गुजरात (Gujrat) की एक मजिस्ट्रेट कोर्ट ने गुरुवार, 5 मई को निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी (Jignesh Mevani) और उनके 9 साथियों को बिना अनुमति 'आजादी मार्च' आयोजित करने के पांच साल पुराने केस में दोषी ठहराया और तीन महीने जेल की सजा सुनाई है. जिग्नेश मेवाणी ने कोर्ट द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मुझे राजनीतिक रूप से खत्म करने के लिए जिस प्रकार से बीजेपी लगी हुई है वो पूरे गुजरात और देश की जनता देख रही है.
उत्तर गुजरात के मेहसाणा से बनासकांठा जिले तक दलितों की आवंटित की गई जमीनों के ऊपर जो एंटी-सोशल एलीमेंट्स का घेरकर कब्जा था, उसके वापस दिलवाने के लिए हम लोगों ने संगठन के तौर पर एक आजादी मार्च का आयोजन किया था.
मैं न्याय का सम्मान करता हूं- जिग्नेश मेवाणी
मैं न्यायतंत्र का सम्मान करता हूं लेकिन ये जरूर कहना चाहूंगा कि जिस तरह से असम में मेरे ऊपर फर्जी मुकदमों पर गिरफ्तारी हुई और इस केस में भी यही हाल है. सारे केस में जिस प्रकार से गुजरात की पुलिस, प्रशासन और बीजेपी सरकार मेरे पीछे पड़ गई है जैसे मैं कोई बहुत बड़ा गैंगस्टर हूं.जिग्नेश मेवाणी
‘बीजेपी सरकार को जो करना है कर ले, हम लड़ेंगे’
जिग्नेश मेवाणी ने कहा कि यहां बड़े-बड़े घोटाले होते हैं, पेपर लीक होते हैं, ड्रग्स माफिया हैं, रिअल स्टेट के माफिया हैं, माइनिंग माफिया हैं, खून और बलात्कार के आरोपियों के खिलाफ बीजेपी सरकार कुछ नहीं करती लेकिन रैली का परमीशन न लेने पर जिग्नेश मेवाणी को किस प्रकार से सजा करवाई जाए...ये जो सरकार की मंशा दिखाई देती है, उसे पूरा गुजरात और देश समझ रहा है.
उन्होंने कहा कि हम लोगों ने भी तय कर लिया है कि हर जोर-जुल्म के टक्कर पे संघर्ष हमारा नारा है, बीजेपी की सरकार को जो करना है कर ले...हम लोग कल भी लड़ते थे, आज भी लड़ रहे हैं और परसों भी लड़ेंगे.
बता दें कि इस मामले में एडीशनल चीफ जुडिशियल मजिस्ट्रेट जे ए परमार ने भारतीय दंड संहिता की धारा 143 के तहत जिग्नेश मेवाणी और एनसीपी पदाधिकारी रेशमा पटेल व जिग्नेश मेवाणी के राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच के कुछ सदस्यों सहित नौ अन्य को गैरकानूनी सभा का हिस्सा होने का दोषी ठहराया है.
क्या है पूरा मामला?
12 जुलाई 2017 को ऊना में कुछ दलितों की पिटाई के एक साल के विरोध में जिग्नेश मेवाणी और उनके समर्थकों ने बनासकांठा जिले के धनेरा तक आजादी कूच का नेतृत्व किया था. मेवाणी के सहयोगियों में से एक कौशिक परमार ने मेहसाणा के कार्यकारी मजिस्ट्रेट से राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच के बैनर तले रैली करने की अनुमति मांगी थी, इसके लिए शुरू में अनुमति दे दी गई थी. हालांकि, प्रशासन ने इसे बाद में रद्द कर दिया, लेकिन आयोजकों ने फिर भी रैली निकाली थी.
इसके बाद मेहसाणा पुलिस ने उनके खिलाफ IPC की धारा 143 गैरकानूनी तरीके से सभा करने का मामला दर्ज किया था, क्योंकि रैली निकालने की इजाजत नहीं ली गई थी. पुलिस ने इस मामले में 12 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी.
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