उत्तर प्रदेश की वाराणसी सीट पर चुनावी हालात गुजरते दिनों के साथ दिलचस्प होते जा रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीट पर अभी तक कांग्रेस या महागठबंधन ने अपना कैंडिडेट घोषित नहीं किया है.
बीजेपी, पीएम मोदी की पॉपुलैरिटी को सबसे बड़े फैक्टर के तौर पर प्रोजेक्ट कर रही है. जाहिर है इस सीट पर मजबूत कैंडिडेट के जरिए विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी को उलझाने की कोशिश करेगा, जिससे दूसरी सीटों से उनका ध्यान बंटे.
कांग्रेस से जहां प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने की चर्चा तेज है, तो वहीं समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव का नाम भी इस सीट के लिए आगे बढ़ रहा है. अभी तक दोनों के आपसी तालमेल के बारे में कुछ भी आधिकारिक तौर पर नहीं कहा गया है. बता दें कि महागठबंधन के हिस्से से वाराणसी सीट समाजवादी पार्टी के हिस्से में आई है.
प्रियंका गांधी या अखिलेश यादव में से कोई एक अगर दूसरे के समर्थन से पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ता है, तो बीजेपी के लिए दिक्कतें बढ़ सकती हैं. याद रहे 1977 में उत्तर प्रदेश की ही रायबरेली सीट से राज नारायण ने निर्वतमान पीएम इंदिरा गांधी को चुनाव हरा दिया था.
कांग्रेस नहीं खोल रही अपने पत्ते..
कांग्रेस ने शनिवार की लिस्ट में भी वाराणसी सीट पर अपने कैंडिडेट की घोषणा नहीं की है. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, पार्टी ने सीट पर एक इंटरनल सर्वे करवाया है, जिसमें कांग्रेस की संभावनाओं को तलाशा गया है.
बहुत हद तक महागठबंधन के रुख से भी कांग्रेस कैंडिडेट का फैसला होगा, क्योंकि प्रियंका गांधी और अखिलेश यादव के बीच 2017 के विधानसभा चुनाव के समय हुए गठबंधन के बाद ही अच्छी पटरी बैठती है. ये अलग बात है कि इस बार यूपी में बने गठबंधन में कांग्रेस नहीं है.
संभावना जताई जा रही है कि महागठबंधन, रायबरेली और अमेठी सीट की तरह कांग्रेस का समर्थन कर सकता है. दोनों सीटों पर कांग्रेस कैंडिडेट के खिलाफ महागठबंधन ने कैंडिडेट खड़े नहीं किए हैं.
2014 के चुनाव में सीट पर पीएम नरेंद्र मोदी ने आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को 3.37 लाख के भारी अंतर से हराया था. कांग्रेस कैंडिडेट अजय राय को उस चुनाव में महज 75,614 वोट मिले थे.
अखिलेश के पक्ष में मजबूत है वाराणसी का ‘जाति गणित’
इलेक्शन एक्सपर्ट्स के एक बड़े हिस्से का मानना है कि मोदी के खिलाफ अखिलेश यादव सबसे मजबूत कैंडिडेट हो सकते हैं.अखिलेश यादव के पक्ष में वाराणसी सीट का जातीय गणित भी दिखाई पड़ता है.
कांग्रेस दूसरी पार्टियों के नेताओं को कैंडिडेट बनाकर लड़ने की रणनीति पर भी चल रही है. इसी रणनीति के तहत गोंडा से अपना दल की नेता कृष्णा पटेल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं.
दूसरी तरफ कांग्रेस बीजेपी विरोधी पार्टियों के खिलाफ कुछ खास सीटों पर कैंडिडेट भी खड़े नहीं कर रही है. फिरोजाबाद, मैनपुरी समेत कांग्रेस ने सात सीटों पर अपने कैंडिडेट खड़े नहीं किए हैं. इनमें तीन सीटें समाजवादी पार्टी, दो बीएसपी और दो आरएलडी के लिए छोड़ी गई हैं.
ऐसे में अगर अखिलेश यादव वाराणसी से दावा ठोकते हैं, तो उन्हें कांग्रेस का समर्थन मिलने की भी ज्यादा गुंजाइश है.
वाराणसी में यादव जाति की एक बड़ी आबादी है. पारंपरिक तौर पर वे समाजवादी पार्टी का समर्थन करते आए हैं. इसके अलावा 3 लाख मुस्लिम मतदाता और 80 हजार दलित भी बड़ा प्रभाव रखते हैं. अखिलेश यादव को इन जातियों से समर्थन की उम्मीद हो सकती है.
कुछ इस तरह है बनारस का जातीय गणित:
- वैश्य वोट- 3.5 लाख
- ब्राह्मण वोट- 2.5 लाख
- मुस्लिम वोट- 3 लाख
- राजपूत वोट- 1 लाख
- यादव वोट- 1.5 लाख
- पटेल (कुर्मी) वोट- 2 लाख
- दलित वोट-80 हजार
- चौरसिया- 80 हजार
बीजेपी के पारंपरिक ‘अगड़ी जातियों का वोट बैंक’ का एक बड़ा हिस्सा भी बड़े ब्राह्मण नेताओं को टिकट न देने से नाराज है.
बीजेपी ने मुरली मनोहर जोशी, कलराज मिश्र, सुमित्रा महाजन, बीसी खंडूरी समेत 5 बड़े ब्राह्मण नेताओं के टिकट काटे हैं. इनमें से जोशी और मिश्र उत्तर प्रदेश की लोकसभा सीटों से सांसद थे.
ऐसे में वाराणसी का चुनाव, महज वाराणसी लोकसभा सीट तक सीमित नहीं रहेगा और इस सीट पर बड़े नेताओं का अखाड़ा बनना तय है.
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