13 जून को लोकजनशक्ति पार्टी (LJP) में फूट की खबरें सार्वजनिक होने लगी थीं. अगले 24 घंटे में पिक्चर साफ हो गई, पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान के नेतृत्व में चिराग के चाचा पशुपति समेत 5 सांसद काम करने को तैयार नहीं हैं और चाचा के इस कदम से चिराग पासवान अलग-थलग पड़ गए. अब 15 जून के एक्शन-रिएक्शन पर नजर डालिए-
पशुपति खेमे से एक्शन
- पार्टी के सांसदों ने चिराग पासवान की जगह पशुपति पारस को नेता चुन लिया.
- चिराग पासवान को एलजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से भी हटा दिया गया.
चिराग खेमे से रिएक्शन
- एलजेपी के बागी सांसदों चिराग पासवान ने किया पार्टी से निष्कासित
- पांचों सांसदों के खिलाफ एलजेपी के कुछ कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन
- चिराग ने जारी की पुरानी निजी चिट्ठी, जिसमें ये जाहिर हो रहा है कि पशुपति काफी पहले से बागी थे. हर फैसले के खिलाफ नाराजगी जाहिर कर रहे थे.
किसकी पार्टी है इसपर अब कंफ्यूजन?
कुल मिलाकर दोनों ही गुट इस तरह का व्यवहार दिखा रहे हैं कि असली 'लोकजनशक्ति पार्टी' उनकी ही है. इस बीच एक एलजेपी नेता पांच सांसदों के खिलाफ प्रदर्शन के बीच कहते नजर आए कि चिराग पासवान के खिलाफ इन सांसदों ने धोखा किया है.
दूसरी तरफ पशुपति पारस खेमे के नेता श्रवण कुमार कहते दिखे कि जो प्रदर्शन कर रहे हैं वो खराब त्तव हैं और रामविलास पासवान के निधन के बाद ये लोग पार्टी में शामिल हुए हैं. हालांकि, उन्होंने साफ किया कि वो चिराग पासवान की गिनती ऐसे तत्वों में नहीं कर रहे हैं.
तकरार का जेडीयू कनेक्शन?
पशुपति पारस हमेशा से नीतीश कुमार के लिए नरम रुख रखते आए हैं. अब ये जो तकरार सामने आई है उसके पीछे भी मामला एनडीए और जेडीयू से रिश्ता तोड़ने का ही बताया जा रहा है. विधानसभा चुनाव में चिराग, नीतीश के खिलाफ जमकर बरसते दिखे थे लेकिन चुनाव के नतीजों में जेडीयू का कुछ नुकसान हुआ लेकिन एलजेपी पूरी तरफ साफ हो गई.
चुनाव में एलजेपी एक सीट पर जीत दर्ज कर सकी थी, लेकिन एकमात्र विधायक राजकुमार सिंह भी जेडीयू का दामन थाम लिया. हाल में ही पहली टूट तब हुइ थी जब बिहार विधान परिषद में एलजेपी की एकमात्र विधान पार्षद नूतन सिंह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गई थीं.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस टूट से पहले पटना में जेडीयू सांसद ललन सिंह से पशुपति कुमार पारस की मुलाकात भी हुई थी. अब नतीजे सामने हैं.
चुनाव में 'बीजेपी से बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं' जैसी रणनीति लेकर चल रहे चिराग खुद को पीएम मोदी का हनुमान भी बता चुके हैं लेकिन पूरे प्रकरण में अभी कोई पार्टी उनके साथ खड़ी होती या पीछे से समर्थन करती नहीं दिखी है. एक आरजेडी विधायक जरूर हैं जो चिराग को पार्टी के साथ आने को कह रहे हैं लेकिन अपनी विरासत को ऐसे छोड़कर जाते चिराग नहीं दिख रहे हैं.
चिराग के पास विकल्प क्या है?
चिराग ने पांच सांसदों को पार्टी से निष्कासित करके ये तो साबित कर दिया है. पशुपति पारस को पार्टी पर अधिकार के लिए लड़ाई लड़नी होगी. ये लड़ाई चुनाव चिह्न और पार्टी के नाम के लिए चुनाव आयोग में लड़ी जा सकती है. पार्टी के संविधान का हवाला देते हुए चिराग पासवान ये साबित करने की भी कोशिश कर सकते हैं कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी का बहुतम उनके साथ है. इसके अलावा पार्टी किसकी है ये साबित करने की दोनों गुटों की लड़ाई कोर्ट तक भी खींच सकती है.
कुल मिलाकर अभी एलजेपी की लड़ाई का एक अध्याय पूरा हुआ जिसमें पार्टी के दो खेमे साफ-साफ देखे जा सकते हैं. अभी इसके कई अध्याय और देखने को मिल सकते हैं.
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