ADVERTISEMENTREMOVE AD

Haryana Rajya Sabha: 'जीत' के भी हार गए माकन,हुड्डा बेअसर- क्यों हारी कांग्रेस?

Kartikey Sharma की जीत में कुलदीप बिश्नोई का हाथ तो है लेकिन इसकी पटकथा अभी नहीं लिखी गई

Updated
छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

हरियाणा कांग्रेस (Haryana Congress) और भूपेंद्र सिंह हुड्डा (Bhupinder Singh Hooda) विधायकों को होटल में रखकर और रातभर चुनाव आयोग के चक्कर लगाकर भी अपना किला बचाने में नाकाम रहे. भूपेंद्र सिंह हुड्डा की तमाम कोशिशों पर कांग्रेस की अंतर्कलह एक बार फिर भारी पड़ी और अजय माकन (Ajay Maken) हार गए. हरियाणा कांग्रेस के लिए आंतरिक कलह कोई नई नहीं है, अतीत में कोई ना कोई कांग्रेस में बगावती तेवर दिखाता रहा है. बस चेहरे बदलते रहते हैं.

बहरहाल कांग्रेस जरूरत से ज्यादा वोट होने के बावजूद अपनी राज्यसभा सीट गंवा चुकी है. कार्तिकेय शर्मा (Kartikey Sharma) की जीत में कुलदीप बिश्नोई (Kuldeep Bishnoi) का हाथ तो है लेकिन इसकी पटकथा अभी नहीं लिखी गई. ये महीनों पहले जब कुलदीप बिश्नोई दिल्ली के चक्कर लगा रहे थे उसी वक्त अयां हो गई थी.

भूपेंद्र सिंह हुड्डा के तमाम हथकंडे फेल

हरियाणा कांग्रेस में फिलहाल भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही सर्वे-सर्वा नजर आते हैं. वो विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं, प्रदेश अध्यक्ष उन्हीं के खेमे से है. लिहाजा राज्यसभा चुनाव की जिम्मेदारी भी उन्ही के कंधों पर थी. जिसेक लिए उन्होंने फ्रंट पर आकर अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा के साथ विधायकों को पहले दिल्ली बुलाया और फिर छत्तीसगढ़ के रायपुर में एक होटल तक पहुंचा दिया. लेकिन उस दौरान खबर आई कि तीन विधायक उनके साथ होटल नहीं पहुंचे, जिनमें से एक कुलदीप बिश्नोई थे. यही वो खिड़की थी, जिसके सहारे कार्तिकेय शर्मा पहले से ही राज्यसभा में घुसने की तैयारी कर रहे थे.

कांग्रेस को जिस बात का डर था हुआ भी वही, जैसा कि कुलदीप बिश्नोई ने पहले ही कहा था, उन्होंन अपनी अंतरआत्मा की आवाज सुनी और क्रॉस वोटिंग कर दी. इससे कांग्रेस का एक वोट कैंसिल हो गया. लेकिन अभी भी कार्तिकेय जीते नहीं थे क्योंकि कांग्रेस के पास 30 विधायक बचे थे जो जीत के लिए काफी थे. लेकिन फिर पिछली बार की तरह कांग्रेस का एक वोट कैंसिल हो गया.

ना पिछली बार से सबक, ना ट्रेनिंग का असर

पिछले राज्यसभा चुनाव में भी कांग्रेस विधायकों के बड़ी संख्या में वोट कैंसिल हो गए थे. और इस बार भी एक वोट कैंसिल हुआ. हालांकि कांग्रेस ने इसके लिए बाकायदा अपने विधायकों को ट्रेनिंग दी थी, उन्हें अलग से पेन दिखाए गए थे. लेकिन सब बेकार गया और एक वोट कैंसिल हो गया. वैसे ये पता नहीं चल पाया कि वोट किसका कैंसिल हुआ.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बराबर वोट के बाद भी कैसे हारे माकन?

कांग्रेस का एक वोट कैंसिल होने के बाद अजय माकन के पास 29 वोट बचे, और कार्तिकेय शर्मा के पास जेजेपी-बीजेपी और निर्दलीयों को मिलाकर कुल 28 वोट थे. इसके बाद उन्हें क्रॉस वोटिंग करने वाले कुलदीप बिश्नोई का एक वोट मिल गया तो दोनों के पास 29-29 वोट हो गए.

अब इसे आसानी से ऐसे समझिये कि हरियाणा में कुल 90 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से एक निर्दलीय विधायक ने वोट नहीं डाला और एक कांग्रेस का वोट कैंसिल हो गया तो कुल वैध वोटों की संख्या बची 88. राज्यसभा चुनाव में एक विधायक का वोट 100 वोट के बराबर गिना जाता है, जिसका मतलब हुआ कि हरियाणा में 8800 वोट बचे, और पहले उम्मीदवार को जीत के लिए चाहिए थे कुल वोट के तिहाई यानी 2934.

यहीं से खेल कांग्रेस के लिए और बिगड़ गया क्योंकि बीजेपी उम्मीदवार कृष्ण लाल पंवार के पास 3000 वोट थे और जीत के लिए चाहिए थे 2934, लिहाजा उनके 66 वोट कार्तिकेय शर्मा को ट्रांसफर हो गए और उनके पास 2966 वोट हो गए. जबकि अजय माकन के पास बचे थे 2900 वोट. इस तरीके से कार्तिकेय शर्मा जीत गए और अजय माकन हार गए.

हालांकि प्रथम वरीयता के हिसाब से बताएं तो कृष्ण लाल पंवार को 36 वोट मिले थे, उसके बाद कार्तिकेय को उनके 6.6 वोट ट्रांसफर हो गए. लेकिन ये सब बहुत टेक्निकल हो जाएगा आप आसान भाषा में ऊपर वाली ही समझिए.

आधी रात का ड्रामा

हरियाणा में राज्यसभा चुनाव का ड्रामा रात दो बजे तक चलता रहा. एक बार तो हरियाणा कांग्रेस के ट्विटर हैंडल से अजय माकन की जीत का ट्वीट भी कर दिया गया. जिसे बाद में कांग्रेस विधायक बीबी बत्रा ने कन्फ्यूजन बताया. दोनों उम्मीदवारों की समर्थित पार्टियां घंटो तक चुनाव आयोग के चक्कर काटती रहीं. जिसकी वजह से काउंटिंग में खूब देरी हुई.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कुलदीप बिश्नोई ने क्रॉस वोटिंग क्यों की?

कांग्रेस ने कुछ दिन पहले उदयभान को हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया, इसी फैसले से कुलदीप बिश्नोई नाराज हो गए. दरअसल उनका कहना था कि जब उन्होंने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में किया था तब उनसे प्रदेश अध्यक्ष या विधानसभा में पार्टी लीडर बनाने का वादा राहुल गांधी ने किया था. लेकिन पार्टी ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को पहले ही नेता प्रतिपक्ष बना दिया था और बाद में उन्हीं के करीबी उदयभान को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया.

ये कुलदीप बिश्नोई के लिए अस्तित्व की लड़ाई बन गया क्योंकि कभी अपनी पार्टी चलाने वाले और अच्छी खासी पकड़ रखने वाले कुलदीप बिश्नोई अब अपने खेमे से अकेले विधायक हैं. उनके पिता भजनलाल हरियाणा के बड़े लीडर और मुख्यमंत्री रहे हैं. कांग्रेस के लिए लंबे समय तक प्रदेश में राजनीति करते रहे. लेकिन आलाकमान के इस फैसले ने कुलदीप बिश्नोई को एक विधायक मात्र बना दिया . जो उन्हें कतई रास नहीं आया, इसको लेकर वो राहुल गांधी से मिलने की लगातार बात करते रहे. दिल्ली के कई चक्कर लगे, लेकिन बात नहीं बनी और उन्होंने क्रॉस वोटिंग का रास्ता अपनाया. इसके अलावा बिश्नोई नहीं चाहते थे कि हुड्डा कांग्रेस में एक मात्र पावर हो जायें.

कुलदीप बिश्नोई का अब क्या होगा?

कुलदीप बिश्नोई ने जब ये फैसला लिया होगा तो अंदरखाने कुछ बात जरूर हुई होगी. तभी कार्तिकेय शर्मा की जीत के फौरन बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि, उनका बीजेप में स्वागत है. उन्होंने जो काम किया है वो बहुत बड़ा है. तो बहुत मुमकिन है कि वो बहुत जल्द दूसरे पाले में नजर आयें. हालांकि उनका ताजा ट्वीट कुछ और इशारा कर रहा है. मतलब वो खुद तो पार्टी छोड़ने वाले नहीं हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कांग्रेस में अभी भी कई खेमे हैं

कांग्रेस ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को लगभग पूरी तरह से हरियाणा की कमान तो दे दी है लेकिन गुटबाजी अभी भी हावी है. भले ही कांग्रेस में तीन और अब कुलदीप बिश्नोई को मिला लें तो चार गुट हैं लेकिन खास बात ये है कि सारे गुट हुड्डा के खिलाफ हैं. अब जरा अजय माकन की हार के बाद हरियाणा कांग्रेस के एक और कद्दावर अहीर नेता कैप्टन अजय यादव का ट्वीट देखिए. उनके बेटे अभी कांग्रेस में विधायक हैं.

हालांकि बाद में उन्होंने ट्वीट कर सफाई दी कि कुछ लोग ये समझ रहे हैं कि मैंने ये बात दीपेंद्र हुड्डा के बारे में कही हैं, लेकिन ऐसा नहीं है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अजय माकन की हार में कांग्रेस के लिए संदेश?

अजय माकन की हार से एक बार फिर ये साबित हुआ कि कांग्रेस में गुटबाजी अभी भी चरम पर है. पार्टी कई खेमों में बंटी है. ये समस्या कांग्रेस के लिए आज की नहीं है बहुत पुरानी है. याद कीजिए, दिल्ली में हुड्डा और अशोक तंवर के समर्थकों में कैसे हाथापाई हुई थी, जिसमें तंवर को भी चोट आई थी. इस गुटबाजी की ही वजह से हरियाणा में जिलों में 2014 से ही पद खाली पड़े हैं. ना जिलाध्यक्ष हैं और ना ही बाकी पद भरे हैं. क्योंकि हर गुट वहां अपने लोगों को बिठाना चाहता है, जिनमें से हर गुट पर हुड्डा गुट हावी रहता है. लेकिन जीत के लिए आपको टीम एफर्ट की जरूरत होती है. जो एक दशक से हरियाणा कांग्रेस के लिए दूर की कौड़ी रहा है.

तो कांग्रेस आलाकमान को अब इस ओर सीरियस तरीके से सोचना होगा, वर्ना हरियाणा मे उनके लिए परेशानियां कम होना मुश्किल है. अभी पार्टी में हुड्डा सबसे बड़ी ताकत दिखते हैं और बाकी खेमे अपने आप को साइडलाइन महसूस कर रहे हैं. इससे पहले कांग्रेस एक बैलेंस बनाकर रखती थी, जब प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर या कुमारी सैलजा होते थे. लेकिन अब वैसा नहीं है. तो कांग्रेस को देखना होगा कि ये रणनीति कहीं विधानसभा चुनाव में भी बैकफायर ना कर जाये.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

अजय माकन की हार में हुड्डा के लिए क्या?

अजय माकन की हार कांग्रेस से ज्यादा भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए भारी है. क्योंकि अगर राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत की तरह वो भी अपने फेवर में रिजल्ट लाने में कामयाब होते तो उनका कद और बढ़ जाता. कांग्रेस ने प्रदेश में पहले से ही उन्हें काफी पावर दे रखी है. और फिलहाल कांग्रेस के लिए भूपेंद्र सिंह हुड्डा प्रदेश में सबसे बड़े नेता हैं तो उनके सामने अपने कद को साबित करने की चुनौती थी, लेकिन वो इसमें सफल नहीं हो पाये और बड़ा डेंट उनकी राजनीतिक इमेज पर पड़ गया.

हुड्डा के खिलाफ अब बाकी गुट भी उठेंगे?

हरियाणा कांग्रेस में पहले से ही कई गुट हैं, लेकिन आलाकमान का हाथ हुड्डा पर होने के नाते वो खुलकर सामने नहीं आते थे. लेकिन अब इसके बाद वो कम से कम पार्टी मीटिंगों में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खिलाफ आवाज जोर पकड़ेगी. किरण चौधरी, कुमारी सैलजा और कैप्टन अजय यादव जैसे नेता पहले ही हुड्डा के खिलाफ मोर्चा खोले रहते थे अब कुलदीप बिश्नोई ने नई परेशानी खड़ी कर दी है.

अब आगे क्या?

कांग्रेस के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती विधानसभा चुनाव से पहले गुटबाजी पर अंकुश लगाना है जो आसान नजर नहीं आता. कांग्रेस ने निकाय चुनाव पहले ही सिंबल पर ना लड़ने का फैसला किया है. जिसका मतलब है कि अब उनकी नजर सीधे विधानसभा चुनाव पर है. क्योंकि 2019 के विधानसभा चुनाव में चंद महीने पहले कांग्रेस ने हुड्डा को कमान दी थी तो उन्होंन पार्टी को लड़ाई में लाकर खड़ा कर दिया था. इसी उम्मीद में कांग्रेस इस बार पहले से ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा को फुल कमान देना चाहती है. जिसका पहला रिजल्ट राज्यसभा चुनाव की हार के रूप में कांग्रेस को मिला है.

हुड्डा को किन नेताओं को मैनेज करना होगा?

विधानसभा चुनाव से पहले अगर कांग्रेस को हरियाणा में एक पेज पर लाना है तो कई नेताओं को मैनेज करना होगा. हो सकता है कुलदीप बिशनोई को अब पार्टी निकाल दे लेकिन फिर भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सामने कई नेता खड़े होंगे.

किरण चौधरी

किरण चौधरी खुलकर कम ही बोलती हैं लेकिन जाट समुदाय से आती हैं और बंसीलाल की बहू हैं. तो अपने कद को बढ़ाना चाहती हैं, जिसके बीच में भूपेंद्र सिंह हुड्ड खड़े हैं क्येंकि फिलहाल हरियाणा कांग्रेस में सबसे बड़े जाट लीडर के तौर पर उनको जगह दी जाती है. इसलिए भूपेंद्र सिंह हुड्डा को किरण चौधरी को मैनेज करना होगा.

कैप्टन अजय यादव

कैप्टन अजय यादव हरियाणा में एक वक्त अहीर बेल्ट के बड़े नाता माने जाते थे लेकिन जब तक पार्टी में राव इंद्रजीत सिंह रहे तब तक उनको वो कद नहीं मिला, जिसे वो चाहते थे. जब राव इंद्रजीत गए तो पार्टी के बुरे दिन आ गए और अब अच्छे दिन अगर आते हैं तो सब हुड्डा के हाथ में है. इसलिए वो भी कई बार अलग लीक पकड़ते हैं.

कुमारी सैलजा

कुमारी सैलजा दलित समुदाय से आती हैं और अशोक तंवर के जाने के बाद वो पार्टी में इकलौता दलित चेहरा हैं. जिन्हें हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया है. हालांकि वो कांग्रेस के लिए वफादार हैं और वो दिखता भी है लेकिन भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी को उन्हें हटाकर प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है. ये बात उन्हें अच्छी तो नहीं लगी होगी.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×