कर्नाटक चुनाव नतीजों ने दिखा दिया कि अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी चुनावी शतरंज की बिसात पर अपनी सारी चालें बहुत सोच समझकर चलती है ताकि जीत कभी भी हाथ से फिसलने न पाए. अमित शाह कर्नाटक में बाकायदा डेरा डालकर रहे. नरेंद्र मोदी ने करीब 20 रैलियां कीं. आइए समझते हैं कि कर्नाटक में बीजेपी की बड़ी जीत के पीछे रहीं कौन सी 5 वजह:
1. रणनीतिकार अमित शाह
वो बीजेपी के अध्यक्ष हैं. पार्टी के रणनीतिकार हैं. चुनावी रणनीतियां कागज पर बनाने और उन्हें जमीन पर उतारने में उनका कोई सानी फिलहाल दिखाई नहीं देता. वो उन चुनावी घाघों में से जो कुछ भी भगवान भरोसे नहीं छोड़ते. इस बार कर्नाटक में भी अमित शाह ने सब कुछ झोंक दिया. ‘पोलिंग बूथ जीतो और चुनावी जीत तय’ का मंत्र हो या फिर पन्ना प्रमुखों (यानी, हर कार्यकर्ता के जिम्मे विधानसभा क्षेत्र विशेष की मतदाता सूची का एक-एक पन्ना) की नियुक्ति. अमित शाह ने बाकायदा बेंगलुरु के फेयरफील्ड लेआउट इलाके में एक बंगला किराए पर लिया.
ये बंगला, विधानसभा से महज 2 किलोमीटर की दूरी पर था. और अब बीजेपी की जीत के साथ ये दूरी सिमट चुकी है! करीब 40-45 दिन तक शाह ने कर्नाटक में डेरा जमाए रखा. उन्हें अपने खराब अनुवादकों से भी जूझना पड़ा लेकिन वो अपनी बात शायद जनता तक पहुंचाने में कामयाब रहे.
2. ब्रांड नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब ये रवायत बना ली है. वो चुनावी अभियानों के अंतिम दौर में उतरते हैं और सब उलट-पुलट कर रख देते हैं. कर्नाटक चुनावी कैंपेन के वो बिला शक सबसे बड़े कैंपेनर रहे. बेंगलुरु से मैसूर, मंगलौर और ओल्ड मैसूर तक पीएम मोदी के भाषणों की धमक का असर नतीजों पर दिखाई दे रहा है. ओल्ड मैसूर आम तौर पर देवगौड़ा की जेडीएस का गढ़ माना जाता है लेकिन बीजेपी ने यहां सूपड़ा साफ कर दिया. जेडीएस कहीं पीछे रह गई. 19 में से 14 सीटों पर बीजेपी को बढ़त मिली.
नरेंद्र मोदी के प्रचार में उतरने से पहले बीजेपी के आंतरिक सर्वे में पार्टी को 82 से 85 सीटें मिलती दिख रही थीं लेकिन मोदी की कैंपेनिंग के बाद ये आंकड़ा बदल गया. उन पर ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ और भाषाई संयम खोने के आरोप भी लगे लेकिन कन्नड़ जनता ने सब माफ कर दिया.
3. लिंगायत कार्ड को उल्टे अपने पाले में किया
कांग्रेस ने जब लिंगायत समुदाय की अलग धर्म की मांग पर रजामंदी जताई तो निशाना बेहद साफ था. कर्नाटक में लिंगायत समुदाय की आबादी करीब 17 फीसदी है. सेंट्रल कर्नाटक में उनका खासा असर माना जाता है. शुरुआत में माना गया कि कांग्रेस ने ऐन वक्त पर लिंगायत कार्ड खेलकर चुनावी रेस में एक बड़ी छलांग मारी है लेकिन देखते-देखते ये कार्ड उल्टा पड़ गया. कांग्रेस के इस कदम से बाकी समुदाय छिटक गए. उन्हें ये अपने साथ विश्वासघात लगा. और शायद यही वजह रही कि सेंट्रल कर्नाटक में बीजेपी ने धमाकेदार जीत दर्ज की. यहां 32 में से बीजेपी 19 सीट पर आगे दिख रही है. यूं भी, लिंगायत बीजेपी का परंपरागत वोट माना जाता रहा है. येदियुरप्पा, लिंगायतों के बड़े नेता माने जाते हैं. उन्होंने और पार्टी के बाकी नेताओं ने तमाम मंचों से बार-बार जोर देकर कहा कि कांग्रेस बांटने की राजनीति कर रही है. ये भी तब जब, बीजेपी तमाम राज्यों में खुद धर्म और जाति के कई समीकरण आजमाती है. नतीजे देखकर लगता है कि लिंगायत समुदाय ने छिटकने के बजाय अपनी परंपरागत पार्टी के साथ रहना ज्यादा पसंद किया.
वैसे तमाम एग्जिट पोल ने भी दिखाया था कि लिंगायत कार्ड कांग्रेस के कुछ काम नहीं आया है.
4. येदियुरप्पा में भरोसा
बीएस येदियुरप्पा कर्नाटक का बड़ा नाम, बड़े नेता हैं. साल 2008 में येदियुरप्पा के नेतृत्व में ही बीजेपी ने दक्षिण भारत की राजनीति में पहला बड़ा कदम रखा था. तब येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री की कुर्सी भी हासिल हुई लेकिन बाद में उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और कुर्सी छोड़नी पड़ी. 2012 में उन्होंने बीजेपी से अलग होकर कर्नाटक जनता पार्टी का गठन किया और 2013 के चुनावों में बीजेपी को इसका खामियाजा भी उठाना पड़ा. बीजेपी को 20 फीसदी तो येदियुरप्पा की केजेपी को करीब 23 फीसदी वोट मिले. नतीजतन, बीजेपी के हाथ से कर्नाटक फिसल गया. इसको ऐसे भी समझिए कि वही येदियुरप्पा जब बीजेपी में लौटे तो 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 43 फीसदी वोट हासिल हुए यानी येदियुरप्पा फैक्टर काम आ गया.
इस फैक्टर की ताकत इन चुनावों में भी नजर आई. एग्जिट पोल भले कुछ कहें लेकिन येदियुरप्पा ने दावा किया था कि पार्टी को 125-130 सीट के बीच मिलने जा रही हैं. रुझानों में ये होता दिख भी रहा है.
5. वोट को सीट में बदलने का हुनर
बीजेपी को वोट को सीट में बदलने का हुनर बखूबी मालूम है. कहां, किस सीट पर कितना मार्जिन, जीत के लिए काफी होगा, कमलधारी पार्टी खूब समझती है. कई सीटें ऐसी हैं जहां बीजेपी और कांग्रेस के वोट में 1 से 5 हजार के बीच का ही फर्क है. वोट शेयर के मामले में भले बीजेपी कांग्रेस से पिछड़ गई हो लेकिन सीटों के मामले में कहीं आगे ठहरती है. कर्नाटक में बीजेपी को कांग्रेस से करीब 1 फीसदी कम वोट मिलता दिख रहा है.
ये भी पढ़ें- कर्नाटक में कांग्रेस का किला क्यों हुआ ध्वस्त, ये है पांच वजह
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)