बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को समझ पाना अब लोगों के लिए एक तरह से नामुकिन सा होता जा रहा है. वर्तमान में वो आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट दलों के साथ मिलकर बिहार में महागठबंधन की सरकार चला रहे हैं. राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2024 में हराने के लिए बने विपक्षी दलों के मोर्चे के गठन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है, लेकिन इन सबके बावजूद उनकी सक्रियता और राजनीतिक चहलकदमी ने उनके बहुत पुराने मित्र, बाद में कट्टर राजनीतिक विरोधी और फिर से राजनीतिक मित्र बने लालू यादव तक को सशंकित कर दिया है.
जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति द्वारा दिए गए भोज में उनका पटना से दिल्ली आना और भोज कार्यक्रम में काफी देर तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात करने का वाक्या हो या फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय जनसंघ के सह-संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्म जयंती पर उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें नमन करने का वाक्या हो, इन दोनों ही घटनाओं ने एक बार फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या वाकई नीतीश कुमार एक बार फिर से पाला बदलने के बारे में सोच रहे हैं.
नीतीश-बीजेपी में कौन सी 'खिचड़ी' पक रही?
हालांकि, नीतीश कुमार और बीजेपी दोनों ही सार्वजनिक रूप से इससे इनकार करते हुए एक-दूसरे के खिलाफ तल्ख बयानबाजी भी कर रहे हैं. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह 'ललन' ने बीजेपी पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि नीतीश कुमार पूरी तरह से महागठबंधन के साथ हैं और सात जन्मों में भी बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे. उन्होंने तो यहां तक आरोप लगा दिया कि बीजेपी का काम भ्रम फैलाना है और वह फैला रही है.
नीतीश कुमार-बीजेपी गठबंधन में एक जमाने में बिहार में नीतीश सरकार में मंत्री रह चुके वर्तमान केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह तो नीतीश कुमार पर तल्ख टिप्पणी करते हुए यहां तक कह रहे हैं कि उन्हें बीजेपी का अहसानमंद होना चाहिए क्योंकि बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया. गिरिराज तो यहां तक कह रहे हैं कि बीजेपी में नीतीश कुमार के लिए दरवाजे और खिड़कियां पूरी तरह से बंद हो चुके हैं.
नीतीश-बीजेपी गठबंधन सरकार में लंबे समय तक उपमुख्यमंत्री रह चुके वर्तमान बीजेपी राज्य सभा सांसद सुशील मोदी भी नीतीश कुमार पर हमलावर हैं और लगातार बीजेपी के साथ उनकी वापसी की तमाम खबरों को खारिज भी कर रहे हैं. लेकिन क्या वाकई राजीव रंजन सिंह हो या गिरिराज सिंह हो या सुशील मोदी या फिर दोनों ही पार्टियों से बयानबाजी करने वाले अन्य नेता, इस स्थिति में हैं कि वह गठबंधन को लेकर कोई अंतिम फैसला कर सकें.
शीर्ष स्तर पर बीजेपी नेता जब भी बिहार जाते हैं तो अपने कैडर और कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने के लिए नीतीश कुमार पर हमला जरूर बोलते हैं, लेकिन 2013 में नरेंद्र मोदी को एनडीए गठबंधन का चेहरा बनाने का बाद जब नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़ा था, बयानबाज़ी का यह दौर तब भी खूब चला था. लेकिन इसके कुछ ही वर्षों बाद नीतीश कुमार जब 2017 में फिर से बीजेपी के साथ आएं तो पार्टी नेताओं ने हाथों-हाथ उनका स्वागत किया.
नीतीश क्यों हैं परेशान?
दरअसल, जिस विपक्षी गठबंधन को नीतीश कुमार ने बनाया उस 'इंडिया' गठबंधन में उनकी भूमिका स्पष्ट नहीं होने से नीतीश परेशान तो हैं लेकिन उनकी परेशानी का सबसे बड़ा कारण बिहार में लालू यादव द्वारा लोक सभा टिकटों के बंटवारे के फॉर्मूले को अब तक हरी झंडी नहीं देना है.
दरअसल, 2014 के लोक सभा चुनाव में नीतीश कुमार जब BJP से अलग होकर चुनाव लड़े थे तो उन्हें सिर्फ 2 सीटें ही मिल पाई थी. वर्ष 2017 में नीतीश कुमार फिर से BJP के साथ आ गए और BJP के पास 22 और अपने पास सिर्फ 2 सांसद होने के बावजूद उन्होंने 2019 के लोक सभा चुनाव के समय विधायकों की संख्या के आधार पर सीट बंटवारे का फॉर्मूला बना कर एनडीए गठबंधन में चुनाव लड़ने के लिए 17 सीटें ले ली और अपने कई सिटिंग सांसदों का टिकट काटकर BJP को भी सिर्फ 17 सीटों पर ही लड़ना पड़ा.
BJP उम्मीदवार सभी 17 सीटों पर चुनाव जीते और नीतीश कुमार के 16 सांसद चुनाव जीतकर आए.
बताया जा रहा है कि ज्यादा विधायकों की संख्या के आधार पर लालू यादव भी इस बार जेडीयू की सीटों में कटौती कर सकते हैं, हालांकि पिछले लोक सभा चुनाव में आरजेडी को एक भी सीट हासिल नहीं हो पाया था.
बिहार में महागठबंधन में शामिल सभी पार्टियों को लोक सभा चुनाव में एडजस्ट करना है इसलिए नीतीश कुमार चाहते हैं कि बिहार की 40 लोक सभा सीटों में से कौन कहां पर और कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा, यह जल्द से जल्द तय कर लिया जाए, क्योंकि उन्हें अपने सांसदों के बीच भी भगदड़ मचने का डर सता रहा है. लेकिन लगातार मुलाकातों के बावजूद लालू यादव फिलहाल अपने पत्ते खोलने के लिए तैयार नहीं हैं.
नीतीश पर कांग्रेस मौन'
इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (INDIA) के गठबंधन सहयोगियों जनता दल-यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल से आवाजें उठ रही हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के सभी गुण हैं, लेकिन कांग्रेस ने इस मुद्दे को यह कहकर तूल नहीं दिया कि शीर्ष पद के लिए फैसला 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद ही लिया जाएगा.
नीतीश कुमार को 'इंडिया' ब्लॉक के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करने की मांग एक बार फिर से तेज हो गई, जब वह गुरुवार शाम को दरगाह उर्स के मौके पर प्रार्थना करने के लिए हजरत मखदूम सैयद शाह पीर मुहम्मद मुजीबुल्लाह कादरी रहमतुल्लाह अलेह की दरगाह पर गए.
नीतीश कुमार की पार्टी JDU के अलावा, इस बार उन्हें बिहार में अपने गठबंधन सहयोगी RJD से भी समर्थन मिला. पार्टी के वरिष्ठ सदस्य और पटना के मनेर से विधायक भाई वीरेंद्र ने कहा कि वह शीर्ष पद के लिए सबसे योग्य उम्मीदवार हैं.
वीरेंद्र ने शुक्रवार (29 सितंबर) को मीडिया से बात करते हुए कहा, "मैं चाहूंगा कि नीतीश कुमार प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनें. लालू प्रसाद, तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार के नेतृत्व में देश भर के राजनीतिक दल एक मंच पर एकजुट हुए हैं."
नीतीश को समझना क्यों मुश्किल?
इन हालातों में अक्टूबर का महीना बिहार की महागठबंधन सरकार के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. दोनों ही पार्टियों के नेता कुछ भी कहें, लेकिन यह याद रखना चाहिए कि 2017 में भी जब नीतीश कुमार लालू यादव का साथ छोड़कर फिर से बीजेपी के साथ आए थे, उस समय भी नीतीश कुमार ने सीधे बीजेपी के शीर्ष नेता से बात की थी और मंत्रियों, सांसदों और विधायकों को तो भनक तक नहीं लगी थी और इस बार भी अगर लालू यादव के रवैये से परेशान होकर नीतीश पाला बदलने का फैसला करते हैं तो सीधे शीर्ष स्तर पर ही बात करेंगे.
(इनपुट-IANS)
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