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गहलोत की सिब्बल को नसीहत-आंतरिक मसले मीडिया में लाना जरूरी नहीं था

आंतरिक मसलों को ऐसे मीडिया में रखने से पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाएं आहत होती हैं- गहलोत

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बिहार विधानसभा चुनाव के साथ अन्य कई राज्यों के उपचुनावों में कांग्रेस की शिकस्त के बाद पार्टी में बयानबाजी का दौर शुरू है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने फिर पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाए हैं. अब सिब्बल की इस बयानबाजी पर राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत का कहना है कि आंतरिक मसलों को ऐसे मीडिया में रखने से पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाएं आहत होती हैं.

आंतरिक मामलों को मीडिया में लाने की कोई जरूरत नहीं थी, देशभर के पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाएं इससे आहत हुईं हैं. कांग्रेस ने साल 1969, 1977, 1989 और बाद में 1996 में कई बार संकट देखा है. लेकिन हर बार अपनी विचारधारा, प्रोग्राम, पॉलिसी और पार्टी लीडरशिप पर भरोसे की वजह से उबरकर और मजबूती से सामने आई है.
अशोक गहलोत
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अशोक गहलोत ने भी कहा कि कांग्रेस ने ऐसी 'संकट की स्थिति' पहले भी कई बार देखी और हर बार उसका सामना कर वापस लौटी है.

हमने हर सकंट के बाद खुद में सुधार किया है और सोनियाजी के नेतृत्व में साल 2004 में सरकार भी बनाया था. हम इस बार भी पार पा लेंगे.
अशोक गहलोत

पहले भी सिब्बल कर चुके हैं 'मांग'

इससे पहले सिब्बल उन 23 नेताओं में से एक थे, जिन्होंने पत्र लिखकर पार्टी में व्यापक सुधार लाने की मांग की थी. सिब्बल ने कहा कि वह सार्वजनिक रूप से बोलने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि पार्टी के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए पार्टी में कोई मंच नहीं है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस को चुनावों का प्रबंधन करने के लिए कुशल और वरिष्ठ नेताओं की जरूरत है. बिहार विधानसभा और विभिन्न राज्यों में हुए उपचुनावों में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद सिब्बल का यह बयान सामने आया है, जिसे टीम राहुल गांधी पर एक स्पष्ट हमले के रूप में देखा जा रहा है, जिनकी चुनावी टीम चुनाव प्रक्रिया में शामिल थी. उन्होंने यह भी नाखुशी व्यक्त की कि पार्टी के किसी भी वरिष्ठ नेता ने बिहार के नतीजों पर बात नहीं की है.

बिहार चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन 'निराशाजनक'

कई कांग्रेस नेताओं ने बिहार के नतीजों के बाद अपनी बात रखी है, क्योंकि कांग्रेस को विपक्ष के महागठबंधन में सबसे कमजोर कड़ी के रूप में पाया गया है. कांग्रेस ने राज्य में 70 सीटों पर चुनाव लड़ा, मगर वह महज 19 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी. कांग्रेस उन उपचुनावों में भी हार गई, जहां उसका भारतीय जनता पार्टी के साथ सीधा मुकाबला था. सिब्बल ने कहा कि पार्टी को स्वीकार करना होगा कि वह ढलान पर है और संगठनात्मक पुनर्गठन और मीडिया प्रबंधन से लेकर खुद को मजबूत करने के लिए कई तरीकों को अपनाए जाने की आवश्यकता है. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि उनकी पार्टी को विचारशील नेतृत्व की आवश्यकता है जो अधिक मुखर हो और चीजों को आगे बढ़ा सके.

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