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नीतीश कुमार के लिए विपक्ष जोड़ने की मुश्किल राह: JDU में दरार,जातीय गणना पर झटका

Nitish Kumar ने पिछले कुछ दिनों में राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी सहित कई नेताओं से मुलाकात की है.

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कहते हैं 'दिल्ली दरबार' का रास्ता बिहार (Bihar) और उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) से होकर गुजरता है. बिहार के मुखिया नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) भी दिल्ली पर टकटकी लगाए दिख रहे हैं. 2024 लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने की उनकी कोशिश इसी ओर इशारा कर रही है. नीतीश उत्तर से लेकर दक्षिण तक, और पूर्व से लेकर पश्चिम तक गैर-NDA दलों के नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं. वो विपक्षी पार्टियों को जोड़ने की मुहिम में जुटे हैं. लेकिन इस राह में कई रोड़े हैं.

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विपक्षी दलों को एकजुट करने से पहले नीतीश के सामने अपनी पार्टी को बचाए रखने की चुनौती है. पिछले कुछ चुनावों में JDU की हार और बिहार में नीतीश का गिरता ग्राफ चिंता का विषय है. तो उपेंद्र कुशवाहा, आरसीपी सिंह के जाने से भी पार्टी को धक्का लगा है. ऐसे में सवाल है कि नीतीश खुद कमजोर होते हुए कैसे विपक्ष को मजबूत कर पाएंगे?

विपक्षी नेताओं से मुलाकात, अपने छोड़ रहे साथ

राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, केजरीवाल, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे... विपक्ष के ये कुछ नेता हैं जिनसे नीतीश कुमार ने हाल में मुलाकत की है. तो दूसरी तरफ आरसीपी सिंह, उपेंद्र कुशवाहा, मीना सिंह हैं, जिन्होंने हाल के कुछ महीनों में जेडीयू का साथ छोड़ दिया है. ऐसे में सवाल है कि एक तरफ जहां नीतीश विपक्षी एकता की बात कर रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ बिहार में उनकी पार्टी खुद बिखरती दिख रही है.

कुशवाहा के जाने से माना जा रहा है कि जेडीयू के लव-कुश वोट बैंक में बड़ा डेंट लग सकता है. तो वहीं आरसीपी सिंह का बीजेपी में शामिल होना भी पार्टी के लिए बड़ा झटका है.

दूसरी तरफ नीतीश के लिए महागठबंधन में भी विरोध के स्वर मुखर हो रहे हैं. अभी हाल ही में जीतन राम मांझी ने बगावती तेवर दिखाए थे. पूर्व सीएम ने नीतीश कुमार पर कई आरोप लगाते हुए अपना पुराना वादा तोड़ने की चेतावनी तक दे डाली थी. क्विंट हिंदी से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय कहते हैं कि,

"बिहार में अभी 7 दलों का गठबंधन है. स्वाभाविक रूप से जब चुनाव नजदीक होता है तो पार्टियां सीट को लेकर बार्गेन करती हैं. जीतनराम मांझी भी बार्गेनिंग मूड में हैं."

वहीं वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि, "नीतीश कुमार अभी कोशिश में जुटे हैं, लेकिन सीट को लेकर बहुत उठा-पटक की स्थिति है. महागठबंधन और NDA दोनों में."

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब महागठबंधन में इस तरह की बातें उठी हैं. RJD और कांग्रेस के नेता भी अलग-अलग मुद्दों पर नीतीश को घेरते रहे हैं. राजनीतिक हलकों में ये भी चर्चा है कि इसी वजह से अभी तक बिहार में मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं हो पाया है. कर्नाटक में जीत के बाद कांग्रेस मंत्रिमंडल के साथ ही लोकसभा चुनावों में भी ज्यादा हिस्सेदारी की मांग कर सकती है.

जातीय गणना पर नीतीश सरकार को झटका

हाल के दिनों में नीतीश को एक और झटका लगा. पटना हाई कोर्ट ने जातीय गणना पर रोक लगा दी है. जिसके बाद नीतीश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. लेकिन वहां भी उसे निराशा ही हाथ लगी. सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से किया इनकार कर दिया. साथ ही सवाल किया, सर्वे के मामले में बिहार सरकार लोगों की निजता और व्यक्तियों के डेटा को कैसे प्रोटेक्ट करेगी?

बिहार में जातीय गणना को नीतीश कुमार का मास्टर स्ट्रोक बताया जा रहा था. कहा जा रहा था कि 2024 लोकसभा चुनाव से पहले ये ट्रंप कार्ड साबित हो सकता है. बिहार में गणना शुरू होने के साथ उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में भी इसकी मांग उठी थी.
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इसके अलवा प्रदेश के अपने मुद्दे जैसे जहरीली शराब से लोगों की मौत, रामनमवी पर हिंसा और बिहार की कानून-व्यवस्था को लेकर बीजेपी लगातार हमलावर है. नीतीश को इन मुद्दों पर आलोचना का सामना करना पड़ा था.

2020 में मात्र 43 सीटों पर सिमटी JDU

चलिए अब आपको बताते हैं कि पिछले विधानसभा चुनावों में जेडीयू का प्रदर्शन कैसा रहा? 2020 विधानसभा चुनाव की बात करें तो जेडीयू ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. जेडीयू ने बीजेपी से 5 सीट ज्यादा यानी 115 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. लेकिन उसे मात्र 43 सीटों पर ही जीत हासिल हुई. जेडीयू का वोट शेयर 15.39% रहा. वहीं बीजेपी ने 74 सीटों के साथ 19.46% वोट शेयर पर कब्जा जमाया. RJD 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. RJD के खाते में 23.11% वोट आए थे.

Nitish Kumar ने पिछले कुछ दिनों में राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी सहित कई नेताओं से मुलाकात की है.

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के नतीजे

(फोटो: क्विंट)

इससे पहले, 2015 विधासनभा चुनाव में जेडीयू और आरजेडी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में भी आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी और 80 सीटों के साथ 18.35% वोट शेयर पर कब्जा जमाया था. वहीं जेडीयू के खाते में 71 सीटें आई थी और उसका वोट शेयर 16.83% था. बीजेपी मात्र 53 सीटें ही जीत पाई थी, लेकिन उसका वोट शेयर सबसे ज्यादा 24.42% फीसदी था.

Nitish Kumar ने पिछले कुछ दिनों में राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी सहित कई नेताओं से मुलाकात की है.

बिहार विधानसभा चुनाव 2015 के नतीजे

(फोटो: क्विंट)

अगर 2010 विधानसभा चुनाव की बात करें तो इस बार भी बीजेपी और जेडीयू साथ थी. नतीजा यह हुआ कि नीतीश ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई. 2010 में जेडीयू ने 115 सीटों के साथ 22.58% वोट शेयर पर कब्जा जमाया था. बीजेपी के खाते में 91 सीटें आई थी और उसका वोट शेयर 16.49% था. वहीं RJD मात्र 22 सीटें ही जीत पाई थी. लेकिन उसका वोट शेयर 18.84% ही था.

Nitish Kumar ने पिछले कुछ दिनों में राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी सहित कई नेताओं से मुलाकात की है.

बिहार विधानसभा चुनाव 2010 के नतीजे

(फोटो: क्विंट)

अगर इन तीनों विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो सबसे ज्यादा नुकसान जेडीयू को 2020 के चुनाव में ही हुआ है. सीटों के साथ ही वोट शेयर भी घटा है. जिसका नतीजा यह हुआ कि जेडीयू ने 'चिराग मॉडल' का आरोप लगाते हुए बीजेपी का साथ छोड़ दिया. फिलहाल जेडीयू- आरजेडी के साथ सत्ता में है. महागठबंधन की सरकार बनने के बाद पिछले साल हुए उपचुनाव के नतीजों ने भी जेडीयू को झटका दिया था.

इन तमाम चीजों को देखने के बाद लगता है कि नीतीश के लिए अभी केंद्र की राह उतनी आसान नहीं है. अगर नीतीश विपक्षी पार्टियों को साथ लाने में कामयाब हो भी जाते हैं तो बिहार में उनकी कैसी स्थिति है, यह बहुत मायने रखेगी. राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ नीतीश को प्रदेश स्तर पर भी अपनी स्थिति मजबूत करनी होगी.

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