थी. वो अलग बात है कि बीजेपी ने उस रथ की कमान अपने सिवा किसी और को दी ही नहीं. चार सालों का बीजेपी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू का साथ के बाद अब लगता है दूरियां बढ़ गई हैं.
आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा न दिए जाने से नाराज टीडीपी ने सरकार से अपने मंत्री हटा लिए. इस पर चंद्रबाबू नायडू ने कहा,
मैं 29 बार दिल्ली गया, लेकिन उसका कोई फायदा नहीं मिला. गठबंधन के सदस्य होने के नाते ये मेरी जिम्मेदारी बनती है कि प्रधानमंत्री को पार्टी के फैसले से अवगत कराऊं. लेकिन मोदी फोनलाइन पर नहीं आए.
हालांकि अगले दिन यानी गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फोन पर चंद्रबाबू नायडू से बात की पर तब तक देर हो चुकी थी.
सवाल कई जवाब एक
एेसे में अब कई सवाल उठते हैं. जहां बीजेपी एक के बाद एक राज्य जीत रही है वहां वो अपने साथी का साथ छूटने पर भी रिलैक्स क्यों है? क्या बीजेपी को कोई और साथी मिल गया है? या फिर चंद्रबाबू नायडू विशेष राज्य का दर्जा का मुद्दा उठा कर अपनी राजनीतिक जमीन को और मजबूत करना चाह रहे हैं?
एक नजर आंध्र प्रदेश के नंबर गेम पर
2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी और टीडीपी ने एक साथ चुनाव लड़ा था. 25 लोकसभा सीटों वाले आंध्र प्रदेश में 20 सीटों पर चंद्रबाबू नायडू की पार्टी ने चुनाव लड़ा था जिसमें उन्होंने 15 सीटें जीती थी. वहीं बीजेपी ने पांच सीटों पर चुनाव लड़ा था और उन्हें 2 सीटें हासिल हुई थी. अगर बात वाईएसआर जगन की पार्टी की करें तो आंध्र प्रदेश में उनके पास कुल 8 लोकसभा सांसद हैं. और वो टीडीपी को टक्कर देने वाले सबसे मजबूत विरोधी हैं.
यही नहीं अविभाजित आंध्र प्रदेश (तेलंगाना के साथ) में 2014 में हुए चुनाव के दौरान जगन की पार्टी ने 294 सीटों में से 70 सीटें जीती थीं. अब अगर तेलंगाना को हटा दें तो आंध्र प्रदेश विधानसभा में कुल 175 और तेलंगाना में 119 विधानसभा सीटें हैं. अब बात सिर्फ आंध्र की करें तो यहां सबसे बड़ी पार्टी टीडीपी है. जिसके पास 103 एमएलए हैं. वहीं वाईएसआर कांग्रेस के पास 66 एमएलए हैं.
बीजेपी की नजर जगन रेड्डी पर
2014 के विधानसभा चुनाव में टीडीपी को 32.53 फीसदी वोट मिले थे. वहीं वाईएसआर कांग्रेस को 27.88 फीसदी वोट. जबकि टीडीपी के साथ चुनाव लड़ने पर बीजेपी को 4.13 प्रतिशत वोट मिले थे.
ऐसे में अगर बीजेपी और जगन की पार्टी के वोटों को मिला दिया जाए, तो यह आंकड़ा टीडीपी के वोट शेयर के करीब करीब बराबर ही बैठता है. तो ये कहा जा सकता है कि बीजेपी से चाहे टीडीपी अलग हो या फिर जगन रेड्डी साथ आ जाए बीजेपी के दोनों हाथ में लड्डू ही होगा.
आंध्र में होड़ लगी है- कौन ज्यादा राज्य प्रेमी
अब राजनीतिक जानकारों की माने तो बीजेपी अभी लोहे को भी छू दे तो सोना बन जाये वाले कंडीशन में है. इसलिए बीजेपी अगर टीडीपी से अलग हो रही है तो उसे लोहा तो नहीं लेकिन पीतल की शक्ल में वाईएसआर कांग्रेस का साथ मिल सकता है. जोकि सिर्फ 2019 लोकसभा ही नहीं बल्कि विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी के के लिए सोना नहीं तो चांदी का काम कर ही सकती है.
हालांकि जगन रेड्डी भी आंध्र के लिए विशष राज्य का दर्जा मांग रहे हैं. लकिन क्या पता बिहार के सीएम नीतीश कुमार की तरह कहीं जगन भी बीजेपी के साथ आने के बाद विशेष राज्य का दर्जा भूल जाएं.
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फिलहाल ये याद रखिए राजनीति में खबर लिखने और उसके छपने के बीच के इस वक्त में कोई भी दल अपना दिल बदल कर दलदल में फंस भी सकता है या फिर सत्ता की ऊंचाई पर चढ़कर पुराने साथी को मुंह चिढ़ा सकता है.
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