वीडियो एडिटर- मौसमी सिंह
नीतीश कुमार लगातार चौथी बार बिहार के मुख्यमंत्री बन गए हैं लेकिन हालात अब बिल्कुल बदल गए हैं. बिहार में बीजेपी अब सबसे बड़ी पार्टी है. जूनियर पार्टनर के तौर पर शुरू हुई बीजेपी अब नीतीश कुमार के साथ सीनियर पार्टनर बन कर आ गई है. नीतीश कुमार के साथ दो डिप्टी चीफ मिनिस्टर लगाए गए हैं, उन्हीं से सबसे बड़ा मैसेज आता है और वो ये कि बिहार में बीजेपी अपने आगे के 'फॉरवर्ड मार्च' के लिए 'बैकवर्ड कार्ड' खेलने की शुरुआत कर रही है.
बीजेपी का 'संघ फैक्टर'
एक दूसरी अहम बात ये है कि इस बार बिहार की राजनीति में बीजेपी को इतना स्पेस मिला है और पार्टी से ज्यादा संघ के पुराने नेताओं को तवज्जो दी जा रही है. सबसे बड़ा उदाहरण दो उपमुख्यमंत्री तारकेश्वर प्रसाद और रेणु देवी का चयन है क्योंकि आप जो नाम सुनते थे सुशील मोदी, नंदकिशोर यादव और प्रेम कुमार, ये लोग अब सेंटर स्टेज पर नहीं हैं. हो सकता है उनका रोल कुछ और हो जाए लेकिन अब यहां बिहार में बीजेपी नई पॉलिटिक्स करने जा रही है जिसमें 'संघ फैक्टर' को समझना बहुत जरूरी है.
आज जिन मंत्रियों ने शपथ ली है उसमें BJP के 7, JDU के 5, VIP-HAM के 1-1 मंत्री हैं. मुख्यमंत्री समेत 15 लोगों की ये पहली टीम है. मजे की बात ये है कि पहली बार बिहार का ये पहला कैबिनेट ऐसा सामने आया है जिसमें कोई मुस्लिम मंत्री नहीं है.
तारकिशोर प्रसाद, रेणु देवी में क्या है खास?
तारकिशोर प्रसाद की खास बात ये है कि वो एबीवीपी बैकग्राउंड से आते हैं, वैश्य जाति के हैं, कटिहार से चौथी बार इस बार जीत करके आए हैं. इसी तरह रेणु देवी वहां पर एक्सट्रीमली बैकवर्ड कास्ट (EBC) नोनिया जाति की प्रतिनिधि हैं. पांचवी बार जीत कर आई हैं, वो पहले मंत्री रह चुकी हैं. इन दोनों नाम को सुनकर चौंकने की जरूरत नहीं है क्योंकि जो लोग बीजेपी को फॉलो करते हैं उनको पता है कि बीजेपी ऐसे फैसले करती आई है. चाहे वो यूपी के मुख्यमंत्री की बात हो या हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर को सीएम बनाए जाने की बात हो.
संघ ने बिहार में बड़ी मेहनत की है बीजेपी का वहां विस्तार नहीं हो पाया इसलिए संघ के जो तपे हुए पुराने नेता है उनको ढूंढ-ढूंढकरृ निकाला गया है. जातिगत समीकरण में बीजेपी के मंत्रियों में अपर कास्ट और बैकवर्ड कास्ट का बड़ा ध्यान रखा गया है .
रामसूरत राय मंत्री बने हैं जो यादव समाज से आते हैं. जीवेश मिश्रा हैं अपर कास्ट, डॉ रामप्रीत पासवान दलित नेता हैं. अमरेंद्र प्रताप सिंह राजपूत नेता हैं. इसके अलावा मंगल पांडे पहले भी मंत्री थे इस बार फिर बन गए हैं.
संतोष सुमन, जीतन राम मांझी के बेटे HAM पार्टी से हैं और वीआईपी से मुकेश साहनी. जेडीयू के विजय चौधरी भूमिहार हैं. विजेंद्र यादव अशोक चौधरी दलित हैं. मेवालाल चौधरी कुशवाहा हैं और शीला कुमारी मंडल एक्सट्रीमली बैकवर्ड कास्ट (EBC) से हैं.
'सुशासन बाबू' पुराने तौर-तरीकों से चल पाएंगे?
अभी ये नहीं पता कि विभागों का बंटवारा कैसे होगा. असली राजनीति की ताकत उससे पता लगेगी कि क्या वहां पर सत्ता के समीकरण कैसे बनने वाले हैं. होम, फाइनेंस, पीडब्ल्यूडी और इंफॉर्मेशन यह चार महत्वपूर्ण मंत्रालय माने जाते हैं. किसी भी राज्य में हम यहां पर इंडस्ट्री और रेवेन्यू का नाम नहीं ले रहे हैं क्योंकि बिहार में ये उतना अहम नहीं है. एग्रीकल्चर, सिंचाई हम विभाग मान सकते हैं.
होम, इंफॉर्मेशन मुख्यमंत्री अपने पास रखते हैं. आखिर, जेडीयू को कौन सा विभाग बीजेपी को देना पड़ेगा उससे असली ताकत के समीकरण का पता चलेगा.
नीतीश बाबू को सुशासन बाबू कहा जाता है उनके लिए चुनौती यह है कि वो हमेशा अपने रास्ते पर चलने वाले व्यक्ति हैं. उनको प्रभावित करना मुश्किल होता है लेकिन अब सवाल ये है क्या वो पुराने तौर-तरीकों से चल पाएंगे? या शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का रास्ता चुनेंगे. वो 'सुशासन बाबू' कहे जाते हैं कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि बीजेपी उनको 'शोभा की वस्तु' बनाने की कोशिश करे और उनका नाम 'सुशोभन बाबू' पड़ जाए.
सहयोगियों के साथ BJP का 'ट्रेंड' की कहानी 'गजब' है!
एक और अहम बात है कि बीजेपी अपने सहयोगियों के साथ कैसे पेश आती है? बीजेपी का सिद्धांत बड़ा सिंपल है. सहयोगी बल का बैसाखी के तौर पर इस्तेमाल करके जूनियर पार्टनर बनकर अपना जनाधार बढ़ाओ. बाद में जब उनकी जरूरत ना रहे तो उनका सारा वोट लेकरखुद अपने पैरों पर खड़े हो जाओ.
चिराग पासवान को उतारकर बीजेपी ने ये बिल्कुल साफ दिखा दिया कि नीतीश कुमार के जनाधार को वो अपने में मिलाना चाहते हैं. लेकिन शिवसेना को याद कीजिए उनका अनुभव बीजेपी के साथ बहुत खराब है. अकाली दल तक उनको छोड़ कर चले गए तो कहीं ना कहीं इस वक्त बीजेपी का जो टॉप नेतृत्व है वो ये बात समझ रहा है.
नीतीश कुमार को ऐसे में मुख्यमंत्री बनाया गया है और ये दिखाया गया है कि आप ही सरकार बनाएंगे और मुख्यमंत्री हैं. आने वाले कुछ समय तक बीजेपी नीतीश कुमार से बिलकुल अच्छे से दोस्ती रखेगी, जबतक उनका वोट बेस किसी अच्छे मुकाम तक नहीं पहुंच जाता और यूपी का चुनाव नहीं निकल जाता.
‘परजीवी बेल’
बीजेपी के लिए बिहार के दुर्ग में घुसना बहुत बड़ी उपलब्धि है. बिहार में बीजेपी के पुराने नेताओं को हाशिए पर डाला जा रहा है, इससे ये साफ है कि नए आक्रामक नेतृत्व को आगे लाया जाएगा. हिंदुत्व उत्तर भारत में तभी कामयाब होता है जब बैकवर्ड कास्ट की पॉलिटिक्स को ठीक से संभाल कर चलें, अगर आपको बॉटनी की भाषा में समझाया जाए तो जो अमरलता की बेल होती है, परजीवी बेल, वो जिस वृक्ष पर चढ़ती है, परवान होती है फिर वो वृक्ष ही सूख जाता है. बिहार में बीजेपी के लिए एक बड़ी सफलता की बात है, आप आगे-आगे देखेंगे. दरअसल, बीजेपी अगले चुनाव का इंतजार नहीं करती, कैबिनेट फॉरमेशन ही इनकी चुनाव प्रचार की नई शुरुआत है.
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