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Himachal Assembly Election: विपक्ष के पास मुद्दे हजार, बीजेपी के लिए मोदी तैयार

किसानों की मांगे, पुरानी पेंशन की डिमांड और बेरोजगारी विपक्ष के लिए हथियार साबित हो सकते हैं.

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हिमाचल प्रदेश में चुनावी बिगुल (Himachal Pradesh Assembly Election 2022) के बीच आज वोट डाले जा रहे हैं. इस पहाड़ी प्रदेश की सर्द वादियों में सियासत गर्मा गई है. हिमाचल के चुनावी आंकड़े बताते हैं कि 32 साल से यहां सत्ता हर पांच साल में बदल जाती है. इसी क्रम को बीजेपी (BJP) तोड़ने का प्रयास कर रही है और कांग्रेस चाहेगी कि ये बना रहे. ताकि उनकी सत्ता में वापसी हो सके.

लेकिन इस बार इन दोनों पार्टियों के लिए एक गुगली भी है. जिसका नाम है आम आदमी पार्टी, अरविंद केजरीवाल की पार्टी भले ही उत्तराखंड में उतना अच्छा प्रदर्शन ना कर पाई हो लेकिन पंजाब चुनाव की सफलता से उनके हौसले बुलंद हैं. वैसे भी हिमाचल पंजाब के काफी करीब है.
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हिमाचल में विपक्ष के लिए क्या मुद्दे?

पुरानी पेंशन स्कीम

हिमाचल में इस वक्त पुरानी पेंशन स्कीम काफी ज्वलंत मुद्दा है. कांग्रेस ने भी इस मुद्दे को बड़ी जोरशोर से उठाया है. सरकारी कर्मचारी लंबे समय से पुरानी पेंशन स्कीम की मांग कर रहे हैं. फिलहाल राज्य में 2 लाख 40 हजार से ज्यादा सरकारी कर्मचारी हैं और करीब 1 लाख 90 हजार पेंशनधारक, इस लिहाज से छोटे राज्य में ये एक बड़ी संख्या है. इसीलिए कांग्रेस ने पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने का वादा किया है. वो राजस्थान और छत्तीसगढ़ का हवाला भी दे रही है. जहां उनकी सरकार ने पुरानी पेंशन लागू की है.

किसान और बागवान

हिमाचल प्रदेश में करीब 10 लाख किसान और बागवान परिवार हैं. विपक्षी दल सरकार पर किसानों की अनदेखी का आरोप लगा रहे हैं. यहां के किसान मुख्य रूप से सब्जी, शहद और दूध जैसे उत्पादों पर एमएसपी की मांग कर रहे हैं. जबकि बागवान बाहर से आने वाले सेब पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने की मांग लंबे वक्त से कर रहे हैं. लेकिन अभी तक सरकार ने इनकी मांग पर ध्यान नहीं दिया है. ये 10 लाख परिवार निश्चित तौर पर एक बड़ा वोट बैंक हैं. इसलिए इनका मुद्दा भी बड़ा चुनावी मुद्दा कहलाएगा.

फ्रीबीज भी बनेगी मुद्दा?

आम आदमी पार्टी भी इस बार हिमाचल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के लए गुगली की तरह उतरी है. शायद इसीलिए बीजेपी ने वादा किया है कि, महिलाओं को बस के किराये में 50 फीसदी की छूट मिलेगी. इसके अलावा 125 यूनिट तक बिजली बिल माफ करने का वादा जयराम सरकार कर रही है. साथ ही ग्रामीण इलाकों में पानी क बिला माफ करने का वादा है. उधर कांग्रेस ने कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने के साथ-साथ 18-60 साल की महिलाओं को 1500 रुपये महीना देने का वादा किया है.

ध्यान देने वाली बात ये है कि, सूबे के ऊपर 67 हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज है और दोनों पार्टियां एक दूसरे को कर्ज बढ़ाने के लिए जिम्मेदार बता रहे हैं.

ये मुद्दे भी चुनाव में गूंजेंगे

  • पूरे देश की तरह हिमाचल में भी बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है.

  • हिमाचल से बड़ी संख्या में युवा फौज में भर्ती होते हैं, ऐसे में अग्निवीर भी बड़ा मुद्दा है.

  • ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट का वादा बीजेपी ने पिछले इलेक्शन में किया था. लेकिन अभी तक वो बना नहीं है. ऐलान हो गया है.

  • फोरलेन से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करीब 20 लाख लोग मुआवजा चार गुना मांग रहे.

बीजेपी के पास गिनाने के लिए कितने काम?

चुनावों की घोषणा के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि, हमने केंद्र सरकार के साथ मिलकर प्रदेश में विकास के कई बड़े काम किये हैं. हमने एम्स बनाया है, अटल टनल और वंदे भारत एक्सप्रेस की सौगात दी है. जनता जानती है कि हमने कितना विकास किया है. पीएम मोदी, जेपी नड्डा और अमित शाह समेत तमाम बड़े नेता प्रचार करने आएंगे. और हम चुनाव जीतेंगे.

बीजेपी की ताकत और कमजोरी?

ताकत

पीएम मोदी का नाम बीजेपी के लिए सबसे बड़ी ताकत है. बाकी सारे विकास दूसरे नंबर आते हैं. इसके अलावा जेपी नड्डा भी हिमाचल के ही रहने वाले हैं. साथ ही अनुराग ठाकुर एक लोकप्रिय नेता बनकर बीजेपी के लिए उभरे हैं.

कमजोरी

सीएम के तौर पर जयराम ठाकुर को वैसी लोकप्रियता नहीं मिली है जिसकी उम्मीद वो कर रहे थे. प्रदेश में युवा तबका बेरोजगारी को लेकर परेशान है. हिमाचल में 1 लाख 86 हजार 681 वोटर्स पहली बार वोट डालेंगे. जो चुनाव में बड़ा रोल अदा कर सकते हैं. इसके अलावा सेब किसान और बागवान भी सरकार के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं. पुरानी पेंशन को लेकर हो रहे प्रदर्शन और कच्चे कर्मचारियों की नाराजगी सरकार के लिए लोहे के चने साबित हो सकती है.

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कांग्रेस के लिए कमजोरी और ताकत?

ताकत

हिमाचल में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी ताकत यही है कि वहां लंबे समय से हर बार सरकार बदलती आ रही है. इसके अलावा हाल ही में आलाकमान ने वीरभद्र सिंह की पत्नी को प्रतिभा सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. जिससे वीरभद्र की लोकप्रियता का फायदा कांग्रेस उठा सकती है. इसके अलावा प्रियंका गांधी भी सूबे में काफी सक्रिय हैं.

कमजोरी

वीरभद्र सिंह की मृत्यु के बाद कांग्रेस के सामने एकदम से लीडर का संकट खड़ा हुआ है. क्योंकि वीरभद्र सिंह के रहते किसी और नेता का कद बहुत ज्यादा बढ़ नहीं पाया. हालांकि नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री और सुखविंदर सुक्खु जैसे नेता उनके पास हैं लेकिन वीरभद्र के कद के आसपास भी कोई नेता नजर नहीं आता. इसके अलावा कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान यहां भी बड़ी समस्या है. पिछले साल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखी एक चिट्ठी वायरल हुई थी. जिस पर कई जिला सचिवों और अध्यक्षों के साइन थे. उसमें कई बड़े नेताओं पर सवाल उठाये गए थे.

आम आदमी पार्टी के लिए कमजोरी और ताकत?

ताकत

हिमाचल प्रदेश में आम आदमी पार्टी के लिए इकलौती ताकत अरविंद केजरीवाल ही नजर आते हैं. इसके अलावा अगर उनके पास कुछ है तो वो दिल्ली का स्कूल और अस्पताल मॉडल, पंजाब की जीत.

कमजोर

आम आदमी पार्टी के पास अभी प्रदेश में जमीनी स्तर पर कुछ खास कार्यकर्ता नहीं हैं. पार्टी अरविंद केजरीवाल के नाम पर ही निर्भर है. ऐसा कोई बड़ा नाम भी शामिल नहीं हुआ है, जिसे जनता के सामने रखकर वो चुनाव में उतर सके.

क्या तीसरी फोर्स बन पाएगी AAP?

एक बड़ा सवाल ये भी है कि क्या आम आदमी पार्टी को हिमाचल में भी वैसी कामयाबी मिल सकती है, जैसी पंजाब में मिली थी. जवाब है- इसकी तो उम्मीद नहीं की जा सकती लेकिन पंजाब से जुड़े कुछ क्षेत्रों में जरूर आम आदमी पार्टी प्रभाव डाल सकती है. और आगे के लिए तैयारी कर सकती है.

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क्या जारी रहेगा, बारी-बारी का ट्रेंड?

सभी फैक्टरों को ध्यान में रखें तो एक बार फिर प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है. लेकिन मोदी ब्रांड से लड़ने के लिए कांग्रेस कितनी तैयार है ये बड़ा सवाल है. क्योंकि उत्तराखंड में भी इसी तरह अदला-बदली का ट्रेंड कांग्रेस और बीजेपी के बीच चल रहा था लेकिन बीजेपी ने वहां सरकार में वापसी की.

हिमाचल का चुनावी इतिहास

हिमाचल प्रदेश के गठन के बाद पहली बार 1962 में विधानसभा चुनाव हुए थे. जिसके बाद 10 साल तक लगातार कांग्रेस की सरकार रही और 1977 में पहली बार जनता पार्टी ने सरकार बनाई. जिसके बाद शांता कुमार हिमाचल के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद 1982 में फिर से कांग्रेस ने जीत दर्ज की और ठाकुर राम लाल को सीएम बनाया गया. लेकिन कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उन्हें हटाकर वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री बना दिया गया.

फिर 1985 में चुनाव हुए और कांग्रेस ने फिर से जीत दर्ज की. और वीरभद्र सिंह 1990 तक सत्ता में रहे. उसके बाद बीजेपी सत्ता में आई और तब से लेकर अब तक प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी बारी-बारी सत्ता में आती रही हैं.

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