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'हनुमान' को 'राम' से शिकायत, चिराग-तेजस्वी बदलेंगे बिहार की सियासत

क्या बिहार के सियासी समीकरण बदलने वाले हैं?

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चिराग पासवान (Chirag Paswan) एकदम किनारे धकेल दिए गए हैं. कुछ दोस्तों का योगदान है, कुछ दुश्मनों का, कुछ अपनी गलतियां और कुछ राजनीतिक हालत. लिहाजा पिछले कुछ दिनों से चिराग पासवान ने सार्वजनिक रूप से बेचैनी दिखाई है. 26 जून को उन्होंने जो बयान दिए हैं उससे समझ में आता है कि वो खुद को बचाने की हर कोशिश कर रहे हैं. ये भी समझ में आता है कि वो सरेंडर नहीं करेंगे. आखिरी दांव भी आजमाएंगे? और इसी से सवाल उठता है कि क्या बिहार के सियासी समीकरण बदलने वाले हैं?

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राम नाम का वास्ता

चिराग पासवान ने हताशा में आखिरी नाम ले लिया है. उन्होंने सीधे पीएम मोदी से कहा है कि मैंने राम मानकर हनुमान की तरह हमेशा उनका साथ दिया, आज जब मेरा सियासी वध हो रहा है तो उम्मीद है कि वो चुप नहीं रहेंगे. हालांकि जब उन्होंने ये कहा कि उन्हें नहीं लगता कि बीजेपी के बड़े नेताओं को एलजेपी में बगावत के बारे में पता नहीं होगा तो एक तरह से उन्होंने मान ही लिया कि उन्हें बीजेपी से अब ज्यादा उम्मीद नहीं है.

आपको याद होगा इससे पहले एक इंटरव्यू में चिराग कह चुके हैं कि उन्होंने 2020 के बिहार चुनाव में जो भी किया बीजेपी को लूप में लेकर किया था. एक तरह से चिराग बीजेपी पर सीधे-सीधे 'यूज एंड थ्रो' का आरोप लगा रहे हैं.

मन में राम, जुबां पर तेजस्वी-लालू का नाम!!

चिराग जिस सांस में राम और हनुमान का वास्ता दे रहे थे, उसी सांस में याद दिला रहे थे कि लालू और रामविलास पासवान मित्र थे, और तेजस्वी यादव मेरे छोटे भाई हैं. ये भी बताया जा रहा है कि 5 जुलाई को रामविलास पासवान के बर्थडे पर आरजेडी पहले रामविलास जयंती मनाएगी फिर अपना स्थापना दिवस. इससे पहले तेजस्वी चिराग को साथ आने का ऑफर दे चुके हैं.

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सवाल ये है कि क्या सभी सांसदों से बागी होने के बाद, चिराग के पास सियासी ताकत बची है? रामविलास पासवान ने अपने जीते जीत पार्टी चिराग को सौंपी थी. फ्रंड एंड पर चिराग ही पार्टी का चेहरा रहे हैं, पशुपति पारस नहीं. चिराग 2020 का चुनाव भले ही हार गए लेकिन कहा जाता है कि 30 सीटों पर जेडीयू को हराया. उनका वोट प्रतिशत भी पहले से बढ़कर 5.66 प्रतिशत हो गया. सबसे बड़ी बात ये है कि चिराग ने सरेंडर नहीं किया है.

5 जुलाई को अपने पिता के गढ़ हाजीपुर से यात्रा शुरू कर रहे हैं. तो आज भले ही 'चिराग' बुझता लग रहा है, लेकिन वो पाला बदलते हैं, दो जवान साथ आते हैं, यादव-पासवान वोट मिलते हैं, तो तेज लौट सकता है.

हालांकि आगे चिराग के लिए समझने की बात ये होगी कि राजनीति कोई धर्मयुद्ध नहीं, जहां हनुमान और राम के किरदारों की परिपाटी निभाई जाए. सहूलियत की सियासत में 'राम', 'हनुमान' को गले लगा सकते हैं या पूरी तरह इग्नोर भी कर सकते हैं. ये बात सियासत के पुराने साथियों और नए दोस्तों दोनों पर लागू होगी.

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