सुप्रीम कोर्ट ने 17 जुलाई को कहा कि वो कर्नाटक के स्पीकर को किसी तय समयसीमा में कांग्रेस-JDS के (बागी) विधायकों के इस्तीफे पर फैसला करने का निर्देश नहीं दे सकता. हालांकि कोर्ट के फैसले से बागी विधायकों को एक राहत भी मिली है. दरअसल कोर्ट ने कहा कि (इस्तीफा देने वाले) विधायकों को कर्नाटक विधानसभा में 18 जुलाई के फ्लोर टेस्ट में हिस्सा लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.
बता दें कि कोर्ट का यह फैसला बागी विधायकों की उस याचिका पर आया, जिसमें उन्होंने कोर्ट से मांग की थी कि वो कर्नाटक विधानसभा स्पीकर को उनके इस्तीफे स्वीकार करने का निर्देश दे.
फ्लोर टेस्ट के दौरान क्या हो सकती है स्थिति?
कर्नाटक में पिछले दिनों सत्तारूढ़ कांग्रेस-जेडीएस के 16 विधायकों ने इस्तीफे दिए थे. इस बीच संकट से घिरी गठबंधन सरकार को थोड़ी राहत देते हुए कांग्रेस विधायक रामलिंगा रेड्डी ने 17 जुलाई को कहा कि उन्होंने विधानसभा से अपना इस्तीफा वापस लेने का फैसला किया है और वह मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी द्वारा रखे जाने वाले विश्वासमत के समर्थन में मतदान करेंगे.
225 सदस्यीय कर्नाटक विधानसभा में फिलहाल कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के पास (15 बागी विधायकों को मिलाकर) 117 विधायक हैं. इनमें कांग्रेस के 78, जेडीएस के 37, बीएसपी का एक और एक मनोनीत विधायक शामिल है. इनसे अलग विधानसभा अध्यक्ष का भी एक वोट है.
बता दें कि 15 बागी विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. उनकी याचिका पर कोर्ट ने कहा है कि उन्हें 18 जुलाई के फ्लोर टेस्ट के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. ऐसे में फ्लोर टेस्ट के दौरान ये बागी विधायक अपनी पार्टियों की व्हिप के तहत कार्रवाई के दायरे से बाहर होंगे.
अगर जेडीएस-कांग्रेस के 15 बागी विधायक फ्लोर टेस्ट से दूर रहते हैं, तो (स्पीकर को हटाकर) सदन का संख्याबल 209 हो जाएगा और बहुमत का आंकड़ा 105 हो जाएगा. वहीं 15 विधायकों की कमी से कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के पास 102 विधायकों का समर्थन ही बचेगा.
ऐसे में बीजेपी के लिए सरकार बनाने का रास्ता साफ हो सकता है. दरअसल बीजेपी के पास फिलहाल 105 खुद के विधायक हैं, जबकि उसे 2 निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल है.
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