दलित परिवारों में जाकर बीजेपी नेताओं का 'लंच डिनर स्टंट' जारी है. यूपी के कैबिनेट मंत्री सुरेश राणा भी अलीगढ़ में दलित परिवार के घर खाना खाकर आ गए हैं. विवाद इस बात का है राजनीतिक स्टंटबाजी के लिए भी मंत्रीजी दलित के हाथ से बना खाना नहीं खा सके. खाना तो खाया लेकिन हलवाई के हाथ से बना. उन्होंने बाहर से खाना और मिनरल वाटर मंगवाया क्योंकि परिवार को मंत्री के आने की सूचना नहीं थी . इस डिनर के तमाम व्यंजन और चम्मच-कटोरी की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं. दलित परिवार ने दावा किया है कि उन्हें रात्रिभोज के कार्यक्रम की जानकारी नहीं थी. उन्हें मेहमानों की खातिरदारी के लिए रात 11 बजे नींद से जगाया गया.
ऐसे ही आरोप बीजेपी के कर्नाटक सीएम उम्मीदवार येदियुरप्पा पर भी लग चुके हैं. मान लिया कि किसी मंत्री, सांसद, विधायक ने दलित के घर खाना खा भी लिया, बदला क्या? क्या उस परिवार को कोई 'बाबू साहब या पंडित जी' अपने साथ पंगत में बिठाकर खाना खिलाने लगे? क्या उस परिवार को मंदिर, धर्मस्थानों में वो ही सम्मान दिया जाने लगा जो सवर्ण परिवारों को मिलता है? अरे कुछ नहीं तो क्या उस परिवार की माली हालत ही सुधर गई? जवाब आपको पता है.
ऐसे लोगों के लिए बीजेपी की नेता उमा भारती की ताजा लताड़ बिलकुल सटीक है. यूपी के मंत्री सुरेश राणा जैसे नेताओं को इशारों-इशारों में समझाते हुए उमा भारती ने बताया कि वो कोई भगवान राम नहीं हैं, जो दलित के घर जाने से उस परिवार को पवित्रता मिल जाएगी. ऐसी गफलत पालना भी किसी मंत्री, सांसद, विधायक के लिए गलत है.
मैं दलित के घर भोजन करने नहीं जाती हूं. हम भगवान राम नहीं हैं कि दलितों के साथ भोजन करेंगे, तो वो पवित्र हो जाएंगे. जब दलित हमारे घर आकर साथ बैठकर भोजन करेंगे, तब हम पवित्र हो पाएंगे. दलित को जब मैं अपने घर अपने हाथों से खाना परोसूंगी तब मेरा घर धन्य हो जाएगा.उमा भारती, केंद्रीय मंत्री
वो जमाना चला गया जब दलितों के घर में बैठकर भोजन करना सामाजिक समरसता का सूत्र था. अब तो राजनीति में जो दलितों और पिछड़ों के साथ भेदभाव होता है, उसमें सामाजिक समरसता लानी पड़ेगी.उमा भारती, केंद्रीय मंत्री
मंत्रीजी की क्या मजबूरी है?
बीजेपी में दलितों के घर खाना खाने जैसे राजनीतिक प्रचार का चलन रहा है. राजनाथ सिंह, अमित शाह तो कभी खुद पीएम मोदी जैसे चोटी के नेता दलितों और पिछड़ी जातियों के परिवारों के घर पहुंचकर खाना खा चुके हैं.
ये तस्वीरें जो आप ऊपर देख रहे हैं, ये साल 2015, 2016 की है. 2 साल बीत गए हैं, लेकिन ये पूछने की शायद ही किसी ने जहमत की, कि अमित शाह, मोदी या राजनाथ के इन परिवारों से जाने के बाद क्या गांव-देहात के सवर्ण दलितों के साथ बैठकर खाना खाने लगे हैं? तस्वीरें तो खींच गईं हैं ये टीवी, पेपर और वेबसाइट पर सालों रहेंगी लेकिन बदलता कुछ नहीं दिखा. बीजेपी की इस समरसता की कोशिश के बाद ही कभी दलित दूल्हे को घोड़ी पर चढ़ने के लिए पीटा गया, तो कभी मूंछ रखने या बुलेट रखने पर धमकाया गया.
फिलहाल, यूपी में दलित के घर खाना खाने वाले नेताओं में तेजी देखने को मिल रही है. राज्य के सीएम योगी आदित्यनाथ भी प्रतापगढ़ के एक दलित परिवार के घर पहुंचे थे. उस वक्त भी ऐसा कहा गया कि उनको परोसी गई रोटी बीजेपी की मंत्री स्वाति सिंह ने बनाई थी. अब एक और मंत्री सुरेश राणा मंगलवार को दलित परिवार के पास पहुंचे थे. पूरे इंतजाम के साथ पहुंचे मंत्रीजी ने खाना तो दमभर खाया लेकिन दलित के हाथ से बना नहीं, बल्कि हलवाई के द्वारा बनाया गया खाना. सफाई में सुरेश राणा कह रहे हैं, भोजन गांव के दलितों ने ही बनाया था, जो सबने खाया.
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