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TDP तो चली... और शिवसेना बस धमकाती रह गई

मोदी सरकार से बाहर निकलने की धमकी देने वाली शिवसेना का सत्ता प्रेम फिर एक बार साफ हो गया.

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TDP ने अपनी मांग नहीं माने जाने पर केंद्र सरकार को आईना दिखा दिया है, साथ ही अपनी धमकी का असर भी दिखा दिया. लेकिन शिवसेना ऐसा क्यों नहीं कर पाई? क्या सचमुच जो बादल गरजते हैं, वो बरसते नहीं. कुछ इस अंदाज में सोशल मीडिया पर लोग शिवसेना से सवाल पूछ रहे हैं.

दरअसल, आंध प्रदेश को विशेष राज्य के दर्जे की मांग नहीं माने जाने पर टीडीपी के सांसदों ने केंद्र सरकार से इस्तीफा दे दिया है, जो बीजेपी के लिए राजनीतिक भूकंप से कम नहीं है. लेकिन अब शिवसेना को भी कटाक्ष झेलना पड़ रहा है कि मोदी सरकार के साथ रहकर हर मुद्दे पर आलोचना करना और सरकार से बाहर निकलने की धमकी देने वाली शिवसेना का सत्ता प्रेम फिर एक बार साफ हो गया.

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‘’हमें सत्ता का लोभ नहीं, हम सत्ता को लात मारने वालों में से हैं’’ ... शिवसेना नेताओं के बयान और उद्धव ठाकरे के हर दूसरे दिन आने वाले बयान सिर्फ किसी सिनेमा के डायलॉग की तरह हैं. इसका राजनीति से कुछ ज्यादा सरोकार नहीं है. ऐसा जानकार कह रहे हैं.

इस बीच राज ठाकरे ने कॉर्टून के जरिए शिवसेना का मजाक उड़ाया है

उद्धव से ली TDP ने प्रेरणा: शिवसेना

“साल 2019 के आम चुनाव से पहले NDA से हर पार्टी अलग होगी. शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे इस बात को लगातार कह रहे हैं. शिवसेना का BJP से अलग होकर चुनाव लड़ने का ऐलान ही TDP के लिए भी इतना बड़ा फैसला लेते वक्त प्रेरणा देने वाला रहा है.” ये कहना है शिवसेना नेता संजय राउत का.

द क्विंट से खास बातचीत में संजय राउत ने कहा कि TDP का बीजेपी के प्रति गुस्सा इस बात को लेकर भी था कि बीजेपी पर्दे के पीछे YSR कांग्रेस से हाथ मिलने की साजिश रच रही थी. उन्‍होंने ये आरोप भी लगाया कि दोस्त की पीठ में छुरा घोंपने की बीजेपी की पुरानी आदत रही है. 

BJP और TDP से सीख लेनी चाहिए शिवसेना को

BMC चुनाव के वक्त शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने बीजेपी से नाता तोड़कर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला लिया. चुनाव नतीजे आने के बाद शिवसेना भले ही सबसे बड़ी पार्टी बनी हो, लेकिन पूर्ण बहुमत नहीं ला सकी हालांकि सत्ता स्थापित करने के लिए बीजेपी का साथ लेना जरूरी था.

BJP ने शिवसेना को समर्थन तो दिया, लेकिन सत्ता में शामिल होकर नहीं, बल्कि बाहर से. लेकिन शिवसेना महाराष्ट्र सरकार में ऐसा नहीं कर सकी. BMC की तरह विधानसभा चुनाव के वक्त भी बीजेपी, शिवसेना- दोनों पार्टी चुनाव अलग-अलग लड़ी थी.

चुनाव के बाद बीजेपी ने जब सरकार बनाने का दावा पेश किया, तो शिवसेना थोड़े दिन विपक्ष में रही, लेकिन कुछ ही महीनों में सत्ता की लालसा में शिवसेना ने विपक्ष की भूमिका छोड़ बीजेपी का हाथ थाम लिया.

शिवसेना अगर चाहती, तो बीजेपी को बाहर से भी समर्थन दे सकती थी, इसलिए शिवसेना को सीख लेने की जरूरत है.

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