AIMIM के अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) अपने दो दिवसीय दौरे पर बिहार (Bihar) पहुंचे हैं. इसे पार्टी द्वारा "सीमांचल अधिकार यात्रा" नाम दिया गया है. इस दौरान ओवैसी सीमांचल के कई क्षेत्रों का दौरा करेंगे. ओवैसी की बिहार में एंट्री से राजनीतिक दलों में बेचैनी बढ़ गई है. उनका कहना है कि AIMIM चीफ तुष्टिकरण करने के लिए सीमांचल आए हैं. लेकिन प्रदेश की जनता उनके मंसूबों को कामयाब नहीं होने देगी.
अब सवाल है कि आखिर ओवैसी की यात्रा से राजनीतिक दलों में इतनी बेचैनी क्यों हैं? क्या बिहार की सत्ता सीमांचल से ही तय होगी? क्योंकि बीजेपी, महागठबंधन के बाद अब AIMIM भी सीमांचल में रैली करने जा रही है. आखिर बिहार की राजनीति में सीमांचल इतना महत्वपूर्ण क्यों बन गया है? आइये आपको समझाते हैं.
बिहार में यात्राओं की बहार
सीमांचल से पहले ये समझिए कि बिहार में पिछले कुछ महीनों में कितनी यात्राएं हुईं या हो रही हैं. कांग्रेस (भारत जोड़ो यात्रा), नीतीश कुमार (समाधान यात्रा), प्रशांत किशोर (जन सुराज अभियान), उपेंद्र कुशवाह (विरासत बचाओ नमन यात्रा), जीतनराम मांझी (गरीब संपर्क यात्रा), आरसीपी सिंह, चिराग पासवान और मुकेश साहनी भी यात्रा कर रहे हैं. अब इस कड़ी में AIMIM का भी नाम शामिल हो गया है जो "सीमांचल अधिकार यात्रा" कर रही है. यहां गौर वाली बात ये है कि बीजेपी की प्रदेश में छोटी-मोटी यात्राएं लगातार चलती रहती हैं.
ओवैसी की क्या है "सीमांचल अधिकार यात्रा"?
पिछले महीने फरवरी में AIMIM का राष्ट्रीय अधिवेशन मुंबई में हुआ था. इसमें आर्थिक पैकेज के साथ सीमांचल को विशेष दर्जा देने का प्रस्ताव, सीमांचल में अवैध प्रवासियों के बसने का झूठा आरोप और RJD द्वारा AIMIM के चार विधायकों को अपने पार्टी में शामिल करने की निंदा की गई थी."
दरअसल, "सीमांचल अधिकार यात्रा" के तहत ओवैसी किशनगंज, ठाकुरगंज, बहादुरगंज, कोचाधामन और बायसी, अमौर में अलग-अलग जगहों का दौरा करेंगे. इस दौरान उनके कई जगहों पर कार्यक्रम में हैं. माना जा रहा है कि इस यात्रा के दौरान ओवैसी के निशाने पर बीजेपी के अलावा बिहार की महागठबंधन सरकार होगी.
सीमांचल में क्या छुपा है सत्ता का राज?
बिहार में लोकसभा की 40 और विधानसभा की 243 सीट है. इसमें से प्रदेश की 40 से 41 सीट ऐसी हैं जिन पर सीधा प्रभाव अल्पसंख्यकों का है यानी 20 फीसदी सीट पर अल्पसंख्यक समाज की मजबूत पकड़ है.
सीमांचल में मुस्लिमों की बड़ी आबादी है. इसकी सीमा बंगाल और असम से सटी हुई हैं. यहां की 24 विधानसभा सीटों पर मुस्लिमों का सीधा प्रभाव है और 12 सीटों पर 50 फीसदी आबादी मुसलमानों की है. यहां लोकसभा की तीन सीटें महागठबंधन (पूर्णिया, किशनंगज और कटिहार) के पास है और एक (अररिया) बीजेपी के पास है.
अब आते हैं विधानसभा सीट पर. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में सीमांचल में NDA (BJP-JDU) ने 12 सीट जीती थी, 7 महागठबंधन और 5 AIMIM ने मिली थी. हालांकि, बाद में AIMIM के 4 विधायक RJD में शामिल हो गए थे. अब BJP-JDU के अलग होने के बाद कुल 16 पर महागठबंधन का कब्जा है. कांग्रेस के 5, RJD के पास 7 और जेडीयू के पास 4 सीटें हैं.
यानी सत्ता का एक बड़ा दरवाजा सीमांचल से होकर गुजरता है और यही वजह है कि सभी की निगाह सीमांचल पर टिकी हुई है.
ओवैसी की यात्रा से क्यों बेचैनी?
दरअसल, 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में RJD सबसे बड़ा दल बनकर उभरा था लेकिन वो सत्ता पर काबिज होने से चूक गया था. पार्टी से जुड़े नेताओं की मानें तो AIMIM की वजह से उसे भारी नुकसान हुआ था. उनका कहना है कि अगर AIMIM ने अपने प्रत्याशी कई जगहों पर न उतारे होते तो मुसलमानों का वोट नहीं बंटता और इसका फायदा RJD को मिलता. हालांकि, बाद में RJD ने AIMIM के पांच में चार विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया था.
RJD के इस कदम के बाद से ओवैसी के निशाने पर लालू यादव की पार्टी है. पिछले साल बिहार AIMIM के अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने RJD पर निशान साधते हुए कहा, "जो लोग अल्पसंख्यकों की बात करते थे उन्होंने अल्पसंख्यक समाज की पार्टी को तोड़ा है. RJD को हमने धूल चटाई और वो हमारे चार विधायक ले गए हैं लेकिन अब अगले चुनाव में हम 24 विधायक लेकर आएंगे."
तेजस्वी ने AIMIM को बताया BJP की B टीम
पिछले महीने फरवरी में अमित शाह भी बिहार दौरे पर आए थे और इसी दिन महागठबंधन ने भी सीमांचल के पूर्णिया में एक जनसभा की थी. इस जनसभा में बिहार के डिप्टी सीएम और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने बिना नाम लिए AIMIM को बीजेपी की B टीम बताया था. उन्होंने कहा था कि ये लोग अभी फिर आएंगे और आपको डराएंगे लेकिन इनके बहकावे में नहीं आना है. RJD नेता ने कहा था कि वोट के लिए ये 2024 से पहले कुछ बड़ा करने वाले हैं.
बीजेपी और महागठबंधन की भी सीमांचल पर निगाह
बीजेपी बिहार में लगातार सीमांचल को केंद्र में रखे हुए है. अमित शाह से लेकर पार्टी के तमाम नेता क्षेत्र का लगातार दौरा कर रहे हैं. वो यहां पर जनसंख्या, बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा उठा रही है.
राजनीतिक जानकारों की माने तो बीजेपी सीमांचल में जनसंख्या और घुसपैठ का मुद्दा उठाकर बिहार के बाकी हिस्सों में खासकर बहुसंख्यक वोटरों को संदेश देना चाहती है. वहीं, महागठबंधन विशेषकर आरजेडी यहां पर खुद को मजबूत करना चाह रही है.
सीमांचल को बीजेपी और महागठबंधन दोनों साधना चाहते हैं. इसलिए अमित शाह ने पिछले साल पूर्णिया के रंगभूमि मैदान से लोकसभा चुनाव अभियान का आगाज किया था. वो चाहते हैं कि वैसे क्षेत्रों से चुनावी शंखनाद करें जहां बीजेपी का प्रभाव में कम है. सीमांचल वो इलाका था जिससे बंगाल और नार्थ दोनों जगहों पर असर पड़ेगा.संजय कुमार, राजनीतिक विशलेषक
वरिष्ठ पत्रकार अरूण पांडेय कहते है,"सीमांचल में MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण है और आरजेडी यहां अभी कमजोर है. इसलिए वो इस इलाके में पैठ बनाने की कोशिश कर रही है."
RJD की बढ़ी टेंशन!
राजनीतिक जानकारों की मानें तो अगर बिहार में अगर AIMIM मजबूत होती है तो इसका सीधा नुकसान आरजेडी को होगा क्योंकि पार्टी का कोर वोटर मुस्लिम-यादव है. ओवैसी की पार्टी का विधानसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद से उत्साह बढ़ गया है. AIMIM को लगता है कि सीमांचल की सियासी जमीन उसकी राजनीति के लिए उपजाऊ है और इसलिए वो बार-बार बीजेपी के साथ आरजेडी-जेडीयू पर हमलवार है.
बिहार के पूर्व कृषि मंत्री और RJD विधायक सुधाकर सिंह ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "ओवैसी की यात्रा से महागठबंधन को कोई चिंता नहीं है. उनकी पूरी राजनीति भारतीय जनता पार्टी को फायदा पहुंचाने और धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए की जाती है. वो बीजेपी के राजनीतिक कार्यकर्ता के तौर पर सीमांचल की यात्रा कर रहे हैं."
बीजेपी को सत्ता से बेदखल करना है तो ऐसी परिस्थिति में ओवैसी जैसे लोग BJP की मदद कर रहे हैं, ये चिंता का विषय सभी के लिए होना चाहिए.सुधाकर सिंह, RJD विधायक
ओवैसी अपनी यात्रा के दौरान क्या-क्या करेंगे ये देखने वाली बात है और इसके राजनीतिक मायने भी निकाले जाएंगे. लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि ओवैसी ने बिहार में एंट्री करके राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है. इसका कितना असर जमीन पर पड़ेगा ये तो भविष्य में ही पता चलेगा लेकिन इतना तय है कि इससे बिहार की सियासत जरूर बदलेगी.
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