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कर्नाटक का ‘नाटक’ आखिर खत्म: सूत्रधार, किरदार और पूरी पटकथा

कांग्रेस-जेडीएस की गलतियां जिनके कारण कर्नाटक में उनकी सरकार गिरी

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कहानी रोमांचक थी. एक से एक स्टंट थे. मेलोड्रामा का मसाला भी भरपूर था. लेकिन क्लाईमेक्स इतना खिंच गया कि देखने वाले ऊब गए. कई दिनों के इंतजार के बाद कर्नाटक के 'नाटक' का परदा गिर ही गया. कुमारस्वामी सरकार के पक्ष में महज 99 वोट पड़े, खिलाफ में 105. सरकार गिर गई. कांग्रेस-JDS का आरोप है कि संकट की सूत्रधार BJP है, लेकिन सच ये भी है कि गठबंधन भी अपने घर को संभाल नहीं पाया. कांग्रेस ने भी गलतियां कीं. साथ ही कर्नाटक में जो हुआ उससे कई गंभीर सवाल भी खड़े हो गए हैं.

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क्यों गिरी कांग्रेस-JDS सरकार ?

1. कांग्रेस-JDS का झगड़ा

इन दोनों पार्टियों ने 2018 में विधानसभा अलग-अलग चुनाव लड़ा था. लेकिन जब सरकार बनाने की बात आई तो दोनों एक हो गईं. JDS के पास कम सीटें (37) थीं लेकिन सरकार बनाने के लिए कांग्रेस ने इसके नेता कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाया. जाहिर है बुनियाद कमजोर थी. सरकार बनने के  बाद से लगातार दोनों सहयोगियों में खींचतान होती रही. खासकर कांग्रेस के कुछ नेता कुमारस्वामी के खिलाफ बोलते रहे. लेकिन वक्त रहते न तो इन्हें रोका गया और न ही इनकी शिकायतों की सुनवाई हुई.

लोकसभा चुनाव के दौरान कुमारस्वामी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस और अन्य लोग मांड्या लोकसभा सीट पर उनके बेटे और जेडीएस उम्मीदवार निखिल को हराने की साजिश रच रहे हैं.

कुमारस्वामी ने कांग्रेस पर निखिल के लिए काम करने के बजाय निर्दलीय उम्मीदवार और फिल्म एक्ट्रेस सुमलता के साथ साठगांठ का आरोप लगाया था. सुमलता दिवंगत कांग्रेस नेता और अभिनेता अंबरीश की पत्नी हैं. कुमारस्वामी के इस बयान से अंदाजा लगाया जा सकता है कि काफी पहले से कांग्रेस और जेडीएस के बीच कुछ भी ठीक नहीं चल रहा था.

2. कर्नाटक कांग्रेस का अंदरूनी झगड़ा

आज अगर कर्नाटक कांग्रेस सत्ता से बाहर है तो उसके पीछे पार्टी का अंदरूनी झगड़ा भी है. बागियों की फेहरिस्त में रोशन बेग से लेकर रमेश जरकीहोली तक हैं. जेडीएस-कांग्रेस सरकार के गिरने के पीछे जो अहम किरदार माने जाते हैं, उनमें से एक कांग्रेस नेता आर. रामालिंगा रेड्डी भी हैं. लगातार आठ बार से विधायक चुने जा रहे विधायक रेड्डी मंत्री पद न दिए जाने की वजह से नाराज चल रहे थे.

बेंगलुरु साउथ की बीटीएम लेआउट सीट से विधायक रेड्डी इससे पहले सिद्धारमैया सरकार में (2013-18) में गृह एवं परिवहन मंत्री थे. 6 जुलाई को आठ विधायकों के साथ उनके इस्तीफे से पार्टी हिल गई. बाद में उन्हें उपमुख्यमंत्री पद तक का प्रस्ताव दिया गया. वो मान भी गए लेकिन देर हो चुकी थी.

कहा तो ये भी जाता है कि जिन डीके शिवकुमार को कर्नाटक में कांग्रेस का संकटमोचक कहा जाता है, उनकी भी महत्वाकांक्षा है. दूसरी तरफ राज्य के सीएम रह चुके सिद्धारमैया के खेमे को ये बर्दाश्त नहीं हो रहा था कि ज्यादा सीटों के बावजूद जेडीएस को मुख्यमंत्री कुर्सी मिल गई. इस खेमे से कुमारस्वामी के कामकाज पर लगातार सवाल उठाए जाते रहे.

3. कांग्रेस हाईकमान की नाकामी

जिन 16 विधायकों ने इस्तीफा दिया, उनमें से 13 कांग्रेस के हैं. जब डीके शिवकुमार सरकार बचाने के लिए अकेले मोर्चा संभाले हुए थे, दिल्ली से बेंगलुरु और बेंगलुरु से मुंबई तक के चक्कर लगा रहे थे, उस वक्त पार्टी आलाकमान की तरफ से वो गंभीरता नहीं दिख रही थी. दिल्ली से एक दो बयानों को छोड़कर सरकार बचाने की कोई ऐसी गंभीर कोशिश नहीं दिखी.

रमेश जरकीहोली का बीजेपी नेताओं से मिलना जुलना बढ़ने से लगातार संकेत मिल रहे थे कि वो पार्टी छोड़ सकते हैं, जबकि रोशन बेग पार्टी नेतृत्व का मजाक उड़ा रहे थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना कर रहे थे. लेकिन आलाकमान ने  इन्हें समझाने के लिए कुछ खास नहीं किया. केसी वेणुगापोल बेंगलुरु में बैठकें करते रहे और लुटिया डूबती रही.

इस दूरदर्शिता की कमी भी दिखी कि कर्नाटक सिर्फ एक राज्य नहीं बीजेपी के लिए दक्षिण का प्रवेश द्वार है. गोवा में पहले ही वो विपक्ष को तबाह कर चुकी है. अब कर्नाटक में बीजेपी की सरकार बनेगी तो दक्षिण में पांव फैलाने की ताकत मिलेगी. ताज्जुब है कि नॉर्थ खो चुकी कांग्रेस साउथ को बचाने के लिए भी गंभीर नहीं दिखी.

कर्नाटक का नाटक: पूरी पटकथा

2018 में जेडीएस ने एक स्टिंग किया. आरोप लगाया कि बीजेपी  के येदियुरप्पा सरकार गिराने के लिए विधायकों की खरीद फरोख्त कर रहे हैं. उस स्टिंग में येदियुरप्पा कहते सुने गए -

हम लोग 20 लोगों को अपने साथ ले रहे हैं. हम 12 को मंत्री बनाएंगे और 8 लोगों कॉरपोरेशन चेयरमैन बनाएंगे. जिन्हें हम मंत्री बना रहे हैं, उन्हें 10-10 करोड़ भी देंगे.
  • लोकसभा चुनाव में गठबंधन बुरी तरह फेल हुआ. 28 में से 25 सीटें बीजेपी ले गई और गठबंधन के हाथ सिर्फ दो सीटें आईं.
  • लोकसभा चुनाव में हार से सरकार पर शिकंजा बढ़ने लगा.
  • सबसे पहले कांग्रेस के रोशन बेग और रमेश जरकीहोली ने इस्तीफा दिया.
  • जुलाई आते-आते 16 और विधायकों ने इस्तीफा दे दिया.
  • कर्नाटक की लड़ाई एक साथ तीन जगह चल रही थी. दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु. इस्तीफा देने वाले विधायक मुंबई के एक होटल में जम गए.
  • समीकरण ये बना कि अगर 224 के सदन में 16 कम हो जाएं तो 104 सीटों से नई सरकार बन सकती है और बीजेपी के पास हैं 105.
  • स्पीकर ने विधायकों का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया. सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर से कोई फैसला करने को भी कहा. फिर राज्यपाल ने भी स्पीकर को चिट्ठी लिखी. स्पीकर पर दबाव बढ़ता गया.
  • कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार ने कई बागियों को कैबिनेट में जगह देने का ऑफर दिया, लेकिन फायदा नहीं हुआ. कुमारस्वामी को बदलकर किसी और को सीएम बनाने का ऑफर भी काम नहीं आया.
  • ऐसा लग रहा था कि खिंचते समय का फायदा गठबंधन सरकार को नहीं, बीजेपी को मिल रहा था. मतलब वक्त के साथ उसका पक्ष मजबूत होता जा रहा था. क्योंकि इसी बीच एक निर्दलीय और KJKP विधायक आर शंकर, जो कि राज्य में मंत्री भी थे, उन्होंने भी समर्थन वापस ले लिया.
  • आखिर 23 जुलाई को बहुमत परीक्षण करना ही पड़ा. हालत ये हो गई कि विश्वास मत के दिन सत्ता पक्ष के ज्यादातर विधायक सदन में आए ही नहीं. जो स्पीकर फ्लोर टेस्ट टाल रहे थे, उन्हें कुमारस्वामी से कहना पड़ा -विश्वास मत तो छोड़िए ,आप अपनी विश्वसनीयता भी खो देंगे.
  • फ्लोर टेस्ट हुआ तो कुमारस्वामी की सरकार गिर गई. अब बीजेपी के लिए रास्ता साफ है.
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कर्नाटक के 'नाटक' का डायरेक्टर कौन?

2018 में भी कर्नाटक में खूब सियासी नाटक हुआ था. विधानसभा चुनाव में कर्नाटक में किसी को बहुमत नहीं मिला. 225 विधायकों के सदन में बीजेपी को 104 सीटें मिलीं. सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते बीजेपी को सरकार बनाने का न्यौता मिला.

आधी रात को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने येदियुरप्पा को कहा कि बिना बहुमत साबित किए वो किसी को मंत्री नहीं बना सकते और एक मनोनित विधायक भी नहीं तय कर सकते. फिर जब बहुमत साबित  करने का समय आया, तो उससे पहले ही येदियुरप्पा ने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद कांग्रेस-जेडीएस ने मिलकर सरकार बना ली.

सबसे बड़ी पार्टी हो कर भी सत्ता से बाहर रहने का दर्द बीजेपी को सताता रहा. कांग्रेस-जेडीएस ने आरोप लगाया कि इसी के कारण पार्टी लगातार सरकार गिराने की कोशिश करती रही.

  • बीजेपी कहती रही कि तख्तापलट में उसका कोई हाथ नहीं, मगर टीवी कैमरों ने येदियुरप्पा के सचिव एनआर संतोष को बागी विधायकों को चार्टर्ड प्लेन पर चढ़ाते पकड़ लिया.
  • बागी विधायक मुंबई के लिए जिस चार्टर्ड प्लेन से निकले, कहा जाता है कि वो बीजेपी के एक राज्यसभा सांसद की कंपनी का था.
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कर्नाटक के नाटक का मतलब

विश्वास मत से पहले पुलिस ने पूरे बेंगलुरु में धारा 144 लगा दिया. कुमारस्वामी ने विश्वास मत पर वोटिंग से पहले राज्य की जनता से कहा कि वो कुर्सी छोड़ने के लिए तैयार हैं और पिछले दिनों से विधानसभा में जैसी शर्मनाक घटनाएं हुईं उसका उन्हें अफसोस है. सरकार गिराने और बनाने की जुगत में कर्नाटक में जो कुछ हुआ उसकी बुरी यादें लंबे समय तक रहेंगी.

  • सिद्धारमैया ने विश्वास मत से पहले बहस के दौरान आरोप लगाया कि किसी बागी को 25 तो किसी को 30  तो किसी को 50 करोड़ दिए गए. ये पैसे कहां से आ रहे हैं?
  • 18 जुलाई को कर्नाटक विधानसभा की वो दुखद तस्वीर पूरे देश ने देखी जब येदियुरप्पा समेत बीजेपी के तमाम विधायक विधानसभा में ही सो गए.
  • इसी नाटक का एक एपिसोड ये भी रहा कि मुंबई में टिके बागी अपने ही सीनियर लीडर डीके शिवकुमार से सुरक्षा मांगते दिखे. मुंबई पुलिस ने शिवकुमार को हिरासत में भी लिया.
  • वोटर ने एमटीबी नागराज के पल-पल बदलते रुख को भी देखा. बेंगलुरु में गठबंधन के साथ, मुंबई जाते ही बागी.
  • बीजेपी ने आरोप लगाया कि मंत्री डीके शिवकुमार ने कुछ बागी विधायकों के इस्तीफे फाड़ डाले.
  • कर्नाटक में जो कुछ हुआ उसने दल बदल कानून के असर पर भी सवाल उठा दिया है.

कुल मिलाकर शक्ति परीक्षण कुमारस्वामी सरकार का था. लेकिन विश्वास खोया लोकतांत्रिक तौर तरीकों ने. शाह कोई बने, हारी लोकशाही.

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