हरियाणा में जींद विधानसभा सीट पर होने वाला उपचुनाव कांग्रेस की ओर से रणदीप सुरजेवाला को उम्मीद बनाए जाने के बाद दिलचस्प हो गया है. सुरजेवाला कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं. इस सीट पर अजय चौटाला की पार्टी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने दिग्विजय चौटाला को उतारा है.
इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) के विधायक डॉ. हरि चंद मिड्ढा के निधन के बाद जींद सीट पर उपचुनाव हो रहा है. मिड्ढा ने इनेलो के टिकट पर 2014 का चुनाव जीता था. बीजेपी ने हरिचंद मिड्ढा के बेटे कृष्ण मिड्ढा को अपना उम्मीदवार बनाया है. अपना खुद का उम्मीदवार नहीं होने के चलते, INLD ने निर्दलीय उम्मीद उम्मेद सिंह रेडू को अपने चुनाव चिह्न पर लड़ाने का फैसला किया है.
जींद विधानसभा सीट पर 28 जनवरी को वोटिंग होनी है और 31 जनवरी को नतीजे आएंगे.
जींद सीट से सुरजेवाला को मैदान में उतारने का कांग्रेस का फैसला चौंकाने वाला है. पार्टी के कम्यूनिकेशन इंचार्ज होने के नाते पहले ही उन पर बड़ी जिम्मेदारी है इसके अलावा, वह पहले से ही हरियाणा विधानसभा में कैथल सीट से मौजूदा विधायक हैं. ऐसे में सवाल ये है कि आखिर कांग्रेस ने सुरजेवाला को उपचुनाव में क्यों उतारा, जबकि हरियाणा विधानसभा चुनाव होने में अब महज नौ महीने बाकी हैं?
इसका जवाब कांग्रेस में नहीं बल्कि INLD में है.
जींद सीट से रणदीप को उतारने के पीछे ये है कांग्रेस की रणनीति
जेल में बंद पिता ओम प्रकाश चौटाला ने अपने बेटे अजय चौटाला को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में INLD से निष्कासित कर दिया. इसके बाद अजय चौटाला के बेटों दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला ने जननायक जनता पार्टी का गठन किया.
हरियाणा में ग्रामीण इलाकों का जाट वोटर मुख्य रपूप से इनेलो के साथ है. लेकिन पार्टी में हुई टूट के बाद कांग्रेस जाट वोट को वापस अपने पाले में लाने का मौका ढूंढ रही है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव और उसी साल के आखिर में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में INLD को सबसे ज्यादा जाटों का वोट मिला था. आंकड़ों के मुताबिक, साल 2014 के विधानसभा चुनाव में INLD को 42 फीसदी, कांग्रेस को 24 फीसदी और बीजेपी को 17 फीसदी जाटों का वोट मिला था.
हरियाणा की लगभग 25-30 फीसदी आबादी जाटों की है. लेकिन हरियाणा के गठन के बाद से ही जाट राज्य की राजनीति पर हावी रहे हैं. हरियाणा में भजनलाल को छोड़कर और अब संभवतः मनोहर लाल खट्टर के अलावा कोई भी गैर-जाट मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा करने में कामयाब नहीं रहा है.
जींद में पुरानी है जाटों की ‘जंग’
हालांकि, हरियाणा के लगभग सभी हिस्सों में जाट वोट बैंक है. लेकिन कुछ जाट परिवारों का राजनीति में अच्छा खासा रसूख है. कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा रोहतक से लेकर सोनीपत तक अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं, तो वहीं भिवानी में बंसीलाल के परिवार का वर्चस्व रहा है. जींद, कैथल और सिरसा में चौटाला और सुरजेवाला परिवारों के बीच वर्चस्व की लड़ाई रही है. जींद सीट का उपचुनाव रणदीप सिंह सुरजेवाला और दिग्विजय चौटाला के बीच वर्चस्व की इसी लड़ाई की नई कड़ी है.
चौटाला और सुरजेवाला की सियासी जंग का इतिहास
वर्चस्व की इस लड़ाई की शुरुआत होती है 26 साल पहले जींद जिले के निर्वाचन क्षेत्र - नरवाना सीट पर हुए उपचुनाव से. इस सीट पर साल 1977 से लेकर 2005 के बीच आठ चुनाव हुए. इनमें से सात चुनावों में उसने सुरजेवाला या चौटाला परिवारों में से किसी को चुना. साल 1991 तक, सुरजेवाला के पिता शमशेर सिंह सुरजेवाला ने नरवाना से तीन बार जीत हासिल की. हालांकि, साल 1987 में केवल एक बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा. साल 1993 में शमशेर सिंह सुरजेवाला के सांसद चुने जाने के बाद यह सीट खाली हो गई.
इसके बाद इस सीट पर उपचुनाव हुए और रणदीप सिंह सुरजेवाला अपने पिता की सीट से चुनाव मैदान में उतरे. लेकिन इस बार ये सीट चौटाला परिवार के पास आ गई. उपचुनाव में रणदीप सुरजेवाला को ओम प्रकाश चौटाला के हाथों हार मिली. तत्कालीन मुख्यमंत्री भजनलाल और चौटाला ने इसे सुरजेवाला परिवार की हार करार दिया.
इस चुनाव के वक्त ओम प्रकाश चौटाला को राजनीति में सक्रिय रहते हुए 9 साल बीत चुके थे, वहीं रणदीप सुरजेवाला महज 26 साल के थे और ये उनका पहला चुनाव था.
साल 1996 में, रणदीप सुरजेवाला ने एक बार फिर नरवाना सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इस चुनाव में सुरजेवाला ने चौटाला को तीसरे नंबर पर धकेल दिया था. लेकिन चौटाला ने इस हार का बदला साल 2000 में हुए चुनावों में सुरजेवाला को हराकर लिया. इस चुनाव में चौटाला की जीत और सुरजेवाला की हार के बीच का फासला 2000 वोटों का था.
वर्चस्व की इस लड़ाई का अगला पड़ाव था साल 2005 का विधानसभा चुनाव. साल 2005 के विधान चुनाव में रणदीप सुरजेवाला ने चौटाला को 1859 वोटों से करीबी शिकस्त दी. हालांकि, इसके बाद दोनों परिवारों के बीच वर्चस्व की लड़ाई का स्वरूप बदल गया. वो नरवाना सीट जो इन दो परिवारों के लिए चुनावी युद्ध का मैदान बन चुकी थी, उसे आरक्षित सीट बना दिया गया.
नरवाना सीट को आरक्षित कर दिए जाने के बाद ओमप्रकाश चौटाला सिरसा जिले की ऐलनाबाद सीट पर चले गए, जबकि सुरजेवाला कैथल सीट पर चले गए. कैथल सीट पर साल 2005 के विधानसभा चुनाव में रणदीप सिंह सुरजेवाला के पिता शमशेर सिंह सुरजेवाला ने जीत दर्ज कराई थी. इस बीच, शमशेर सिंह सुरजेवाला ने ओम प्रकाश चौटाला और उनके बेटों अजय और अभय चौटाला पर आय से अधिक संपत्ति का आरोप लगाते हुए केस दर्ज करा दिया. इस केस में सीबीआई ने साल 2010 में चार्जशीट दायर की थी.
शिक्षक भर्ती से जुड़े घोटाले में दोषी पाए जाने के बाद ओम प्रकाश चौटाला और अजय चौटाला को 10 साल कैद की सजा सुनाई गई है.
कांग्रेस को लगता है कि ओमप्रकाश चौटाला के जेल में रहते और चौटाला परिवार में हुई आपसी लड़ाई के बीच ये रणनीति चौटाला परिवार को जींद में राजनीतिक रूप से खत्म कर सकती है और कांग्रेस को जाट समुदाय के सामने विकल्प के तौर पर पेश कर सकती है. ऐसे में कांग्रेस के पास चौटाला को शिकस्त देने वाले रणदीप सिंह सुरजेवाला से बेहतर उम्मीदवार कौन हो सकता था?
जींदः वो सीट जहां 40 सालों से नहीं चुना गया कोई जाट विधायक
जींद जिले की नरवाना सीट भले ही सुरजेवाला और चौटाला के बीच के वर्चस्व के टकराव की गवाह हो, लेकिन जींद विधानसभा सीट ऐसी है, जहां 40 सालों से गैर-जाट विधायक चुना जा रहा है. इस सीट पर कांग्रेस ने साल 1991, 2000 और 2005 में मांगे राम गुप्ता को चुनाव लड़ाया था और जीत हासिल की थी. वहीं, साल 2009 और 2014 के विधानसभा चुनाव में INLD ने खत्री समुदाय से ताल्लुक रखने वाले हरि चंद मिड्ढा को उतारा और जीत हासिल की.
दरअसल, जींद विधानसभा सीट के ज्यादातर वोटर अब शहरी हैं. बीजेपी भी खत्री समुदाय से ताल्लुक रखने वाले हरियाणा के मौजूदा सीएम मनोहर लाल खट्टर के सहारे इस बार इस सीट पर दांव खेल रही है.
साल 2014 से बीजेपी हरियाणा में उन गैर-जाट वोटरों को एकजुट कर सरकार में आई है, जो राज्य की राजनीति पर जाट समुदाय के प्रभुत्व से परेशान थे. जींद में जाटों की तादाद करीब-करीब 30 फीसदी है. बीजेपी को गैर-जाट वोटों के एकजुट होने और जाट वोटों के कांग्रेस, जेजेपी और INLD के बीच बंटने की उम्मीद है. हरि चंद मिड्ढा के बेटे कृष्ण मिड्ढा बीजेपी के खत्री, ब्राह्मण और बनिया वोटरों को एकजुट करने के प्लान के हिसाब से पूरी तरह से फिट बैठते हैं.
इस सीट पर दलित वोटर निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं. जींद निर्वाचन क्षेत्र में दलित वोटरों की तादाद करीब-करीब 20 फीसदी है. बीएसपी उपचुनाव नहीं लड़ती है, ऐसे में कांग्रेस दलित वोटों का एक बड़ा हिस्सा हासिल करने में कामयाब हो सकती है.
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