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कर्नाटक: सीमा विवाद पर मुखर BJP-कांग्रेस के चुनावी कैंपेन से 'मराठी मुद्दा' गायब

"कुछ महीने पहले सीमा विवाद गरमाने पर छाती ठोककर दिए गए उनके नारे अब कहां हैं?" बेलगावी के एक स्थानीय युवक ने पूछा

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"बीजेपी और कांग्रेस जैसी पार्टियों के मुद्दे बिल्कुल अलग हैं. उनकी पार्टियां राज्य स्तर पर चुनाव लड़ रही हैं. इसलिए, इन पार्टियों के महाराष्ट्र के नेताओं को उसी के अनुसार काम करना होगा. वे वही कर रहे हैं जो उन्हें सबसे अच्छा सूट करता है. वे परेशान नहीं होते हैं." यह बात द क्विंट से महाराष्ट्र एकीकरण समिति (MES) के अध्यक्ष दीपक दलवी ने कही.

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1956 से विवादित बेलगावी क्षेत्र में मराठी भाषी आबादी के मुद्दों की अगुवाई करते हुए, यह पार्टी कर्नाटक के आगामी चुनावों में क्षेत्र की पांच सीटों - बेलगाम (ग्रामीण), बेलगावी (दक्षिण), बेलगाम (उत्तर), खानपुर और यमकनमर्दी पर चुनाव लड़ रही है.

66 साल पुराना महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद (Maharashtra-Karnataka Border Dispute) एक बार फिर चर्चा में आया जब पिछले साल दिसंबर में सीमा क्षेत्र में हिंसक विरोध शुरू हुआ. यानी उस सीमा विवाद के कुछ महीने बाद कर्नाटक चुनाव हो रहा है, जिसके कारण दोनों राज्यों के नेता कई दिनों तक वाकयुद्ध में उलझे रहे.

"कुछ महीने पहले सीमा विवाद गरमाने पर छाती ठोककर दिए गए उनके नारे अब कहां हैं?"  बेलगावी के एक स्थानीय युवक ने पूछा

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई, महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे और डिप्टी-सीएम देवेंद्र फडणवीस के साथ बुधवार, 14 दिसंबर 2022 को नई दिल्ली में एक बैठक के बाद


(फोटो: पीटीआई)

यह विवाद इस हद तक बढ़ गया कि गृह मंत्री अमित शाह को हस्तक्षेप करना पड़ा और दोनों राज्य सरकारों को शांत करना पड़ा. दोनों राज्यों में बीजेपी सत्ता में थी, और गृह मंत्री ने उनसे सीमा विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले में फैसले का इंतजार करने का आग्रह किया.

एक तरफ तो महाराष्ट्र में बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं ने इस क्षेत्र में 'मराठी अस्मिता' की रक्षा के लिए एक आवाज में बात की, वहीं चुनाव आते हैं, कोई भी पार्टी उन मुद्दों के बारे में मुखर नहीं रही, जिनका यहां की मराठी भाषी आबादी सामना करने का दावा करती है.

दीपक दलवी ने कहा, "हम 1956 से संघर्ष कर रहे हैं. हमने अपना विरोध दर्ज कराने के लिए सभी लोकतांत्रिक तरीकों की कोशिश की है. अगर महाराष्ट्र की कोई भी पार्टी कुछ करना चाहती है, तो वह अब तक कर चुकी होती."
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महाराष्ट्र एकीकरण समिति की लंबी लड़ाई

1948 में गठित, महाराष्ट्र एकीकरण समिति बेलगावी, निपानी, खानापुर और कारवार के अलावा कर्नाटक के लगभग 864 गांवों को महाराष्ट्र के साथ एकीकृत करने की मांग कर रही है और इस मुद्दे पर चुनाव लड़ती और जीतती भी रही है.

द क्विंट से बात करते हुए MES के अध्यक्ष दलवी ने कहा कि जिस एकमात्र मुद्दे पर वे चुनाव लड़ रहे हैं, वह क्षेत्र में मराठी आबादी पर होने वाला कथित अत्याचार का है.

क्षेत्र में मराठी भाषी आबादी के कई लोग भेदभाव और जबरदस्ती कन्नड़ भाषा थोपने का आरोप लगाते रहे हैं.

"कुछ महीने पहले सीमा विवाद गरमाने पर छाती ठोककर दिए गए उनके नारे अब कहां हैं?"  बेलगावी के एक स्थानीय युवक ने पूछा

MES कार्यकर्ता बेलगावी में छत्रपति संभाजी महाराज की प्रतिमा पर माल्यार्पण करते हुए

(फोटो साभार: फेसबुक/महाराष्ट्र एकीकरण युवा समिति)

MES के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा: "यहां मराठी आबादी पर कन्नड़ थोपा जा रहा है. हमें अक्सर ऐसी टिप्पणियां सुननी पड़ती हैं, 'हमें कन्नड़ जानना चाहिए क्योंकि कर्नाटक की सरकार हमें इतना कुछ दे रही है."

उन्होंने आगे कहा, "अल्पसंख्यक आयोग का नियम है कि संबंधित लोगों की समझ में आने वाली भाषाओं में प्रशासनिक कार्य होने चाहिए. इसलिए, बेलगावी जैसी जगह द्विभाषी होनी चाहिए। लेकिन यहां मराठी भाषा में कोई प्रशासनिक काम नहीं होता है."

दलवी ने कहा, "इसके अलावा, आप यहां किसी भी कार्यक्रम का आयोजन करने की कोशिश करते हैं और मुख्य अतिथि के रूप में महाराष्ट्र से किसी को भी बुलाना चाहते हैं तो आपको आवश्यक अनुमति के लिए दर-दर भटकना होगा. यहां तक कि आम साहित्यिक कार्यक्रम में भी, वे इस बात पर जोर देने की कोशिश करते हैं कि हमें बेलागवी के ही मराठी भाषी कलाकार को बुलाना चाहिए."

"आप नहीं समझ पाएंगे कि हम किस दौर से गुजर रहे हैं. इसकी गहराई को समझने के लिए आपको इसका अनुभव करना होगा. हमारी सबसे बड़ी समस्या हमारी भाषा के अस्तित्व के लिए खतरा है. कन्नड़ हमारे लिए एक विदेशी भाषा है."
दीपक दलवी
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MES ने किन प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है?

MES द्वारा मैदान में उतारे गए उम्मीदवारों की राजनीतिक गतिशीलता पर एक नजर डालते हैं:

बेलगावी (दक्षिण): MES ने बीजेपी के तीन बार के विधायक अभय पाटिल और कांग्रेस के खिलाफ बेलगावी (दक्षिण) से रमाकांत कोंडुस्कर को मैदान में उतारा है. श्री राम सेना हिंदुस्तान के पूर्व अध्यक्ष कोंडुस्कर, मराठी आबादी के वोटों के साथ-साथ अपने कट्टर हिंदुत्व स्टैंड से बीजेपी के वोटों को काटने की उम्मीद कर रहे हैं.

बेलगाम (ग्रामीण) : MES के उम्मीदवार आरएम चौगले का मुकाबला कांग्रेस के दिग्गज लक्ष्मी हेब्बालकर और बीजेपी के नागेश मन्नोलकर से है, जिनका खुद फडणवीस ने पिछले सप्ताह प्रचार किया था.

बेलगाम (उत्तर) : इस सीट से MES ने अमर यल्लुरकर को बीजेपी के रवि पाटिल और कांग्रेस पार्टी के आसिफ (राजू) सैत के खिलाफ उतारा है. बेनाके जहां पंचमसाली लिंगायत हैं वहीं यल्लुरकर मराठा हैं. बीजेपी ने पार्टी के एक प्रमुख मराठा चेहरे अनिल बेनाके के ऊपर रवि पाटिल को चुना, जिसके बारे में पर्यवेक्षकों का कहना है कि भगवा पार्टी के इस फैसले को निर्वाचन क्षेत्र के कई मराठा मतदाता पसंद नहीं कर रहे हैं.

खानापुर: MES ने प्रमुख व्यवसायी मुरलीधर पाटिल को बीजेपी के विट्ठल हलगेकर और कांग्रेस की अंजलि निंबालकर के खिलाफ मैदान में उतारा है, ये सभी मराठा हैं.

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MES को बीजेपी-कांग्रेस से मिली अनदेखी, तो शिवसेना-एनसीपी से मिली मदद

पिछले सप्ताह में, उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण सहित महाराष्ट्र के कई नेता सीमावर्ती क्षेत्रों में अपने संबंधित दलों के उम्मीदवारों के प्रचार के लिए बेलगावी आए थे.

हालांकि, दोनों नेताओं में से कोई भी, जो कुछ महीने पहले तक मराठी भाषी आबादी के मुद्दों पर सक्रिय रूप से टिप्पणी कर रहे थे, अब अपने भाषणों में इन मुद्दों पर मौन थे.

फडणवीस के भाषण पीएम नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों के इर्द-गिर्द केंद्रित थे. वहीं कांग्रेस द्वारा बजरंग दल पर प्रस्तावित बैन फडणवीस और चव्हाण दोनों के लिए सबसे बड़ा चर्चा का विषय था.

फडणवीस द्वारा आयोजित तीन सार्वजनिक रैलियों और चव्हाण द्वारा आयोजित एक सार्वजनिक रैली का सामना MSE स्वयंसेवकों द्वारा की जा रही नारेबाजी और काले झंडों से हुआ. MSE कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि महाराष्ट्र के नेता स्थानीय एमईएस नेताओं के लिए प्रचार नहीं कर रहे हैं और "अपनी सुविधा के अनुसार दोहरी बात कर रहे हैं."

फडणवीस से पहले बीजेपी नेता चित्रा वाघ और गिरीश महाजन ने भी क्षेत्र में प्रचार किया था. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और बालासाहेबंची शिवसेना (बीएसएस) प्रमुख एकनाथ शिंदे ने इस क्षेत्र में प्रचार नहीं किया.

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MSE के एक अन्य पदाधिकारी ने कहा: "उनके लिए यहां आना और स्थानीय मराठी नेताओं के खिलाफ प्रचार करना सही नहीं है. कुछ महीने पहले जब सीमा विवाद गरमा गया था, तब छाती ठोंकने वाले उनके सभी नारे कहां हैं?"

इस बीच, शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के रोहित पवार दोनों ने बेलगावी में MSE उम्मीदवारों के लिए प्रचार किया. बीजेपी द्वारा MSE को अनदेखा करने और शिंदे द्वारा इस क्षेत्र में चुनाव प्रचार नहीं करने की स्थिति ने महा विकास अघाड़ी को महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ गठबंधन पर हमला करने का अच्छा मौका दे दिया है.

संजय राउत ने कहा कि गठबंधन ने इन सीटों पर MSE के मराठी भाषी उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारकर अपना असली चेहरा दिखा दिया है.

"कुछ महीने पहले सीमा विवाद गरमाने पर छाती ठोककर दिए गए उनके नारे अब कहां हैं?"  बेलगावी के एक स्थानीय युवक ने पूछा

राउत ने पूछा, "शिंदे ने कहा था कि मराठी भाषी लोगों के एक आंदोलन में भाग लेने के दौरान उन्हें बेलगावी में जेल हुई थी. अब वह प्रचार करने से क्यों कतरा रहे हैं?"

रोहित पवार ने भी MSE नेताओं के लिए बेलगावी में पिछले सप्ताह तीन दिनों तक प्रचार किया और बीजेपी पर 'मराठी विरोधी' होने का आरोप लगाया, खासकर इस वजह से कि भगवा पार्टी ने बेनाके को टिकट देने से इनकार कर दिया है.

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