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EXCLUSIVE : EC ने चेताया, इलेक्टोरल बॉन्ड से और बढ़ेगी ब्लैकमनी 

चुनावी चंदे की प्रक्रिया पारदर्शी बनाने का दावा लेकिन असलियत कुछ और 

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चुनावी चंदे के लेन-देन को पारदर्शी करने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड लाने से पहले ही सरकार ने फाइनेंस बिल, 2017 में चार कानूनों में चुपचाप संशोधन कर दिए थे. द क्विंट को पता चला कि चुनाव आयोग ने संशोधनों पर कड़ी आपत्ति जताई थी और इसे पीछे ले जाने वाले कदम करार दिया था. चुनाव आयोग के मुताबिक इससे शेल कंपनियां बनाने और इसके जरिये ब्लैक मनी को ठिकाने लगाने का रास्ता खुल जाएगा. कहने की जरूरत नहीं है सरकार ने आयोग की इन आपत्तियों पर कोई ध्यान नहीं दिया और जनता को इस बारे में कुछ पता नहीं चला.

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सरकार ने कहा था कि चुनावी चंदा देने वाली की गोपनीयता बरकरार रखने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड लाए जा रहे हैं लेकिन 12 अप्रैल को द क्विंट ने एक स्टोरी कर इस बात का खुलासा किया है बांड में अल्फान्यूमेरिक नंबर दिए गए हैं, जिनसे यह पता चल सकता है कि किसने किसे चंदा दिया. बहरहाल द क्विंट को हासिल दस्तावेजों से साफ होता है कि चुनाव आयोग ने फाइनेंस बिल, 2017 के कानूनों में संशोधनों का विरोध किया था. इस बारे में आयोग ने सरकार को तीन पेज की चिट्ठी लिखी थी और आरटीआई एक्टिविस्ट विहार दुर्वे ने अपने एक आवेदन में यह चिट्ठी हासिल की है.

सरकार ने फाइनेंस बिल में शामिल जिन कानूनों में बदलाव किए हैं वे इस तरह हैं-

जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 29 c में संशोधन

सरकार ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29 c में संशोधन कर दिया है ताकि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये दिए गए राजनीतिक चंदे का चुनाव आयोग के सामने खुलासा न करना पड़े.

असर

इससे लोगों को पता ही नहीं चल सकेगा कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये राजनीतिक पार्टियों को कितना चंदा मिला.

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कंपनी एक्ट,2013 की धारा 182 में बदलाव

इस बदलाव के जरिये कंपनी के पिछले तीन वित्त वर्ष के मुनाफे का 7.5 फीसदी राजनीतिक चंदा देने की सीमा हटा दी गई है. अब कंपनियां जितना चाहे राजनीतिक पार्टियों को चंदा दे सकती हैं.

असर

चुनाव आयोग का कहना है कि इस संशोधन ने नकली कंपनियां (शेल कंपनियां) बनाने का रास्ता साफ कर दिया है. अब सिर्फ राजनीतिक चंदा देने के लिए कंपनियां बनाई जाएंगी. मुनाफा कमाना उनका मकसद नहीं होगा.

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कंपनी एक्ट 2013 की धारा 182 (3) में बदलाव

कंपनी कानून, 2013 की धारा 182(3) में बदलाव से कंपनियों को अपनी बैलेंस शीट में न तो राजनीतिक चंदे की जानकारी देनी होगी और न ही उस पार्टी का नाम और उसे दी गई रकम का जिक्र करना होगा. सिर्फ इस मद में दी गई रकम का जिक्र करना होगा.

असर

चुनाव आयोग का कहना था है कि इससे पॉलिटिकल फंडिंग के लिए ब्लैक मनी का इस्तेमाल बढ़ जाएगा. लोग शेल कंपनियां बना कर राजनीतिक पार्टियों को चंदा देना शुरू कर देंगे.

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नकद चंदे की सीमा 2000 नहीं 20000 रुपये बरकरार

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वित्त वर्ष 2017-18 का बजट पेश करते हुए कहा था कि राजनीतिक दल 2000 रुपये तक नकद चंदा ले सकते हैं. चुनाव आयोग के मुताबिक सरकार ने जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 29 c में अब तक वो बदलाव नहीं किया जो राजनीतिक दलों को 20000 रुपये से अधिक के चंदे की आयोग के सामने घोषणा करने के लिए बाध्य करता है.

असर

2000 रुपये से 20000 रुपये के बीच का नकद चंदा योजना आयोग की स्क्रूटिनी से साफ बच जाएगा. आयोग ने कहा है सरकार इनकम टैक्स एक्ट और जनप्रतिनिधित्व कानून में तालमेल कायम करे ताकि यह गड़बड़ी रोकी जा सके.

अब तक सरकार (कानून मंत्रालय) की ओर से योजना आयोग की आशंकाओं पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है और न ही चुनाव आयोग ने इन संशोधनों को वापस लेने के लिए कोई कोशिश की है. जबकि इन संशोधनों से चुनावी चंदे की पूरी प्रक्रिया अपारदर्शी हो गई है.

हम राजनीतिक दलों की ओर से चुनावी चंदे की रिपोर्ट फाइल करने का इंतजार कर रहे हैं. 2017-18 में राजनीतिक पार्टियों को मिले चंदे की जानकारी मिलने के बाद ही हम यह फैसला करेंगे कि हमें क्या करना है.

हम राजनीतिक दलों की ओर से चुनावी चंदे की रिपोर्ट फाइल करने का इंतजार कर रहे हैं. 2017-18 में राजनीतिक पार्टियों को मिले चंदे की जानकारी मिलने के बाद ही हम यह फैसला करेंगे कि हमें क्या करना है.
सूत्र्, चुनाव आयोग 
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चुनाव आयोग के अफसर ने द क्विंट को बताया कि सरकार ने फाइनेंस बिल में शामिल कानूनों को संशोधित करने के लिए चुनाव आयोग से कोई मशविरा नहीं किया.

ये भी पढ़ें - इलेक्टोरल बॉन्ड पर वित्त मंत्रालय के जवाबों पर हमारे कुछ सवाल हैं

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